Maharashtra Board Textbook Solutions for Standard Nine

पाठ ४ – किताबें

आज के समय में कंप्यूटर के अत्याधिक प्रयोग के कारण किताबों के प्रति लोगों की रुचि कम होने लगी है। अब किताबें अलमारी में पड़ी रहती हैं, महीनों तक मनुष्य से उनकी मुलाकात नहीं होती। वे किताबें उधड़ी हुई होती हैं। पन्ने पलटने पर उनकी करुण सिसकी निकलती है। किताबों की निरंतर उपेक्षा हो रही है। कंप्यूटर पर एक क्लिक करते ही बहुत कुछ एक-एक कर शीघ्रता से खुल जाता है। यही कारण है कि किताबों से हमारे संपर्क का दायरा कम हो गया है।

 

एक समय था, हम सीने पर किताबें रखकर लेट जाते थे तो कभी उन्हें माथे लगाकर प्रसन्न होते थे। एक दौर था जब किताबों के बहाने से कई रिश्तों की डोर बन जाती थी। किंतु अब किताबों के प्रति अरुचि के कारण यह रिश्ते नष्ट हो जाएँगे। उनका संपर्क टूट जाएगा और वे अपना अस्तित्व खो देंगे।

हसरत – कामना, उम्मीद, इच्छा

सोहबत – संगत

कदरें – मूल्य, मायने

जायका – लज्जत, स्वाद

सफा – पन्ना

अल्‍फाज – शब्द

राब्‍ता – संपर्क

जबीं – माथा

इल्‍म – ज्ञान

रुक्‍के – चिट्‌ठी, संदेश पत्र

रिहल – ठावनी जिसपर धर्मग्रंथ रखकर पढ़ा जाता है।

कविता का नाम – किताबें

 

कविता की विधा – नई कविता।

 

पसंदीदा पंक्ति – 

किताबें गिरने, उठाने के बहाने रिश्ते बनते थे। 

उनका क्या होगा ? वो शायद अब नहीं होंगे!!

 

पसंदीदा होने का कारण – 

उपर्युक्त पंक्ति मुझे बेहद पसंद है क्योंकि इस पंक्ति के माध्यम से कवि ने मानवीय रिश्तों की ओर संकेत किया है। आज हमारे समाज में रिश्ते बिखरते हुए प्रतीत हो रहे हैं। लोगों के दिल से रिश्तों की अहमियत कम होती दिखलाई दे रही है। किताबों के माध्यम से लोग एक-दूसरे से जुड़ जाते थे। उनमें आपसी रिश्ते पनपने लगते थे। लेकिन अब लोग किताबें पढ़ना ही नहीं चाहते। इसी आपसी बंधन को भी बरकरार रखने की यहाँ पर बात की है। 

 

कविता से प्राप्त संदेश या प्रेरणा – 

प्रस्तुत कविता से प्रेरणा मिलती हैं कि व्यक्ति को किताबों का पठन करना चाहिए। भले ही आज का युग विज्ञान एवं तकनीकी का युग है फिर भी मानव को किताबों का वाचन करना चाहिए। किताबों के जरिए ही मानवीय गुणों में वृद्धि हो सकती है। किताबों का वाचन न करने के कारण व्यक्ति में दुर्गण निर्माण हो रहे हैं। साहित्य के वाचन से ही व्यक्ति में संस्कार पनप सकते हैं। इसलिए सभी को साहित्य का वाचन करना चाहिए।

किताबें झाँकती हैं बंद अलमारी के शीशों से,

बड़ी हसरत से तकती हैं ।

महीनों अब मुलाकातें नहीं होतीं, 

जो शामें उनकी सोहबत में कटा करती थीं 

अब अक्‍सर …….. 

 

अर्थ : किताबें मनुष्य की साथी हैं। किंतु कंप्यूटर के अधिकाधिक प्रयोग के कारण इनमें लोगों की रुचि कम होने लगी है। अब स्थिति यह है कि ये किताबें बंद अलमारी के शीशों से झाँकती हैं। बड़ी उम्मीद से शीशों के बाहर ताकती हैं। एक समय था जब मनुष्यों की शामें किताबों के संगत में व्यतीत होती थीं और अब स्थिति यह है कि महीनों तक मनुष्य और किताबों की मुलाकात नहीं होती ।



गुजर जाती हैं ‘कंप्यूटर के पर्दों पर’

बड़ी बेचैन रहती हैं किताबें …….. 

उन्हें अब नींद में चलने की आदत हो गई है

जो कदरें वो सुनाती थी 

कि जिनके ‘सेल’ कभी मरते नहीं थे,

वो कदरें अब नजर आती नहीं घर में,

जो रिश्तेवो सुनाती थीं ।

 

अर्थ : कवि कहते हैं कि अब अक्सर मनुष्य की शामें कंप्यूटर के पर्दों पर ही बीत जाती है और उनकी साथी किताबें इस बढ़ती दूरी के कारण बड़ी ही बेचैन रहती हैं। उन्हें अब नींद में चलने की आदत हो गई है अर्थात किताबें लोगों को अब सपनें में देखती हैं। किताबें अपने ज्ञानगंगा के स्वर्णाक्षरों द्वारा मनुष्य को नैतिकता का पाठ पढ़ाती थीं। वे रिश्तों संबंधों के मधुर गीत सुनाती थीं। किंतु जिनके मूल्य कभी नहीं मरते थे, जिनके सेल कभी खत्म नहीं होते थे, और अब कंप्यूटर के बढ़ते प्रभाव का परिणाम यह है हमें घरों में अब वह मानवीय मूल्य नहीं दिखाई देते हैं।



वह सारे उधड़े-उधड़े हैं,

कोई सफा पलटता तो इक सिसकी निकलती है,

कई लफ्जाें के मानी गिर पड़े हैं

बिना पत्‍तों के सूखे-टुंड लगते हैं वो सब अल्‍फाज,

जिन पर अब कोई मानी नहीं उगते ……..

 

अर्थ : कवि कंप्यूटर युग में पुस्तकों और मनुष्यों के बीच बढ़ती हुई दूरी का वर्णन करते हुए कहते हैं कि, एक समय था जब ये किताबें हमारे साथ रहकर हमें हमारे रिश्तों संबंधों के बारे में बताती थीं। वे सारे संबंध अब उधड़ गए हैं, टूट गए हैं। अब पन्ने पलटने पर हमारे गले से करुण सिसकी निकलती है। आँखों में आँसू आ जाता है। इतना ही नहीं आज व्यक्ति और किताबों के बीच संपर्क का दायरा इतना सिमट गया है कि उनके शब्दों के मान-सम्मान गिर चुके हैं। उनके शब्द अब बिन पत्तों के सूखे-ठूंठ से जीर्ण-शीर्ण लगते हैं। जिनका अब कोई मतलब (अर्थ) नहीं है।



जुबां पर जो जायका आता था जो सफा पलटनेका

अब उँगली ‘क्‍लिक’ करनेसेबस

झपकी गुजरती है

बहुत कुछ तह-ब-तह खुलता चला जाता हैपरदेपर,

किताबों सेजो जाती राब्‍ता था, कट गया है……..

 

अर्थ : कवि कंप्यूटर की गति व किताबों की निरंतर होती उपेक्षा व दुर्गति के संबंध में कहते हैं कि अब एक क्लिक करने पर बस पलक झपकते ही कंप्यूटर के डिजीटल परदे पर बहुत कुछ एक-एक करके शीघ्रता से खुलता चला जाता है। इसी का परिणाम है कि किताबों के पन्ने पलटने का जो स्वाद जिह्वा पर आता था, वह भी हमसे ओझल हो गया है अर्थात पन्ने पलटते समय बार-बार जीभ पर अँगुली रखने का आनंद समाप्त हो गया। किताबों में रचा-बसा हमारा संपर्क व हमारे संपर्क सूत्र का दायरा भी अब बहुत कुछ सिमट गया है।



कभी सीनेपेरख केलेट जातेथे

कभी गोदी मेंलेतेथे

कभी घुटनों को अपनेरिहल की सूरत बनाकर

नीम-सजदेमेंपढ़ा करतेथे, छूतेथेजबीं से

वो सारा इल्‍म तो मिलता रहेगा आइंदा भी

 

अर्थ : कवि गुलजार मनुष्य और किताबों के परस्पर अपनत्व व साथ का वर्णन करते हुए कहते हैं कि, किताबें हमारी सहचरी सहगामिनी थी। जिन्हें हम सीने पर रखकर लेट जाते थे। कभी गोदी में लेते थे। कभी-कभी अपने घुटनों को रिहल (ठावनी) की सूरत बनाकर किताबें पढ़ने का आनंद लेते थे। कभी सजदें (प्रार्थना) में इन्हें पढ़ा करते थे, तो कभी माथे लगाकर उसे छूते थे, ताकि किताबों का सारा ज्ञान आगे भी मिलता रहे, कभी बंद न हो।



मगर वो जो किताबों में मिला करतेथेसूखेफूल

और महकेहुए रुक्‍के

किताबें गिरने, उठानेकेबहानेरिश्ते बनतेथे

उनका क्‍या होगा ? वो शायद अब नहीं होंगे!!

 

अर्थ : कवि कहते हैं कि किताबों के साथ कुछ यादगार बातें भी जुड़ी हुई होती थीं। कभी-कभी लोग इन किताबों में किसी के लिए फूल या संदेश-पत्र रख दिया करते थे, किंतु किताबों में जो रखे हुए सूखे फूल और महके हुए चिट्ठी के पन्ने मिला करते थे उनका क्या होगा। कवि गुलजार जी कहते हैं कि एक दौर था जब किताबों के गिरने उठाने के बहाने से कई रिश्तों की डोर बन जाती थी। किंतु अब जिस तरह से किताबों में लोगों की अरुचि उत्पन्न हुई है, उससे यह रिश्ते नष्ट होते जाएँगे । उनका संपर्क सूत्र टूट जाएगा और वे अपना अस्तित्व खोकर काल के ग्रास की भाँति खत्म हो जाएँगे।

लेखनीय

निम्‍नलिखित मुद्दों के आधार पर पुस्‍तकों से संबंधित चर्चा के आयोजन में सहभागी होकर लिखिए :

    • पाठ्‌येतर पुस्‍तकें ।
    • पुस्‍तकों का संकलन । 
    • पुस्‍तकों की देखभाल ।
    • विचार मंथन – विचार, वाक्‍य, सुवचन ।

उत्तर: पाठ्येतर पुस्तकें एक समृद्ध साहित्यिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और हमारे समाज में शिक्षा और ज्ञान का स्रोत हैं। पुस्तकें ज्ञान का खजाना होती हैं जो हर क्षेत्र में महत्वपूर्ण हैं।

 

पुस्तकों का संकलन एक बहुत महत्वपूर्ण कार्य होता है। यह विभिन्न विषयों, शैलीयों और लेखकों की पुस्तकों को एक स्थान पर इकट्ठा करता है, जिससे लोगों को उपयोगकर्ता के लिए साहित्यिक धरोहर की अधिक सुलभता होती है।

 

पुस्तकों की देखभाल भी महत्वपूर्ण है। यह शिक्षा संस्थानों, पुस्तकालयों, और व्यक्तिगत लाइब्रेरी के लिए जिम्मेदारी बनती है। इसके माध्यम से पुस्तकें दुरुस्त रूप में रखी जाती हैं ताकि वे बदलाव से प्रभावित न हों।

 

विचारमंथन, यानि विचार, वाक्य, और सुवचन की चर्चा, पुस्तकों के माध्यम से होने वाली बहुत महत्वपूर्ण चर्चा का हिस्सा होती है। यह पाठकों को विचारों के विस्तारित और गहरे रूप से समझने में मदद करता है, जिससे उनका दृष्टिकोण विकसित होता है और उनका ज्ञान विकसता है।

 

इसके रूप में, पाठ्येतर पुस्तकों का महत्व समझना चाहिए, और हमें इनकी सुरक्षा और सवालों का मंथन करने के लिए सहयोगी बनना चाहिए, ताकि हमारे समाज में ज्ञान का प्रसार और साहित्यिक सृजना का समर्थन किया जा सके।

संभाषणीय

सुप्रसिद्‌ध कवि गुलजार की अन्य किसी कविता का मौन वाचन करते हुए आनंदपूर्वक रसास्‍वादन कीजिए तथा निम्‍न मुद्‌दों के आधार पर केंद्रीय भाव स्‍पष्‍ट कीजिए ।

IMG 20230927 132235 पाठ ४ – किताबें

उत्तर: गुलजार जी के अद्भुत कविता “चाँदनी रातें” को मौन वाचन करते हुए, मुझे अत्यधिक आनंद आया। इस कविता में वे एक चाँदनी रात के माहौल को बयां करते हैं और उसकी सुंदरता को चित्रित करते हैं। उनके शब्द रंगों की भांति फैल जाते हैं और मन को एक शांत और सुरम्य जगह पर ले जाते हैं।

 

इस कविता का उद्देश्य चाँदनी रातों की मागीकल और प्रिस्टाइन फीलिंग को प्रस्तुत करना है। गुलजार जी रात के सान्नाटे और चाँद की तारीक़ों के साथ एक संवाद का सौंदर्य बयां करते हैं जो हमें अपने जीवन की मानसिक और भावनात्मक सांत्वना से भर देता है।

 

इस कविता में मुख्य भाव हैं – प्रियता, चैतन्यता, और सौंदर्य। चाँद के नीरस आकर्षण से प्रेरित, गुलजार जी एक मानसिक दृश्य को जीवंत करते हैं, जो हमारे अंतरात्मा की गहराइयों तक पहुँचता है। वे यहाँ पर एक चाँदनी रात के नीरस बिना कुछ कहे ही खुशियों की भावना को साझा करते हैं, जो हमें हमारे अस्तित्व की गहराइयों को समझने की ओर प्रेरित करती हैं।

 

इस कविता के माध्यम से, गुलजार जी हमें अपने भावनाओं और अंदर के शांति के साथ जुड़ने का एक अद्वितीय मौका देते हैं, और हमारे अंतर्निहित दुनिया को अनुभव करने की साहसी भावना को प्रोत्साहित करते हैं।

पठनीय

पाठ्‌यपुस्‍तक की किसी एक कविता का मुखर एवं मौन वाचन कीजिए ।

उत्तर: छात्रों को यह स्वयं करना चाहिए।

श्रवणीय

सफदर हाश्मी रचित ‘किताबें कुछ कहना चाहती हैं’ कविता सुनिए।

उत्तर: 

किताबें

– सफदर हाश्मी 

 

किताबें करती हैं बातें

बीते जमानों की

दुनिया की, इंसानों की

आज की कल की

एक-एक पल की।

खुशियों की, गमों की

फूलों की, बमों की

जीत की, हार की

प्यार की, मार की।

सुनोगे नहीं क्या

किताबों की बातें?

किताबें, कुछ तो कहना चाहती हैं

तुम्हारे पास रहना चाहती हैं।

किताबों में चिड़िया दीखे चहचहाती,

कि इनमें मिलें खेतियाँ लहलहाती।

किताबों में झरने मिलें गुनगुनाते,

बड़े खूब परियों के किस्से सुनाते।

किताबों में साईंस की आवाज़ है,

किताबों में रॉकेट का राज़ है।

हर इक इल्म की इनमें भरमार है,

किताबों का अपना ही संसार है।

क्या तुम इसमें जाना नहीं चाहोगे?

जो इनमें है, पाना नहीं चाहोगे?

किताबें कुछ तो कहना चाहती हैं,

तुम्हारे पास रहना चाहती हैं!

आसपास

‘पुस्‍तकांचे गाव- भिलार’ संबंधी जानकारी समाचार पत्र/अंतरजाल आदि से प्राप्त कीजिए और उसे देखने का नियोजन कीजिए ।

उत्तर: छात्रों को यह स्वयं करना चाहिए।

कल्पना पल्लवन

‘ग्रंथ हमारेगुरु’ चर्चा कीजिए तथा अपने विचार लिखिए ।

उत्तर: 

ग्रंथ हमारे गुरु’

 

कहावत है ‘गुरु बिन होत ज्ञान’ । अर्थात बिना गुरु नहीं मिलता। गुरु सदा हमारा उचित मार्गदर्शन करते हैं। गुरु की महिमा सभी लोग स्वीकार करते हैं। के ज्ञान ग्रंथों में ज्ञान का भंडार होता है। यह ज्ञान हमें ग्रंथ पढ़ने से मिलता है। हम जिससे ज्ञान प्राप्त करते हैं, उसे हम अपना गुरु मानते हैं । ग्रंथों से भी हमें ज्ञान की प्राप्ति होती है । इसलिए ग्रंथों को भी गुरु का दर्जा दिया जाता है।

 

विद्वान व्यक्ति ग्रंथों की रचना मनुष्य की भलाई के लिए करते हैं। कहानियाँ, उपन्यास लोगों का मनोरंजन करते हैं और उनसे हमें कुछ सीखने को मिलता है । ‘रामायण’, ‘महाभारत’ तथा ‘भगवद्गीता’ अनेक महापुरुषों के प्रेरणा स्रोत हैं ।

 

गुरु सर्वत्र उपलब्ध नहीं होते। इसलिए सद्ग्रंथ गुरु की कमी की पूर्ति करते हैं । ग्रंथों में गुरु के सारे गुण विद्यमान होते हैं। जिस तरह, गुरु किसी के साथ भेदभाव नहीं करते और अपना सारा ज्ञान शिष्य को प्रदान कर खुश होते हैं, उसी तरह ग्रंथ भी बिना भेदभाव के अपना सब कुछ पाठक को प्रदान कर देना चाहते हैं ।

 

इसलिए ग्रंथ हमारे गुरु हैं । हमारे आध्यात्मिक गुरु ।

पाठ के आँगन में

(१) सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

(क) पाठ के आधार पर वाक्य पूर्ण कीजिए :

१. किताबों की अब बनी आदत ……….

उत्तर: नींद में चलने की

 

२. किताबें जो रिश्ते सुनाती थीं ………. 

उत्तर: घर में वो कदरें अब नजर नहीं आती

(ख) लिखिए :

IMG 20230927 132310 पाठ ४ – किताबें

उत्तर: 

IMG 20230927 132517 पाठ ४ – किताबें

ग) आकृति :

IMG 20230927 132327 पाठ ४ – किताबें

उत्तर: 

IMG 20230927 132531 पाठ ४ – किताबें

(२) प्रथम पाँच पंक्‍तियों का भावार्थ लिखिए :

उत्तर: किताबें मनुष्य की साथी हैं। किंतु कंप्यूटर के अधिकाधिक प्रयोग के कारण इनमें लोगों की रुचि कम होने लगी है। अब स्थिति यह है कि ये किताबें बंद अलमारी के शीशों से झाँकती हैं। बड़ी उम्मीद से शीशों के बाहर ताकती हैं कि कोई आए और आलमारी से निकाल कर उन्हें पढ़े । एक समय था जब मनुष्यों की शामें किताबों के संगत में व्यतीत होती थीं और अब स्थिति यह है कि महीनों तक मनुष्य और किताबों की मुलाकात नहीं होती।

पाठ से आगे

अपने तहसील/जिले के शासकीय ग्रंथालय संबंधी जानकारी निम्‍नलिखित मुद्दों के आधार पर प्राप्त कीजिए :

स्‍थापना-तिथि/वर्ष, संस्‍थापक का नाम, पुस्‍तकों की संख्या, विषयों के अनुसार वर्गीकरण

उत्तर: छात्रों को यह स्वयं करना चाहिए।

भाषा बिंदु

शब्‍द-युग्‍म पूरे करते हुए वाक्‍यों में प्रयोग कीजिए:

घर – 

उत्तर: 

घर-द्वार – पिता के डाँटने पर रमेश अपना घर-द्वार छोड़कर शहर चला गया।

 

उधड़े – 

उत्तर: 

उधड़े – उधड़े – पुस्तकालय में सही रख-रखाव न होने के कारण पुस्तकों के पन्ने उधड़े उधड़े हैं।

 

भला – 

उत्तर: 

भला-बुरा – नौकर से गमला टूट जाने के कारण मालिक उसे भला-बुरा कहने लगा।

 

प्रचार – 

उत्तर: 

प्रचार-प्रसार – आजकल हमारे देश में सफाई अभियान का प्रचार- प्रसार बहुत जोरों से चल रहा है।

 

भूख – 

उत्तर: 

भूख-प्यास – लंबी यात्रा के कारण यात्री भूख-प्यास से व्याकुल थे।

 

भोला - 

उत्तर: 

भोला-भाला – रामू बहुत ही भोला-भाला लड़का है।

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