पाठ ३ – श्रम साधना
‘श्रम साधना’ एक वैचारिक निबंध है। इस निबंध के द्वारा लेखक ने मानवीय जीवन, संपत्ति के स्वामित्व, शारीरिक व बौद्धिक श्रम आदि का वर्णन किया है। लेखक कहते हैं कि गुलामी की प्रथा व राजप्रथा मिटाने के लिए संघर्ष हुआ और तब जाकर इनका समाज से अस्तित्व मिटा ऐसा ही कुछ संपत्ति के स्वामित्व के बारे में भी है। लोग सोना-चाँदी या पैसा, इसे अपनी संपत्ति मानते हैं। दरअसल ये माप-तौल के साधन हैं। सृष्टि के द्रव्य व मनुष्य का शारीरिक श्रम ये संपत्ति के मुख्य साधन हैं। समस्या यह है कि शारीरिक श्रम करने वालों को गरीबी या कष्ट में हो अपना जीवन बिताना पड़ता है। वे संपत्ति बनाते हैं तथा धनिक सिर्फ व्यवस्था करते हैं। फिर भी धनिकों के पास ढेर सारी संपत्ति इकट्ठा हो जाती है। समाज में जो बुद्धिजीवी वर्ग है, वह श्रमजीवियों पर निर्भर होता है। फिर भी समाज में श्रमजीवियों को प्रतिष्ठा नहीं मिलती। व्यक्ति अपनी योग्यता प्राप्त करने के लिए समाज की कृपा का अधिकतम सहारा लेता है। इसलिए समाज को अधिक से अधिक देना व्यक्ति का कर्तव्य होता है; लेकिन व्यक्ति अपना कर्तव्य निभाने की बजाय समाज से ही अधिक से अधिक लेने का प्रयत्न करता है। आज हमारे समाज में आर्थिक व समाजिक विषमता दिखाई देती है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को गांधीजी की विचारधारा का पालन करते हुए चार घंटे शारीरिक श्रम व चार घंटे बौद्धिक श्रम करना चाहिए। जिन लोगों के पास संपत्ति होती है; वे बड़े आराम से रहते हैं। उन्हें अपने पैसों का उपयोग समाज के हित में करना चाहिए। अस्पताल या स्कूल खोलकर लोगों को लाभान्वित करने के लिए उन्हें आगे आना चाहिए। व्यक्ति को स्वार्थवृत्ति का पोषण नहीं करना चाहिए। उसे सिर्फ यह सोचना चाहिए कि समाज का कल्याण किस प्रकार होगा। उसे परोपकार का मार्ग अपनाना चाहिए। भारत को यदि कल्याणकारी राज्य बनाना है तो धनवान लोगों पर अधिक कर लगाया जाए। साथ ही प्रत्येक व्यक्ति को शरीर श्रम करने के लिए आगे आना चाहिए। समाज में श्रम की प्रतिष्ठा बढ़नी चाहिए। महात्मा गांधी जी ने अहिंसा की विचारधारा दी है, उसके प्रभाव से समाज में आर्थिक व सामाजिक समता प्रस्थापित हो सकती है।
तत्त्ववेत्ता – तत्त्वज्ञ
हुकूमत – शासन
दफा – बार, मरतबा
मुहावरे
गुजर-बसर हाेना – आजीविका चलना
वाक्य : कंचन का पति भले ही विदेश में कमाता हो मगर घर में अभी भी गुजर बसर हो पा रहा है ।
पठनीय
महात्मा गांधी के श्रमप्रतिष्ठा और अहिंसा संबंधी विचार पढ़कर चर्चा कीजिए ।
उत्तर: महात्मा गांधी ने श्रम की गरिमा पर जोर दिया, सभी कार्यों को उसकी प्रकृति की परवाह किए बिना मूल्यवान माना। उनका मानना था कि श्रम का हर रूप सम्मान का हकदार है और उसे हेय दृष्टि से नहीं देखा जाना चाहिए। गांधी ने कुछ व्यवसायों से जुड़े सामाजिक कलंक को मिटाने की वकालत की, लोगों को श्रेष्ठता या हीनता की भावना के बिना सभी कार्यों को ईमानदारी और समर्पण के साथ करने के लिए प्रोत्साहित किया। अहिंसा के संबंध में, गांधी के अहिंसा (अहिंसा) के दर्शन ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह शांतिपूर्ण तरीकों से संघर्षों को सुलझाने, सहिष्णुता, समझ और करुणा को बढ़ावा देने में दृढ़ता से विश्वास करते थे। सविनय अवज्ञा और शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन सहित गांधी के अहिंसक प्रतिरोध ने दुनिया भर में आंदोलनों को प्रेरित किया और सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन के लिए एक मार्गदर्शक सिद्धांत के रूप में काम करना जारी रखा। उन्होंने मानव संपर्क के सभी पहलुओं में सद्भाव, सहानुभूति और न्याय के महत्व पर जोर देते हुए स्थायी और सार्थक परिवर्तन प्राप्त करने में प्रेम और अहिंसक कार्रवाई की शक्ति पर जोर दिया।
श्रवणीय
आर्थिक विषमता को दूर करने वाले उपायों के बारे में सुनकर कक्षा में सुनाइए ।
उत्तर: आर्थिक असमानता को दूर करने के लिए विभिन्न उपाय लागू किए गए हैं। इनमें धन का उचित वितरण सुनिश्चित करने के लिए प्रगतिशील कराधान, कम वेतन वाले श्रमिकों की आय की रक्षा के लिए न्यूनतम वेतन कानून और आर्थिक रूप से वंचितों को सहायता प्रदान करने वाले सामाजिक कल्याण कार्यक्रम शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, शैक्षिक सुधार और कौशल विकास पहल का उद्देश्य कुशल और अकुशल कार्यबल के बीच अंतर को कम करते हुए सभी के लिए समान अवसर पैदा करना है। सरकारें हाशिए पर रहने वाले समुदायों के उत्थान के लिए समावेशी आर्थिक नीतियों, जैसे लक्षित सब्सिडी और रोजगार सृजन योजनाओं को भी बढ़ावा देती हैं। इसके अलावा, स्वास्थ्य देखभाल और किफायती आवास तक समान पहुंच की वकालत संसाधनों के अधिक न्यायसंगत वितरण में योगदान देती है।
संभाषणीय
‘वर्तमान युग में सभी बच्चों के लिए खेल-कूद और शिक्षा के समान अवसर प्राप्त हैं,’ विषय पर चर्चा करते हुए अपना मत प्रस्तुत कीजिए ।
उत्तर: वर्तमान युग विज्ञान व तकनीकी का युग है। इस युग में जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में प्रगति हुई है। आज बच्चों के लिए सभी प्रकार की सुविधा उपलब्ध है। बच्चों के लिए खेल-कूद और शिक्षा के समान अवसर प्राप्त हैं। भारत सरकार द्वारा सर्व शिक्षा अभियान चलाया जा रहा है, जिसके अंतर्गत सभी बच्चों के लिए शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार है। लड़का-लड़की शिक्षा के जिस क्षेत्र में पढ़ाई करना चाहते हैं उस क्षेत्र में आगे बढ़ सकते हैं। उन पर किसी भी प्रकार की अड़चन नहीं है। बच्चों को जिन खेलों में रूचि हैं उन खेलों में वे प्रगति कर सकते हैं। उसके लिए उन पर किसी भी प्रकार का बंधन नहीं है। आज जरूरी नहीं कि डॉक्टर का बच्चा ही डॉक्टर बनेगा। एक गरीब व्यक्ति का भी बेटा अपनी लगन और मेहनत के बल पर डॉक्टर बन सकता है। और एक साधारण परिवार का लड़का भी क्रिकेटर बन सकता है। आज हमारे देश में खेल-कूद और शिक्षा के क्षेत्र में इतनी प्रगति हुई है कि प्रत्येक स्कूल में शिक्षा के साथ खेल-कूद को बढ़ावा दिया जा रहा है।
लेखनीय
‘मेवे फलते श्रम की डाल’ विषय पर अपनी लिखित अभिव्यक्ति दीजिए ।
उत्तर: किसी ने सच ही कहा है कि यदि हमें जीवन में कुछ पाना है तो हमें कड़ी मेहनत करनी होगी। बिना मेहनत के कुछ हासिल नहीं होता। जीवन की राह बहुत मुश्किल होती है। लेकिन एक बार यदि हम मेहनत करें तो हमें उसका अच्छा फल अवश्य मिलता है।
परिश्रम ही मनुष्य जीवन का सच्चा सौंदर्य है । संसार में प्रत्येक प्राणी सुख चाहता है । संसार-चक्र सुख की प्राप्ति के लिए चल रहा है । संसार का यह चक्र यदि एक क्षण के लिए रुक जाए तो प्रलय हो सकती है ।
इसी परिवर्तन और परिश्रम का नाम जीवन है । हम देखते हैं कि निर्गुणी व्यक्ति गुणवान् हो जाते है; मूर्ख बड़े-बड़े शास्त्रों में पारंगत हो जाते हैं; निर्धन धनवान् बनकर सुख व चैन की जिंदगी बिताने लगते हैं । यह किसके बल पर होता है ? सब श्रम के बल पर ही न । ‘श्रम’ का अर्थ है- तन-मन से किसी कार्य को पूरा करने के लिए प्रयत्नशील होना ।
जिस व्यक्ति ने परिश्रम के बल पर आगे बढ़ने की चेष्टा की, वह निरंतर आगे बढ़ा । मानव-जीवन की उन्नति का मुख्य साधन परिश्रम है । जो मनुष्य जितना अधिक परिश्रम करता है, उसे जीवन में उतनी ही अधिक सफलता मिलती है ।
जीवन में श्रम का अत्यधिक महत्त्व है । परिश्रमी व्यक्ति कै लिए कोई कार्य कठिन नहीं । इसी परिश्रम के बल पर मनुष्य ने प्रकृति को चुनौती दी है- समुद्र लाँघ लिया, पहाड़ की दुर्गम चोटियों पर वह चढ़ गया, आकाश का कोई कोना आज उसकी पहुँच से बाहर नहीं।
स्वाध्याय
सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए :
(१) उत्तर लिखिए :
१. व्यापारी और उद्योगपतियों के लिए अर्थशास्त्र द्वारा बनाए गए नये नियम –
उत्तर:
(i) खरीद सस्ती से सस्ती हो और बिक्री महँगी से महँगी।
(ii) मुनाफे की कोई मर्यादा नहीं।
२. संपत्ति के दो मुख्य साधन –
उत्तर: सृष्टि के द्रव्य और मनुष्य का शरीर श्रम।
३. समाप्त हुईं दो प्रथाएँ –
उत्तर: गुलामी की प्रथा व राजप्रथा ।
४. कल्याणकारी राज्य का अर्थ
उत्तर: सब तरह के दुर्बलों को राज्यसत्ता द्वारा मदद मिले अर्थात बड़े पैमाने पर कर वसूल करके उससे गरीबों को सहारा दिया जाए।
(२) कृति पूर्ण कीजिए :
उत्तर:
(३) तुलना कीजिए :
बुद्धिजीवी
१. ……………
२. ……………
३. ……………
४. ……………
श्रमजीवी
१. ……………
२. ……………
३. ……………
४. ……………
उत्तर:
बुद्धिजीवी
१. बुद्धिजीवियों का जीवन श्रमजीवियों पर आधारित होता है।
२. बुद्धिजीवियों की आमदनी अधिक होती है।
३. समाज में इनकी प्रतिष्ठा होती है।
४. इनका जीवन प्रायः सुख-समृद्धि में बीतता है।
श्रमजीवी
१. श्रमजीवियों का जीवन बुद्धिजीवियों पर आधारित नहीं होता है।
२. श्रमजीवियों की मजदूरी एवं आमदनी कम होती है।
३. समाज में इनकी प्रतिष्ठा नहीं होती।
४. इन्हें जीवन प्रायः कष्ट में ही बिताना पड़ता है।
(४) लिखिए :
उत्तर:
उत्तर:
(५) पाठ में प्रयुक्त ‘इक’ प्रत्यययुक्त शब्दों को ढूँढ़कर लिखिए तथा उनमें से किन्हीं चार का स्वतंत्र वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
उत्तर:
(i) ‘इक’ प्रत्यययुक्त शब्द नैतिक, बौद्धिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, प्राकृतिक
(ii) किन्हीं चार प्रत्यययुक्त शब्द का स्वतंत्र वाक्यों में प्रयोग :
(१) नैतिक : आज समाज से नैतिक मूल्यों का पतन हो रहा है।
(२) बौद्धिक : व्यक्ति अपनी बौद्धिक क्षमता के बल पर सभी कार्य कर सकता है।
(३) सामाजिक : किसी सामाजिक संस्था का सदस्य होना बहुत अच्छी बात है।
(४) आर्थिक : रामलाल की आर्थिक स्थिति बहुत ही खराब है।
(६) पाठ में कुछ ऐसे शब्द हैं, जिनके विलोम शब्द भी पाठ में ही प्रयुक्त हुए हैं, ऐसे शब्द ढूँढ़कर लिखिए ।
उत्तर:
१) हाड़ × मास
२) प्रत्यक्ष × अप्रत्यक्ष
३) देश × विदेश
४) हाथ × पैर
५) स्वार्थ × परार्थ
६) अमीर × गरीब
अभिव्यक्ति
‘समाज परोपकार वृत्ति के बल पर ही ऊँचा उठ सकता है’, इस कथन से संबंधित अपने विचार लिखिए।
उत्तर: ‘परोपकार’ का अर्थ है दूसरों पर उपकार करना । परोपकार सभी प्राणियों के प्रति आदर व प्रेम की भावना रखना सिखाता है। कुछ लोग बिना स्वार्थ भाव से दूसरों की भलाई और कल्याण के लिए कार्य करते हैं ऐसे लोग ‘परोपकारी’ कहलाते हैं। जो कार्य अपने हित, सम्मान और यश की भावना को छोड़कर सर्वथा दूसरों के हित के लिए किए जाते हैं; वे ही परोपकार कहलाते हैं। ऐसे परोपकारी कार्यों से ही समाज ऊपर उठता है; समाज की प्रगति होती है। मदर टेरेसा ने लाखों गरीब व अनाथ बच्चों को अपनाकर उन्हें जीवन जीने का सहारा दिया और उन्हें अपने पैरों पर खड़ा किया। मदर टेरेसा जैसे कई परोपकारी वृत्तियों के महान कार्य से समाज प्रगति की ओर बढ़ रहा है।
भाषा बिंदु
(१) निम्न वाक्यों में अधोरेखांकित शब्द समूह के लिए कोष्ठक में दिए गए मुहावरों में से उचित मुहावरे का चयन कर वाक्य फिर से लिखिए :
[इज्जत उतारना, हाथ फेरना, काँप उठना, तिलमिला जाना, दुम हिलाना, बोलबाला होना]
१. करामत अली हौले-से लक्ष्मी से स्नेह करने लगा ।
उत्तर:
वाक्य – करामत अली हौले से लक्ष्मी (की पीठ) पर हाथ फेरने लगा।
२. सार्वजनिक अस्पताल का खयाल आते ही मैं भयभीत हो गया ।
उत्तर:
वाक्य – सार्वजनिक अस्पताल का खयाल आते ही मैं काँप उठा।
३. क्या आपने मुझे अपमानित करने के लिए यहाँ बुलाया था ?
उत्तर:
वाक्य – क्या आपने मेरी इज्जत उतारने के लिए यहाँ बुलाया था ?
४. सिरचन को बुलाओ, चापलूसी करता हुआ हाजिर हो जाएगा ।
उत्तर:
वाक्य – सिरचन को बुलाओ, दुम हिलाता हुआ हाजिर हो जाएगा।
५. पंडित बुद्धिराम काकी को देखते ही क्रोध में आ गए ।
उत्तर:
वाक्य – पंडित बुद्धिराम काकी को देखते ही तिलमिला गए।
(२) निम्नलिखित मुहावरों का अर्थ लिखकर उनका अर्थपूर्णवाक्यों में प्रयोग कीजिए :
१. गुजर-बसर करना :
उत्तर:
अर्थ : आजीविका चलाना
वाक्य : रामू मजदूरी करके अपने परिवार का गुजर-बसर करता था।
२. गला फाड़ना :
उत्तर:
अर्थ : जोर-जोर से चिल्लाना
वाक्य : राम गला फाड़कर सब्जियाँ बेच रहा था।
३. कलेजे में हूक उठना :
उत्तर:
अर्थ : मन में पीड़ा होना
वाक्य : अपने मृत बेटे की याद आते ही बुढ़िया के कलेजे में हूक उठने लगती है।
४. सीना तानकर खड़े रहना :
उत्तर:
अर्थ : तैयार हो जाना
वाक्य : दुश्मन के साथ लड़ने के लिए भारतीय सैनिक सीना तानकर खड़े हो गए।
५. टाँग अड़ाना :
उत्तर:
अर्थ : अड़ंगा डालना
वाक्य : यदि तुम मेरे काम में टांग अड़ाने की कोशिश करोगे तो मैं तुम्हें नहीं छोड़ेगा।
६. जेब ढीली होना :
उत्तर:
अर्थ : पैसे खत्म होना
वाक्य : पाँच बच्चों को मेले में घुमाकर लाने के बाद रघू की जेब ढीली हो गई।
७. निजात पाना :
उत्तर:
अर्थ : छुटकारा पाना
वाक्य : परीक्षा से निजात पाते ही मैं भ्रमण पर निकला।
८. फूट-फूटकर रोना :
उत्तर:
अर्थ : बिलख-बिलख कर रोना
वाक्य : इकलौते बेटे की मृत्यु की खबर सुनकर माँ फूट-फूट कर रोने लगी।
९. मन तरंगायित होना :
उत्तर:
अर्थ : मन प्रफुल्लित होना
वाक्य: प्राकृतिक दृश्य देखकर मेरा मन तरंगायित हो गया।
१०. मुँह लटकाना :
उत्तर:
अर्थ : उदास हो जाना
वाक्य: पिता जी से डाँट मिलने पर विजय मुँह लटकाकर बैठ गया।
(३) पाठ्यपुस्तक में आए मुहावरों का अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए ।
उत्तर:
(i) निर्वाह करना
वाक्य : किसान दिनभर खेत में श्रम करके अपना जीवन-यापन करता है।
(ii) देखते रह जाना
वाक्य : बच्चे जादूगर के जादू को बस देखते रह गए।
(iii) शेखी बघारना
वाक्य : अजय जब देखो तब अपनी शेखी बघारता रहता है।
(iv) डींग मारना
वाक्य : रमेश अपनी पढ़ाई को लेकर बड़ी डींगे मारा करता था।
(v) बोलबाला होना
वाक्य : आज के युग में स्मार्ट फोन का काफी बोलबाला है।
उपयोजित लेखन
निम्न शब्दों के आधार पर कहानी लेखन कीजिए :
मिट्टी, चाँद, खरगोश, कागज
उत्तर:
चाँद का प्रतिबिंब
एक घना जंगल था। उस जंगल में तरह-तरह के प्राणी रहते थे। उस जंगल में एक खरगोश भी रहता था। वह दिखने में बहुत ही सुंदर एवं प्यारा था। उसका श्वेत वर्ण देखकर सभी प्राणी उससे ईर्ष्या करते थे। उसने मिट्टी में अपना बिल बनाया था।
खरगोश बहुत डरपोक था। वह हर दिन हरी घास खाता था। घास खाते समय हवा का झोंका आने पर वह डर जाता था और अपने बिल में घुस जाता था। पूर्णिमा की रात थी। आसमान में चंद्रमा उदित हो गया था। रात में चारों ओर प्रकाश ही प्रकाश था। खरगोश को लगा कि अब दिन निकल आया है। क्यों न अब स्नान किया जाए, यह सोचकर वह तालाब की ओर बढ़ा तालाब के पास आकर उसने देखा कि एक पूर्ण गोलाकार श्वेत रूप तालाब के पानी में गिर पड़ा है। उसने पहले ऐसा श्वेत वर्णिय गोल पानी में कभी नहीं देखा था। उसे लगा कि यह गोल आकार का कोई कागज का टुकड़ा होगा। पर उसने सोचा कि यदि वह कागज का टुकड़ा होता तो अब तक गल जाता। जरूर यह कोई जादुई पत्थर है। वह भयभीत हो गया और जोर-जोर से चिल्लाने लगा। उसकी चिल्लाहट सुनकर सभी प्राणी तालाब के किनारे आ पहुँचे। जब उन्हें खरगोश के चिल्लाने का कारण समझा तब वे सभी मिलकर खरगोश की मूर्खता पर हँसने लगे। उन्होंने कहा कि यह कोई गोल कागज या जादुई पत्थर नहीं है बल्कि यह चाँद का प्रतिबिंब है। यह सुनकर खरगोश लज्जित हो गया और उसे अपनी मूर्खता का भी एहसास हो गया। वह दुम दबाकर वहाँ से भाग निकला और अपने बिल में जाकर सो गया और उधर आसमान में चंद्रमा का प्रज्वलित रूप निशा को प्रकाशमय बनाने में व्यस्त था….।
सीख : सोच-समझकर कार्य करना चाहिए। जो बिना सोचे-समझे काम करता है, वह अंत में मूर्ख बन जाता है।