Maharashtra Board Textbook Solutions for Standard Ten

पाठ ६ – गिरिधर नागर

कृष्णभक्त मीराबाई एक महान कवयित्री थीं। उन्होंने कृष्ण को ही अपना पति माना था। वे कृष्ण के प्यार में दीवानी थीं। कृष्ण को पाने के लिए उन्होंने किसी की भी परवाह नहीं की थी। उन्होंने कृष्ण को पाने के लिए लोक-लज्जा को त्यागकर संतों के पास जाकर बैठना स्वीकार कर लिया था। उन्होंने अपने पदों के माध्यम से ‘संत संगति एवं भक्तों का साथ ईश्वर प्राप्ति का सबसे सहज एवं सुलभ मार्ग है’ यह बताने की कोशिश की है। ईश्वर के बिना व्यक्ति का अपना निजी अस्तित्व नहीं होता, इसलिए व्यक्ति को ईश्वर के नाम का बार-बार जप करना चाहिए। मीराबाई को कृष्ण से मिलने की उत्सुकता है। अतः वे फागुन के महीने में आने वाला होली का त्योहार बड़ी ही खुशी के साथ मनाती हैं। वे होली के रंग खेलती हैं। प्रेमरूपी पिचकारी के जरिए वे अपने आराध्य पर रंगों की बौछार करती हैं। इस प्रकार कृष्ण के प्रेम में दीवानी मीरा अपनी भक्ति कृष्ण को समर्पित करती हैं।

शब्दार्थ

कुल – वंश, घराना

ढिग – पास, निकट

मथनियाँ – मथनी, दही मथने का साधन

रावरी – आपकी

चेरी – चेली, दासी

नेरी – पास, निकट

छतीसूँ – श्रेष्‍ठ

कँवल – कमल

बलिहारना – निछावर करना

(१)

 

मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई

जाके सिर माेर मुकट, मेरो पति सोई

छाँड़ि दई कुल की कानि, कहा करिहै कोई ?

संतन ढिग बैठि-बैठि, लोक लाज खोई ।

अँसुवन जल सींचि-सींचि प्रेम बेलि बोई ।

अब तो बेल फैल गई आणँद फल होई ।।

दूध की मथनियाँ बड़े प्रेम से बिलोई । 

माखन जब काढ़ि लियो छाछ पिये कोई ।।

भगत देखि राजी हुई जगत देखि रोई ।

दासी ‘मीरा’ लाल गिरिधर तारो अब मोही ।।

 

अर्थ: मीराबाई कहती है कि मेरे तो श्री कृष्ण हैं, मेरे जीवन में दूसरा कोई भी नहीं है। अर्थात किसी दूसरे से मेरा कोई संबंध नहीं है। जिसके सिर पर मोर का मुकुट शोभायमान है वहीं कृष्ण मेरे पति हैं । मीरा कहती है कि साधु-संतों के पास बैठ बैठ कर मैंने अपना मान-सम्मान खोया है । भले ही मुझे कोई कुछ भी कहे उनके बातों से मुझे कोई अंतर नहीं पड़ता है। मैंने कृष्ण के प्रेम में मैंने अपना सब कुछ खो दिया । अब मुझे किसी बात की शर्म नहीं है । मैने भक्ति और प्रेमरूपी बेल को अपने आँसूओ से सींच सींचकर बोया है और अब तो वह कृष्णरूपी बेल फलने – फूलने लगी है और उसमें आनंदरूपी फल भी आने लगा है। मीराबाई कहती है कि मैंने दूध, दही मखन वाली प्रेम रुपी दही को तथा मैने उसने कुष्ण की प्रेमरूपी मक्खन को निकाल लिया है। अब है, तब छाछ कोई और पिए। मैंने असका त्याग कर दिया है अर्थात सांसरिक मोहमायाका त्याग कर दिया है। भक्तों को देखकर मैं प्रसन्न होती हूँ और इस संसार के झूठे रंग ढंग को देखकर रोती हूँ। मीरा कृष्ण से प्रार्थना करते हुए कहती हैं कि मैं आपकी दासी हूँ। है। कृष्ण अब मुझे इस भवसागर से पार उतारिए अर्थात मेरा उद्धार किजिए। 

 

 

(२)

 

हरि बिन कूण गती मेरी ।।

तुम मेरे प्रतिपाल कहिये मैं रावरी चेरी ।।

आदि-अंत निज नाँव तेरो हीमायें फेरी ।

बेर-बेर पुकार कहूँ प्रभु आरति है तेरी ।।

यौ संसार बिकार सागर बीच में घेरी ।

नाव फाटी प्रभु पाल बाँधो बूड़त है बेरी ।।

बिरहणि पिवकी बाट जौवै राखल्‍यो नेरी ।

दासी मीरा राम रटत है मैं सरण हूँ तेरी ।।

 

अर्थ: प्रस्तुत पद के माध्यम से मीराबाई करती है- हे श्रीकृष्ण ! आपके बिना मेरा किसी भी प्रकार का अस्तित्व नहीं है। आप ही मेरे पालनहार है और मैं आपके चरणों की दासी हूँ। मैंने अपने जीवन की शुरुआत से आपका नाम से जपना शुरू किया है और जीवन के अंत काल तक मैं आपका ही नाम जपती रहूंगी आपके ही नौकारूपी नाम पर सवार होकर मैं भवसागर पार उतरूँगी । मैं बार- बार आपकी ही आरती गाती रहूँगी। मैं इस निरर्थक संसार रूपी सागर के बीच में घिर गई हूँ। मेरी नौकारुपी नाथ को डूबाने के लिए प्रतिकूल परिस्थितियाँ निर्माण हो रही है। अतः आप ही मेरी नाम को डूबने से बचा सकते हो। मैं तो आपके विरह में विरहणी होकर जीवन बीता रही हूँ। आप ही मुझे आपके पास आने का रास्ता बता सकते हो। मैं तो आपकी दासी हूँ। मैं हमेशा राम नाम का जाप रहती हूँ ।

 

 

(३)

 

फागुन के दिन चार होरी खेल मना रे ।

बिन करताल पखावज बाजै, अणहद की झनकार रे ।

बिन सुर राग छतीसूँ गावै, रोम-रोम रणकार रे ।।

सील संतोख की केसर घोली, प्रेम-प्रीत पिचकार रे ।

उड़त गुलाल लाल भयो अंबर, बरसत रंग अपार रे ।।

घट के पट सब खोल दिए हैं, लोकलाज सब डार रे ।

‘मीरा’ के प्रभु गिरिधर नागर, चरण कँवल बलिहार रे ।।

 

अर्थ: मीराबाई कहती है फागुन का महीना आया है इसलिए हे मन होली खेलो । बिना करताल के पखवाज बज रहा है। उसे सुनकर मेरी अंतरात्मा में झंकार सुनाई दे रही है मैं सुरों को सहायता बिना भी श्रेष्ठ राग गा रही हूँ। मेरा रोम-रोम रोमांचित हो गया है। मैंने शील व संतोष से केसरिया रंग घोला है तथा प्रेमरूपी पिचकारी बनाई है। चारों ओर गुलाल उड़ रहा है जिससे पुरा आकाश लाल हो गया है। प्रेमरूपी रंग चारों दिशाओं से बरस रहे हैं। मैंने शरीररूपी वस्त्र को त्याग कर लोक लज्जा सब छोड़ दिया है। श्रीकृष्ण हो मेरे गिरिधर नागर हैं। वे हो भवसागर से मेरा बेड़ा पार उतारेंगे इसलिए मैं उनके कमल रूपी चरणों पर अपने आप को निछावर करती हूँ ।

स्‍वाध्याय

सूचनानुसार कृतियाँ कीजिए :-

(१) संजाल पूर्ण कीजिए :

IMG 20230915 104951 पाठ ६ – गिरिधर नागर

उत्तर:

IMG 20230915 105550 पाठ ६ – गिरिधर नागर

(२) प्रवाह तालिका पूर्ण कीजिए :

IMG 20230915 105004 पाठ ६ – गिरिधर नागर

उत्तर:

IMG 20230915 105801 पाठ ६ – गिरिधर नागर

(३) इस अर्थ में आए शब्‍द लिखिए :

IMG 20230915 105039 पाठ ६ – गिरिधर नागर

उत्तर:

(१) दासी – चेरी

(२) साजन – पति

(३) बार-बार – बेर – बेर 

(४) आकाश – अंबर

(४) कन्हैया के नाम :

IMG 20230915 105024 पाठ ६ – गिरिधर नागर

उत्तर:

IMG 20230915 105343 पाठ ६ – गिरिधर नागर

(५) दूसरे पद का सरल अर्थ लिखिए ।

उत्तर: प्रस्तुत पद के माध्यम से मीराबाई करती है- हे श्रीकृष्ण ! आपके बिना मेरा किसी भी प्रकार का अस्तित्व नहीं है। आप ही मेरे पालनहार है और मैं आपके चरणों की दासी हूँ। मैंने अपने जीवन की शुरुआत से आपका नाम से जपना शुरू किया है और जीवन के अंत काल तक मैं आपका ही नाम जपती रहूंगी आपके ही नौकारूपी नाम पर सवार होकर मैं भवसागर पार उतरूँगी । मैं बार- बार आपकी ही आरती गाती रहूँगी। मैं इस निरर्थक संसार रूपी सागर के बीच में घिर गई हूँ। मेरी नौकारुपी नाथ को डूबाने के लिए प्रतिकूल परिस्थितियाँ निर्माण हो रही है। अतः आप ही मेरी नाम को डूबने से बचा सकते हो। मैं तो आपके विरह में विरहणी होकर जीवन बीता रही हूँ। आप ही मुझे आपके पास आने का रास्ता बता सकते हो। मैं तो आपकी दासी हूँ। मैं हमेशा राम नाम का जाप रहती हूँ ।

उपयोजित लेखन

निम्‍नलिखित शब्‍दों के आधार पर कहानी लेखन कीजिए तथा उचित शीर्षक दीजिए।

अलमारी, गिलहरी, चावल के पापड़, छोटा बच्चा 

उत्तर: 

जीव दया 

एक गाँव में एक छोटा बच्चा रहता था। उसका नाम चिंटू था। एक दिन चिंटू अपने घर के बाहर खेल रहा था। उसने देखा कि सामने एक पेड़ के नीचे दो-तीन कौए किसी चीज पर चोंच मार रहे हैं और वहाँ से हल्की-हल्की चीं-चीं की आवाज आ रही है। चिंटू दौड़कर वहाँ पहुँचा और उसने उन कौओं को वहाँ से उड़ाया। उसने देखा कि एक छोटी-सी गिलहरी वहाँ चीं-चीं कर रही थी। उसका शरीर कौओं की चोंच से घायल हो गया था। चिंटू ने अपनी जेब से रूमाल निकाला और डरे बिना धीरे से गिलहरी को उठा लिया। उसने घर के अंदर लाकर उसे पानी पिलाया, उसके घावों को साफ करके उन पर सोफ्रामाइसिन लगाई और उसे मेज पर बैठा दिया। गिलहरी कुछ देर बाद धीरे-धीरे मेज पर घूमने लगी। मेज पर एक प्लेट में चावल के पापड़ रखे थे। गिलहरी ने एक पापड़ उठाया और अपने अगले दोनों पंजों में पकड़कर धीरे-धीरे उसे खाने लगी। चिंटू को बहुत अच्छा लगा। उसने माँ से पूछा कि जब तक गिलहरी बिलकुल ठीक नहीं हो जाती क्या मैं उसे अपने पास रख सकता हूँ। अभी अगर वह बाहर जाएगी तो कौए उसे अपना आहार बना लेंगे। माँ को चिंटू की ऐसी सोच पर गर्व हुआ और उन्होंने खुशी- खुशी उसकी बात मान ली। चिंटू ने अपनी किताबों की खुली आलमारी के एक खाने में एक तौलिया बिछाकर गिलहरी को बैठा दिया। उसके पास चावल के कुछ पापड़ तथा अमरूद के कुछ टुकड़े रख दिए । तीन-चार दिन बाद जब गिलहरी अच्छी तरह दौड़ने लगी तो चिंटू ने उसे बाहर पेड़ पर छोड़ दिया।

 

सीख : हमें पशु-पक्षियों के प्रति दया भाव रखना चाहिए।

अपठित पद्‌यांश

सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

काम जरा लेकर देखो, सख्त बात से नहीं स्‍नेह से
अपने अंतर का नेह अरे, तुम उसे जरा देकर देखो ।
कितने भी गहरे रहें गर्त, हर जगह प्यार जा सकता है,
कितना भी भ्रष्‍ट जमाना हो, हर समय प्यार भा सकता है ।
जो गिरे हुए को उठा सके, इससे प्यारा कुछ जतन नहीं,
दे प्यार उठा पाए न जिसे, इतना गहरा कुछ पतन नहीं ।।

(भवानी प्रसाद मिश्र)

(१) उत्‍तर लिखिए :

१. किसी से काम करवाने के लिए उपयुक्‍त –

उत्तर: स्नेह से

 

२. हर समय अच्छी लगने वाली बात

उत्तर: प्यार की बातें

 

(२) उत्‍तर लिखिए :

१. अच्छा प्रयत्‍न यही है –

उत्तर: जो गिरे हुए को उठा सके।

 

२. यही अधोगति है –

उत्तर: जो प्यार से किसी को उठा न पाए।

 

(३) पद्‌यांश की तीसरी और चौथी पंक्‍ति का संदेश लिखिए ।

उत्तर: कवि भवानी प्रसाद मिश्र प्रेम की श्रेष्ठता प्रतिपादित करते हुए कहते हैं कि प्रेम द्वारा असंभव कार्य को भी संभव किया जा सकता है। हमारे जीवन में यदि अंधकार और नकारात्मक भाव हो, तो प्रेम के द्वारा उसे प्रकाशित किया जा सकता है। सकारात्मकता का भाव जाग सकता है। उसी प्रकार बाहरी समाज में निहित द्वेष, ईर्ष्या व नकारात्मकता को प्रेम के द्वारा सद्मार्ग पर लाया जा सकता है। कवि के मतानुसार प्रेम जीवन में सरलता, सहृदयता व मानवता का प्रतीक है।

भाषा बिंदु

कोष्‍ठक में दिए गए प्रत्‍येक/कारक चिह्न से अलग-अलग वाक्‍य बनाइए और उनके कारक लिखिए : 

[ ने, को, से, का, की, के, में, पर, हे, अरे, के लिए ]

उत्तर: 

(i) ने : राम ने अपना काम पूरा किया।

कारक : कर्ता कारक

 

(ii) को : मैंने विजय को अपनी कलम दी ।

कारक : कर्म कारक

 

(iii) से : घर से निकलते ही बारिश शुरू हुई।

कारक : अपादान कारक

 

(iv) का : राम ने अपनी डायरी में उसका पता नोट कर लिया। 

कारक : संबंध कारक

 

(v) के : मैं उसके लिए दो लीटर पानी लाया।

कारक : संप्रदान कारक

 

(vi) में : कुएँ में एक घड़ा था।

कारक : अधिकरण कारक 

 

(vii) पर : घर पर कोई नहीं था। 

कारक : अधिकरण कारक

 

(viii) हे : हे राम ! यह अच्छा नहीं हुआ। 

कारक : संबोधन कारक

 

(ix) अरे : अरे ! तू तो निरा मूर्ख है।

कारक : संबोधन कारक

 

(x) के लिए : राधा ने उसके लिए किताब खरीदी।

कारक : संप्रदान कारक