पाठ ४ – मन (पूरक पठन)
प्रस्तुत कविता में कुल मिलाकर तेरह हाइकु कविताएँ हैं। यह कविता एक ही है परंतु उसमें सम्मिलित हाइकु एक-दूसरे से अलग-अलग हैं। एक की अनुभूति दूसरी से अलग है। ये सारी हाइकु कविताएँ कवि के मन की पीड़ा एवं उदास मनःस्थिति को दर्शाने का कार्य करती हैं। कवि को एक ओर घने अंधकार में चमकता प्रकाश दिखाई देता है, तो किसी और जीवन नैया मँझधार में डावाडोल होती प्रतीत होती है। कवि को अपने विषण्ण मन के खिले हुए फूल से भी प्रेरणा मिलती है, तो कभी आँसू बहाने के बाद कवि का मन शांत हो जाता है। कवि के मन की पीड़ा कभी-कभी इतनी तीव्र हो जाती है कि वह बादल का रूप धारण करके बरसने लगती है। ऐसा लगता है जिंदगी में सब कुछ प्राप्त करने के बावजूद भी कवि की तृष्णा अतृप्त हो रही है।
शब्दार्थ
मँझधार – नदी के प्रवाह का मध्यभाग
कुंठा – घोर निराशा
विषाद – अभिलाषा पूरी न होने पर मन में होने वाला खेद या दुख
जिजीविषा – जीवन के प्रति आसक्ति/जीने की इच्छा
ओट – आड़
घना अँधेरा
चमकता प्रकाश
और अधिक ।
अर्थ : कवि कहते हैं कि व्यक्ति के हृदय में जब कभी घना अंधेरा आता है तो घने अंधेरे में प्रकाश और अधिक चमकता है यानी कि दुख एवं संघर्ष की घड़ी में कवि को सुखरूपी प्रकाश की किरणें तीव्रता से चमकती हुई प्रतीत होती हैं। प्रतिकूल परिस्थिति में भी कवि को अनुकूल स्थिति दिखाई देती है।
करते जाओ
पाने की मत सोचो
जीवन सारा ।
अर्थ : कवि कहते हैं कि व्यक्ति को अपना कर्म करना चाहिए। उसे किसी चीज की आस नहीं रखनी चाहिए। व्यक्ति का संपूर्ण जीवन कर्म करते हुए व्यतीत होना चाहिए। उसे फल की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए।
जीवन नैया
मँझधार में डोले,
सँभाले कौन ?
अर्थ : प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से कवि कहते हैं कि कभी-कभी ऐसी स्थिति बन जाती है कि व्यक्ति की जीवनरूपी नैया मँझधार की संघर्षमय स्थिति में हिलकोरे खाती हुई प्रतीत होती है। उस वक्त व्यक्ति के मन में प्रश्न पैदा होता है की ऐसी संकट की घड़ी में उसे कौन संभालेगा ?
रंग-बिरंगे
रंग-संग लेकर
आया फागुन ।
अर्थ : कवि कहते हैं कि फागुन का महीना अपने साथ रंग-बिरंगे रंग लेकर आता है। वह व्यक्ति के जीवन में खुशियों की बहार ला देता है। वह दुख भुलाकर भी हँसी-खुशी जीने की प्रेरणा देता है।
काँटों के बीच
खिलखिलाता फूल
देता प्रेणा ।
अर्थ : कवि कहते हैं कि प्रकृति इंसान को प्रेरणा देने का अनमोल कार्य करती रहती है। वह मनुष्य के लिए प्रेरक है। जीवन में चारों ओर संकटरूपी काँटे ही काँटे होते हैं। ऐसे में व्यक्ति को उन काँटों के बीच से मार्ग निकालने की प्रेरणा खिलखिलाता फूल हो देता है।
भीतरी कुंठा
आँखों के द्वार से
आई बाहर ।
अर्थ : कवि कहते हैं कि पीड़ित व्यक्ति के हृदय में जो विफलताजन्य घोर निराशा होती है। वह उसके नयनों के द्वार से आँसुओं के रूप में बाहर आती है। व्यक्ति को रोने के बाद राहत मिलती है। उसे सुकून का एहसास होता है।
खारे जल से
धुल गए विषाद
मन पावन ।
अर्थ : प्रस्तुत कविता में कवि कहते हैं कि व्यक्ति की सारी अभिलाषाएँ पूर्ण नहीं होती हैं। जब व्यक्ति की अभिलाषाएँ पूर्ण नहीं होती हैं; तब वह हृदय से दुखी हो जाता है। ऐसे में व्यक्ति के पास आँसू बहाने के अलावा अन्य साधन शेष नहीं रहता है। वह आँसू बहाता है जिस कारण उसके मन के सारे विषाद अपने आप घुल जाते हैं और उसका मन पवित्र हो जाता है।
मृत्यु को जीना
जीवन विष पीना
है जिजीविषा ।
अर्थ : कवि कहते हैं कि जिसको जीवन मिलता है उसकी मृत्यु भी तो निश्चित होती है। फिर भी व्यक्ति को पास जीवन जीने की प्रबल इच्छा होती है। हर व्यक्ति जीवन से प्यार करता है। देखा जाए तो जीवन क्षणभंगुर है फिर भी व्यक्ति इस जीवनरूपी विष को पीना चाहता है। वह मरना नहीं चाहता, लेकिन यह संभव नहीं है।
मन की पीड़ा
छाई बन बादल
बरसीं आँखें ।
अर्थ : कवि कहते हैं कि व्यक्ति अपने मन में दुख को कब तक संभालकर रख सकता है? आखिर में उसके हृदय की पीड़ा काले बादलों का रूप धारण कर लेती है और आँसुओं के रूप में प्रस्तुत होती है।
चलतीं साथ
पटरियाँ रेल की
फिर भी मौन ।
अर्थ : कवि कहते हैं कि व्यक्ति इस संसार में अकेला आता है और अकेला चला जाता है। कोई किसी का नहीं होता। दुख में व्यक्ति का साथ कोई नहीं देता है। जिस प्रकार रेल की पटरियाँ एक साथ तो चलती हैं; फिर भी एक-दूसरे से मिलती नहीं है। उन्हें एक-दूसरे से कोई सरोकार नहीं होता। वे सदैव मौन साधे रहती हैं।
सितारे छिपे
बादलों की ओट में
सूना आकाश ।
अर्थ : कवि कहते हैं कि आसमान में सितारे होते हैं परंतु बादल छा जाने के कारण वे उनकी ओट में छिप जाते हैं और आसमान सूना हो जाता है। इसी तरह मनुष्य जीवन भी होता है। व्यक्ति जीवन में कड़ी मेहनत करता रहता है, फिर भी भाग्य साथ नहीं देता तो उसे कोई कर्मफल प्राप्त नहीं होता। जिससे वह निराश हो जाता है और उसका जीवन सूने पन से भर जाता है।
तुमने दिए
जिन गीतों को स्वर
हुए अमर ।
अर्थ : कवि कहते हैं कि ईश्वर से बढ़कर इस दुनिया में कोई अन्य शक्ति नहीं होती। ईश्वर ने ही व्यक्ति के जीवन रूपी गीतों को स्वर प्रदान किए हैं यानी जीवन जीने की शक्ति प्रदान की है। यही कारण है कि व्यक्ति अपने कर्म के कारण ही दुनिया में पहचाना जाता है।
सागर में भी
रहकर मछली
प्यासी ही रही ।
अर्थ : कवि कहते हैं कि मछली सागर में रहती है; फिर भी वह सागर का पानी ग्रहण नहीं करती है। वह प्यासी ही रहती है। इसी प्रकार जीवन रूपी सागर में मानव रूपी मछली सब कुछ प्राप्त कर लेती है; फिर भी जीवन के अंतकाल में वह उन्हें छोड़कर चला जाता है। आखिर यही दुनिया का दस्तूर है।
सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए :-
(१) उचित जोड़ियाँ मिलाइए :
अ
मछली
गीतों के स्वर
रेल की पटरियाँ
आकाश
आ
मौन
सूना
प्यासी
अमर
पीड़ा
उत्तर:
अ
मछली
गीतों के स्वर
रेल की पटरियाँ
आकाश
आ
प्यासी
अमर
मौन
सूना
(२) परिणाम लिखिए :
१. सितारों का छिपना –
उत्तर: आकाश का सूना होना।
२. तुम्हारा गीतों को स्वर देना –
उत्तर: मन का पावन होना।
(३) सरल अर्थ लिखिए :
मन की ………. बरसीं आँखें ।
उत्तर: कवि कहते हैं कि व्यक्ति अपने मन में दुख को कब तक संभालकर रख सकता है? आखिर में उसके हृदय की पीड़ा काले बादलों का रूप धारण कर लेती है और आँसुओं के रूप में प्रस्तुत होती है।
स्वाध्याय
सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए –
(१) लिखिए :
उत्तर:
(२) कृति पूर्ण कीजिए :
उत्तर:
(३) उत्तर लिखिए :
१. मँझधार में डोले
उत्तर: जीवन नैया
२. छिपे हुए
उत्तर: सितारे
३. धुल गए
उत्तर: विषाद
४. अमर हुए
उत्तर: गीत
उत्तर:
(४) निम्नलिखित काव्य पंक्तियों का केंद्रीय भाव स्पष्ट कीजिए :
१. चलतीं साथ
पटरियाँ रेल की
फिर भी मौन ।
उत्तर: व्यक्ति संसार में अकेला आता है और अकेला चला जाता है। कोई किसी का नहीं होता।
२. काँटों के बीच
खिलखिलाता फूल
देता प्रेणा ।
उत्तर: प्रकृति इंसान को प्रेरणा देने का अनमोल कार्य करती रहती है।
अभिव्यक्ति
वक्तृत्व प्रतियोगिता में प्रथम स्थान पाने के उपलक्ष्य में आपके मित्र/सहेली ने आपको बधाई पत्र भेजा है, उसे धन्यवाद देते हुए निम्न प्रारूप में पत्र लिखिए :
५ बी, रूम क्र. २३,
राम मनोहर सोसायटी,
कुर्ला (प),
मुंबई- ४०० १०४.
१० मई २०१८
प्रिय मित्र राम,
सप्रेम नमस्ते।
कल ही मैंने समाचार पत्र में पढ़ा कि तुम्हें वक्तृत्व प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार मिला है। यह बहुत ही गर्व की बात है इसलिए तुम्हारा अभिनंदन करने के लिए मैं यह पत्र लिख रहा हूँ। राम तुम बचपन से ही भाषण कला में निपुण रहे हो। तुम्हारे | पास किसी भी विषय पर खुलकर बात करने का कौशल है। तुम वाचन कौशल में भी निपुण हो। इसी कारण किसी भी विषय पर तुम अपने विचार व्यक्त कर सकते हो। मेरे परिवार वालों ने भी तुम्हारा अभिनंदन किया है।
राम तुम मेरे मित्र हो, इस बात का मुझे बहुत गर्व है। जल्द ही छुट्टियाँ शुरू होने वाली हैं, तब मैं तुमसे भाषण कला के कौशल | सीखने वाला हूँ। आशा करता हूँ कि तुम छुट्टियों में मेरे घर अवश्य आओगे।
तुम्हारा प्रिय मित्र,
अमान खान।
ई-मेल आई डी : amaankhan@gmail.com