पाठ ८ – गजल
प्रस्तुत गजल से ‘कर्म ही पूजा है’ का भाव स्पष्ट होता है। गजलकार ने व्यक्ति को समझाते हुए कहा है कि उसे सुनहरा शिखर बनने की अपेक्षा नींव को मजबूत बनाने का कार्य करना चाहिए। व्यक्ति को तन की सुंदरता से अधिक कर्म को महत्त्व देना चाहिए। उसे मील का पत्थर बनकर दूसरों का पथ-प्रदर्शक बनना चाहिए। इंसान को इंसान बनकर रहने में ही श्रेष्ठता व भलाई है। उसे इस कठोर हृदय वाली दुनिया में अपने आप को सँभालकर रखते हुए दूसरों के जीवन को प्रेरित करने का भी कार्य करना चाहिए। इंसान के पास परदुखकातरता का भाव होना चाहिए, ताकि वह दूसरों के दुख-दर्द को समझ सके। उसे अपने जीवन में मर्यादा का पालन करना चाहिए और जीवन में उत्पन्न होनेवाली प्रतिकूल परिस्थितियों के साथ जूझना चाहिए। असफलता प्राप्त होने के बावजूद भी संघर्ष करना चाहिए। जीवन में अच्छा कर्म करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को आगे आना चाहिए। इसमें सभी की भलाई निश्चित है।
स्वर्णिम – सोने के रंग का/सुनहला
गर्द – धूल
शक्ल – चेहरा
धुंध – धुआँ, कोहरा
आपसे किसने कहा स्वर्णिम शिखर बनकर दिखो,
शौक दिखने का है तो फिर नींव के अंदर दिखाे ।
अर्थ: गजलकार कहते हैं कि व्यक्ति को सुनहरे रंग का शिखर बनकर दिखने की कुछ भी जरूरत नहीं। व्यक्ति को दिखावे की क्या जरूरत ? उसे तो अपने कर्म के द्वारा स्वयं अपनी पहचान बनानी चाहिए। यदि व्यक्ति को दिखावा करने का इतना ही शौक है, तो उसे नींव के अंदर स्वयं को रखकर देखना चाहिए यानी व्यक्ति को शिखर पर सुनहरी चमक की भाँति दीप्तिमान होने के बजाय नींव को मजबूत करने का कार्य करना चाहिए। व्यक्ति कर्म से ही पहचाना जाता है, दिखावे से नहीं।
चल पड़ी तो गर्द बनकर आस्मानों पर लिखो,
और अगर बैठो कहीं ताे मील का पत्थर दिखाे ।
अर्थ: गजलकार कहते हैं, “गर्द अथवा धूल हवा के झोंके के साथ आगे ही आगे चल पड़ती है। यहाँ तक कि वह ऊँचे आसमान में भी फैल जाती है। देखा जाए तो गर्द सामान्य होती है, फिर भी वह आसमान पर अपना अधिकार कर लेती है। इंसान तो उससे महान होता है। अगर वह चाहे, तो मील का पत्थर बनकर सभी के लिए पथ-प्रदर्शक का कार्य कर सकता है। वह अपने अच्छे कार्यों से समाज के सामने एक मिसाल प्रस्थापित कर सकता है।”
सिर्फ देखने के लिए दिखना कोई दिखना नहीं,
आदमी हो तुम अगर तो आदमी बनकर दिखाे ।
अर्थ: गजलकार कहते हैं, “दूसरे हमारे रंग-रूप को देखकर हमारी तारीफ करें, इसलिए अपने आप को दिखावे की वस्तु बनाकर समाज के सामने प्रस्तुत होने में किसी भी प्रकार की भलाई नहीं है। आखिर हम आदमी हैं, तो हमें आदमी बनकर समाज के सामने प्रस्तुत होना चाहिए। हमारे हृदय में जो आदमियत सोई हुई है, उसे जगाकर सभी के कल्याण के लिए हमें आगे आना चाहिए।”
जिंदगी की शक्ल जिसमें टूटकर बिखरे नहीं,
पत्थरों के शहर में वो आईना बनकर दिखो ।
अर्थ: गजलकार कहते हैं, “व्यक्ति को अपनी जिंदगी स्वयं ही सुंदर व समृद्ध बनानी चाहिए। पत्थरों के इस शहर में यानी कठोर हृदयवाले लोगों की इस दुनिया में व्यक्ति को अपनी जिंदगी स्वयं सँवारनी होगी। उसे ऐसा आईना बनने की जरूरत है, जिसमें वह अपनी जिंदगी रूपी सूरत को हमेशा तरोताजा व प्रसन्न रख सकता है।”
आपको महसूस होगी तब हरइक दिल की जलन,
जब किसी धागे-सा जलकर मोम के भीतर दिखाे ।
अर्थ: गजलकार कहते हैं, “मोम के अंदर धागा होता है। वह जलता रहता है, किंतु दूसरों को रोशनी देता है। व्यक्ति को भी मोम के अंदर समाए हुए धागे की भाँति दूसरों के लिए मर मिटने के लिए तैयार होना चाहिए। जब ऐसा होगा, तब व्यक्ति को अन्य लोगों की व्यथा-वेदना का एहसास होगा; तब जाकर व्यक्ति दूसरों की पीड़ा को स्वयं के मन में महसूस करने लगेगा। व्यक्ति में संवेदनशीलता का होना बेहद जरूरी है।”
एक जुगनू ने कहा मैं भी तुम्हारे साथ हूँ,
वक्त की इस धुंध में तुम रोशनी बनकर दिखो ।
अर्थ: गजलकार कहते हैं, “जुगनू यानी रात में चमकने वाला एक ऐसा कीट, जो स्वयं प्रकाशित होता है। अच्छे कार्य के लिए एक जुगनू भी व्यक्ति का साथ देना चाहता है। व्यक्ति को सिर्फ अच्छे कार्य के लिए आगे आना चाहिए। उसे विपरीत परिस्थितियों में यानी अंधकार रूपी जीवन में रोशनी बनकर दूसरों का पथ-प्रदर्शक बनना चाहिए।”
एक मर्यादा बनी है हम सभी के वास्ते,
गर तुम्हें बनना है मोती सीप के अंदर दिखो ।
अर्थ: गजलकार कहते हैं, “जीवन में सभी को मर्यादा का पालन करना पड़ता है। मर्यादा के बिना व्यक्ति विकास संभव नहीं है। मोती अपने निर्मिती-काल में सीप के अंदर होता है। वह भी मर्यादा का पालन करता है तब जाकर वह चमकीला व मूल्यवान होता है। यदि व्यक्ति को भी अपने जीवन में सफलता की मंजिल हासिल करनी है, तो उसे अपने जीवन में मर्यादा का पालन अवश्य करना पड़ेगा। व्यक्ति के पास सहनशीलता का भाव होना चाहिए।”
डर जाए फूल बनने से कोई नाजुक कली,
तुम ना खिलते फूल पर तितली के टूटे पर दिखो ।
अर्थ: गजलकार कहतें हैं, “यदि नाजुक कली फूल बनने से डर जाए, तो वह सुंदर फूल का रूप धारण नहीं कर सकती। उसी प्रकार व्यक्ति को भी विपरीत परिस्थिति में डरना नहीं चाहिए। यदि वह भयभीत हुआ, तो वह सफलता हासिल नहीं कर सकता। व्यक्ति को न खिले हुए फूल पर तितली के टूटे हुए पंखों की भाँति दिखना चाहिए। इसका अर्थ यह है, भले ही व्यक्ति जीवन में असफल हो; फिर भी उसे अपने मन में धैर्य रखकर आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। संघर्ष के साथ जूझते हुए व्यक्ति को आगे बढ़ना चाहिए।”
कोई ऐसी शुक्ला तो मुझको दिखे इस भीड़ में,
मैं जिसे देखूँ उसी में तुम मुझे अक्सर दिखो ।
अर्थ: गजलकार कहते हैं, “दुनिया की इस भीड़ में कोई ऐसी शक्ल दिखने के लिए मिल जाए, जिसे वह देखता है, उसी में सभी लोग उसे अक्सर दिखाई दें। अर्थात, दुनिया की इस भीड़ में कोई ऐसा एक व्यक्ति अच्छे कर्म करने के लिए आगे आ जाए और उसी से प्रेरणा पाकर सभी लोग अच्छा कर्म करने के लिए प्रेरित हो जाएँ।
स्वाध्याय
सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए :-
(१) गजल की पंक्तियों का तात्पर्य :
१. नींव के अंदर दिखाे
उत्तर: व्यक्ति को अपने अच्छे कर्म के बल पर अपनी पहचान स्वयं बनानी चाहिए।
२. आईना बनकर दिखो
उत्तर: हमें ऐसी शख्सियत बनना चाहिए कि कैसी भी प्रतिकूल परिस्थिति क्यों न हो, हम विचलित न हों। बिना टूटे, बिना बिखरे हर परिस्थिति का डटकर सामना करें। अपने लक्ष्य को प्राप्त करें।
(२) कृति पूर्ण कीजिए :
उत्तर:
(३) जिनके उत्तर निम्न शब्द हों, ऐसे प्रश्न तैयार कीजिए :
१. भीड़
उत्तर: कवि अक्सर किसी शक्ल को कहाँ देखना चाहता है ?
२. जुगनू
उत्तर: वक्त की धुंध में साथ रहने को किसने कहा ?
३. तितली
उत्तर: कवि खिलते फूल के स्थान पर किसे दिखने को कहता है?
४. आसमान
उत्तर: गर्द बनकर कहाँ लिखना चाहिए?
(४) निम्नलिखित पंक्तियों से प्राप्त जीवनमूल्य लिखिए :
१. आपको महसूस ______
______ भीतर दिखो ।
उत्तर: व्यक्ति में संवेदनशीलता होना बेहद जरूरी है।
२. कोई ऐसी शक्ल ______
______ मुझे अक्सर दिखो ।
उत्तर: परदुखकातरता एवं परोपकार से बढ़कर अन्य कोई धर्म नहीं।
(५) कृति पूर्ण कीजिए :
उत्तर:
(६) कवि के अनुसार ऐसे दिखो :
उत्तर:
अभिव्यक्ति
प्रस्तुत गजल की अपनी पसंदीदा किन्हीं चार पंक्तियों का केंद्रीय भाव स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर:
सिर्फ देखने के लिए दिखना कोई दिखना नहीं,
आदमी हो तुम अगर तो आदमी बनकर दिखाे ।
जिंदगी की शक्ल जिसमें टूटकर बिखरे नहीं,
पत्थरों के शहर में वो आईना बनकर दिखो ।
अर्थ: गजलकार कहते हैं, “दूसरे हमारे रंग-रूप को देखकर हमारी तारीफ करें, इसलिए अपने आप को दिखावे की वस्तु बनाकर समाज के सामने प्रस्तुत होने में किसी भी प्रकार की भलाई नहीं है। आखिर हम आदमी हैं, तो हमें आदमी बनकर समाज के सामने प्रस्तुत होना चाहिए। हमारे हृदय में जो आदमियत सोई हुई है, उसे जगाकर सभी के कल्याण के लिए हमें आगे आना चाहिए। वह ये भी कहते हैं, “व्यक्ति को अपनी जिंदगी स्वयं ही सुंदर व समृद्ध बनानी चाहिए। पत्थरों के इस शहर में यानी कठोर हृदयवाले लोगों की इस दुनिया में व्यक्ति को अपनी जिंदगी स्वयं सँवारनी होगी। उसे ऐसा आईना बनने की जरूरत है, जिसमें वह अपनी जिंदगी रूपी सूरत को हमेशा तरोताजा व प्रसन्न रख सकता है।”
उपयोजित लेखन
‘यदि मेरा घर अंतरिक्ष में होता,’ विषय पर अस्सी से सौ शब्दों में निबंध लेखन कीजिए ।
उत्तर: पिछले कई वर्षों में अंतरिक्ष विज्ञान में जो प्रगति हुई है, वह सराहनीय है। पहले अंतरिक्ष यात्रा कल्पना से अधिक कुछ नहीं थी लेकिन आज अंतरिक्ष यात्रा के सपने सच हो गए हैं। रूस ने अंतरिक्ष यान के द्वारा अपने अंतरिक्ष यात्री यूरी गागरिन को पहली बार अंतरिक्ष में भेजा था। फिर तो अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री नील आर्मस्ट्रांग और एडविन एल्ड्रिन सबसे पहले चंद्रमा पर पहुँचने वाले अंतरिक्ष यात्री हो गए।
अब तो ऐसा लगता है कि कभी-न-कभी हम को भी अंतरिक्ष में जाने का मौका मिल सकता है। लेकिन यह कब संभव होगा, कहा नहीं जा सकता। काश, मेरा घर अंतरिक्ष में होता…. यदि सच में मेरा घर अंतरिक्ष में होता तो कितना अच्छा होता। जिस आसमान को दूर से देखा करते हैं, हम उसकी खूब सैर करते। चाँद, सितारों को नजदीक से देखते। बादलों के बीच लुका-छिपी खेलते। परियों के देश में जाते। वे किस तरह रहती हैं, जानने-देखने का अवसर पाते। हम अंतरिक्ष से अपनी सुंदर धरती को देखते। अपने प्यारे भारत को देखते। आकाशगंगा के विभिन्न ग्रहों-उपग्रहों को देखते। सौरमंडल के सबसे सुंदर ग्रह शनि और उसके वलयों को देखते। उनके जितना निकट जा सकते, अवश्य जाते। स्पेस वॉक करते। वहाँ फैली शांति का अनुभव करते। वहाँ के प्रदूषणरहित वातावरण में रहने का मौका मिलता, जिससे हमारा स्वास्थ्य बहुत बढ़िया हो जाता। काश ऐसा हो पाता…