पाठ ४ – गाँव - शहर
कवि कहते हैं कि आज हर तरफ परिवर्तन की लहर सी चल रही है। आज जिधर देखो, बदलाव नजर आता है। मौसम यानि माहौल बदला-बदला लगता है। इस बदलाव को शहर अचरज से देखता है और गाँव टकटकी लगाकर देखता है। वह दंग है। गाँवों से लोग रोजगार और काम की तलाश में रोज शहरों की ओर जा रहे हैं। शहर ठसाठस भरे हुए हैं। वहाँ तिल रखने की भी जगह नहीं है। दूसरी ओर लोगों के पलायन से गाँव खाली हो गए हैं। गाँवों में खेतों की देखभाल करने वाला कोई नहीं है। गाँवों से लाखों लोग शहर आ तो रहे हैं पर उनके पास रहने को जगह नहीं है। परमेसुर जैसा कोई मेट्रो के खंभे के नीचे, तो कोई सड़क के किनारे रात गुजारता है। इसलिए गाँव और शहर इस परिवर्तन से आश्चर्यचकित हैं।
दूसरी ओर शहरों का यह आलम है कि आँख खुलते ही लोगों को काम के लिए निकलना पड़ता है। वहीं दिन निकलते ही भागमभाग शुरू हो जाती है। रेडियो स्टेशन पर रामदीन समाचारों की राह देख रहा है। उसे बड़ी घबराहट हो रही है कि कहीं बाहर से आने वाले लोगों के लिए कोई बुरी खबर तो नहीं है। सुरसतिया के दोनों बेटों की तरह गाँव के अनेकानेक युवक काम की तलाश में सूरत जैसे शहरों में जाते हैं और गाँवों में उनके खेत जोतने बोने वाला, खेतों की देखभाल करने वाला कोई नहीं है। जिन जमिनों में सोने जैसा गेहूँ उगता था, वे खाली पड़ी हैं। उन खेतों में गिलहरियां अब ठंड के मौसम में धूप सेंकती हैं। गाँवों का शहरीकरण हो गया है। अर्थात वहाँ पक्की सड़कें बन गई हैं। उन सड़कों पर चलने के कारण गायों के खुर खराब हो गए हैं, घिस गए हैं और अब वे लँगड़ाकर चलती हैं। इस बदलाव को शहर अचरज से देखता है और गाँव टकटकी लगा कर देखता है।
दीदा – आँख, दृष्टि, निगाह
परमेसुर – परमेश्वर (एक नाम)
आलम – दुनिया, जगत, जहान
गिल्ली – गिलहरी
गैया – गाय
घमाना – धूप खाना
कल्पना पल्लवन
‘भारतीय संस्कृति के दर्शन देहातों में होते हैं’ इस तथ्य पर अपने विचार लिखो।
उत्तर: भारतीय संस्कृति के दर्शन देहातों में होते हैं। देहातों में लोग आज भी गर्मजोशी से मिलते हैं। एक-दूसरे के दुख तकलीफ में काम आते हैं। नगरों में बहुत-से लोग पड़ोसी तक को नहीं पहचानते। दोस्तों-रिश्तेदारों के लिए उनके पास समय ही नहीं होता। यहाँ लोगों के पास पैसा है, सुविधाएँ हैं, पर वे शांति तथा अपनत्व से वे कोसों दूर होते हैं। जबकि देहातों में लोगों का जीवन भागदौड़ से दूर, प्रकृति के करीब, अपनेपन से भरा-पूरा होता है। वहाँ आज भी खुला आसमान है। वातावरण शुद्ध व प्राकृतिक है, जबकि नगरों मे आसमान दिखाई ही नहीं पड़ता। बड़े पैमाने पर वाहनों से होने वाला प्रदूषण, लगातार होने वाला शोर, भीड़, धुआँ असहज महसूस कराता है। भीड़भाड़, ट्रैफिक जाम और अपराध नगरों में रोज की बात है। देर रात तक ऑफिस, दुकानें खुली रहती हैं। बस, ट्रेन, टैक्सियाँ, स्कूटर्स सड़कों पर दौड़ते रहते हैं। जबकि देहातों में आज भी धूप, हरियाली और शांति का आनंद प्राप्त किया जा सकता है।
स्वाध्याय
सूचना के अनुसार कृतियाँ करो :-
(१) तुलना करो :
उत्तर:
(२) उचित जोड़ियाँ मिलाओ :
अ
१. मेट्रो
२. पीपल
आ
गाँव
कस्बा
शहर
उत्तर:
अ
१. मेट्रो
२. पीपल
आ
शहर
गाँव
(३) कृति पूर्ण करो :
उत्तर:
(४) एक शब्द में उत्तर लिखो :
१. लँगड़ाकर चलने वाली –
उत्तर: गैया
२. पत्ते झरा हुआ वृक्ष –
उत्तर: पीपल
३. बदले-से लगते हैं –
उत्तर: सुर
४. जहाँ तिल रखने की जगह नहीं है।
उत्तर: शहर
भाषा बिंदु
पाठ्यपुस्तक के पाठों से विलोम और समानार्थी शब्द ढूँढ़कर उनकी सूची बनाओ और उनका अलग-अलग वाक्यों में प्रयोग करो।
उत्तर:
(१) सुख – सुख के दिन सरदियों के दिन की भाँति कब समाप्त हो जाते हैं, पता ही नहीं चलता।
दुख – दुख के दिन गरमियों की लंबी दोपहर के समान काटना मुश्किल हो जाता है।
(२) प्रश्न – प्रश्नपत्र में पहला प्रश्न बड़ा कठिन था।
उत्तर – क्या तुमने सभी उत्तर एक बार फिर देख लिए?
(३) छोटा – मेरे लगाए पौधे में आज एक छोटा-सा गुलाब खिला है।
बड़ा – मेरा बड़ा भाई पढ़ाई में मेरी बहुत सहायता करता है।
(४) बूढ़ा – सड़क पर एक बूढ़ा भिखारी बैठा है।
जवान – गाँव के कुछ जवान फौज में भर्ती हो गए हैं।
(५) पति – कल मेरी बहन के पति को अर्जुन पुरस्कार – मिलेगा।
पत्नी – हिडिंबा पांडव भीम की पत्नी थी।
(६) गाँव – हमारा गाँव गोदावरी नदी के किनारे है।
शहर – मुंबई शहर में दिनोंदिन भीड़ बढ़ती जा – रही है।
(७) शीत – शीत ऋतु में पहाड़ों में जीवन दुष्कर हो जाता है।
ताप – राजस्थान में ग्रीष्म का ताप असहनीय होता है।
उपयोजित लेखन
वृक्ष और पंछी के बीच का संवाद लिखो।
उत्तर:
पंछी : बरगद दादा, आज ऐसे उदास क्यों दिख रहे हो?
बरगद : नहीं, बस ऐसे ही।
पंछी : दादा, मैं बरसों से आपकी डालियों में ही घर बनाकर रहता हूँ। मैंने कभी आपको इतना चुप, ऐसा उदास नहीं देखा। कोई तो बात है, जो आपको परेशान कर रही है।
बरगद : हाँ बेटा, बात तो है। मैं यह सोच-सोचकर हैरान- परेशान हूँ कि हमारे जंगल कैसे थे और अब कैसे हो गए हैं।
पंछी : क्यों जंगलों को क्या हो गया?
बरगद : तुमने ध्यान नहीं दिया कि तुम्हारे आसपास के वृक्ष कम होते जा रहे हैं। आए दिन लोग आते हैं और हरे-भरे वृक्षों को काट डालते हैं।
पंछी : हाँ, देखा तो है।
बरगद : ये लोग इस बात को नहीं समझ रहे हैं कि वृक्ष सभी प्राणियों के लिए कितने उपयोगी हैं। वृक्ष अनेक प्रकार के पदार्थ तो देते ही हैं पर सबसे महत्त्वपूर्ण है कि ये वातावरण से जहरीली वायु को लेकर उसे शुद्ध कर देते हैं।
पंछी : मनुष्य तो सबसे बुद्धिमान प्राणी माना जाता है दादा । फिर वह ऐसा क्यों कर रहा है।
बरगद : बुद्धिमान तो है, पर वह केवल वर्तमान के बारे में सोचता है। भविष्य या आने वाली पीढ़ी के बारे में नहीं सोचता। मैं यही सोचकर चिंतित हूँ कि आने वाले समय में इस हरी-भरी धरती का क्या होगा ?
स्वयं अध्ययन
यातायात के नियम, सांकेतिक चिह्न एवं हेल्मेट की आवश्यकता आदि के चार्टस बनाकर विद्यालय की दीवारें सुशोभित करो।
उत्तर: छात्रों को यह स्वयं करना चाहिए।