पाठ ११ – समता की ओर
प्रस्तुत कविता छायावादी कविता का एक अंश है। इस कविता के माध्यम से कवि ने एक उत्थानशील युग निर्माण की आशा की है। कवि चाहता है कि समाज में समता स्थापित हो जाए। पहले हमारे समाज में समानता थी। किसी को भी किसी चीज की कमी नहीं थी। लेकिन आज हमारे समाज की दशा बहुत ही खराब है। चारों और असमानता दिखाई दे रही है। अमीरी-गरीबी का भेदभाव दिखाई दे रहा है। शिशिर ऋतु में पड़ने वाली अत्यधिक ठंड के माध्यम से कवि ने समाज के अमीर व गरीब वर्ग पर प्रकाश डाला है। अमीर वर्ग पर शिशिर ऋतु की ठंड का कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ता; लेकिन गरीब वर्ग अत्यधिक ठंड से ठिठुरता है। कवि का संवेदनशील मन गरीबों की भलाई के बारे में सोचता है और उनके उद्धार हेतु आगे आने की प्रेरणा देता है।
द्युतिहीन – तेजहीन
स्यार – गीदड़, सियार
पांडुवर्ण – पीला रंग
पाला – बर्फ, हिम
बीत गया हेमंत भ्रात, शिशिर ॠतु आई !
प्रकृति हुई द्युतिहीन, अवनि में कुंझटिका है छाई ।
अर्थ : ऋतुएँ आती-जाती रहती हैं। हेमंत के चले जाने के बाद शिशिर ऋतु आती है। इस ऋतु में अत्यधिक ठंड पड़ती है। इस ऋतु में प्रकृति तेजहीन हो जाती है। अत्यधिक ठंड से पेड़-पौधे भी ठिठुरने लगते हैं। पेड़ के पत्ते शाखा से अलग होकर टूटने लगते हैं। धरती पर कोहरा छा जाता है।
पड़ता खूब तुषार पद्मदल तालों में बिलखाते,
अन्यायी नृप के दंडों से यथा लोग दुख पाते ।
अर्थ : शिशिर ऋतु में अत्यधिक ठंड के कारण रात के समय तुषार गिरते हैं। इस कारण तालाब में खिले हुए कमल के फूल तड़पने लगते हैं। वे भी ठंड को उसी प्रकार सह नहीं पाते; जिस प्रकार अन्यायी राजा के दंडों को प्रजा नहीं सह पाती।
निशा काल में लोग घरों में निज-निज जा सोते हैं,
बाहर श्वान, स्यार चिल्लाकर बार-बार रोते हैं ।
अर्थ : शिशिर ऋतु में पड़ने वाली अत्यधिक ठंड का प्रभाव जिस प्रकार मनुष्यों पर पड़ता है; उसी प्रकार अन्य प्राणियों पर भी पड़ता है। लोग तो ठंड से बचने के लिए रात के समय अपने-अपने घरों में जाकर सो जाते हैं। लेकिन दूसरे प्राणियों का हाल बुरा होता है। कुत्ता व सियार जैसे जानवर अत्यधिक ठंड से ठिठुरने लगते हैं और अपना दुख व्यक्त करते हुए बार-बार चिल्लाकर रोते हैं।
अद्र्धरात्रि को घर से कोई जो आँगन को आता,
शून्य गगन मंडल को लख यह मन में है भय पाता ।
अर्थ : शिशिर ऋतु में आधी रात के समय यदि कोई घर से बाहर आँगन में आ जाए, तो उसे आसमान में तारे दिखाई नहीं देते। मानो, तारे भी अत्यधिक ठंड से आसमान में नहीं आते हैं। इसलिए शून्य आसमान को देखकर लोगों के मन में भय उत्पन्न होता है।
तारे निपट मलीन चंद ने पांडुवर्णहै पाया,
मानो किसी राज्य पर है, राष्ट्रीय कष्ट कुछ आया ।
अर्थ : अत्यधिक ठंड के कारण आसमान में तारे दिखाई नहीं दे रहे हैं; मानो उन्होंने मलिन (चमकहीन अवस्था प्राप्त कर ली है। आसमान में उदित चंद्र ने भी पीला- सफेद वर्ण धारण कर लिया है। चंद्र व तारों की इस अवस्था को देखकर कवि कल्पना करता है कि मानो किसी राज्य पर किसी प्रकार का राष्ट्रीय संकट आ गया हो।
धनियों को है मौज रात-दिन हैं उनके पौ-बारे,
दीन दरिद्रों के मत्थेही पड़े शिशिर दुख सारे ।
अर्थ : शिशिर ऋतु में पड़ने वाली अत्यधिक ठंड का प्रभाव धनिकों पर नहीं पड़ता है क्योंकि वे साधन संपन्न है। वे दिन-रात मौज कर रहे हैं। उनके तो लाभ ही लाभ हैं। लेकिन अभावग्रस्त लोगों का जीवन बहुत ही तकलीफों से भरा हुआ है। अत्यधिक ठंड से उनका जीवन बहुत ही पीड़ादायक हो गया है । शिशिर ऋतु में पड़ने वाली अत्यधिक ठंड से वे बेहाल और बदहाल हो गए हैं।
वे खाते हैं हलुवा-पूड़ी, दूध-मलाई ताजी,
इन्हें नहीं मिलती पर सूखी रोटी और न भाजी ।
अर्थ : धनिक लोग हलवा-पूड़ी और ताजी दूध-मलाई खाते हैं लेकिन दीन-दुखियों को खाने के लिए सूखी रोटी-सब्जी व भाजी भी नसीब नहीं होती। अर्थात उनके जीवन में घोर दरिद्रता और अभावग्रस्तता है।
वे सुख से रंगीन कीमती ओढ़ें शाल-दुशाले,
पर इनके कंपित बदनों पर गिरते हैं नित पाले ।
अर्थ : शिशिर ऋतु में पड़ने वाली अत्यधिक ठंड से बचने के लिए धनिक लोग रंगीन व कीमती शाल-दुशाले शरीर पर ओढ़ लेते हैं। इसके विपरीत दीन-दुखी लोगों के काँपते शरीर पर बर्फ ही गिरती रहती है। यानी उनका शरीर ठंड में ठिठुरता है और उसे ढँकने के लिए उनके पास शाल-दुशाले नहीं होते। गरीबी की चोट से वे हर पल आहत होते हैं।
वे हैं सुख साधन से पूरित सुघर घरों के वासी,
इनके टूटे-फूटे घर में छाई सदा उदासी ।
अर्थ : धनिक लोग सुख साधन से समृद्ध हैं। वे बहुत ही बड़े व अच्छे घरों में निवास करते हैं। इसके विपरीत दीन-दुखी लोगों की स्थिति अत्यंत दयनीय हैं। उनके टूटे-फूटे घरों में हमेशा उदासी छाई हुई रहती है। उनके पास दुख के अलावा कुछ भी नहीं होता।
पहले हमें उदर की चिंता थी न कदापि सताती,
माता सम थी प्रकृति हमारी पालन करती जाती ।।
अर्थ : पुराने जमाने में हमारे समाज में अमीरी-गरीबी का भेदभाव नहीं था। चारों ओर समता ही समता थी। सभी को खाने के लिए चीजें आसानी से मिल जाती थीं। किसी को किसी भी प्रकार की चिंता नहीं सताती थी। प्रकृति माता के समान सभी का एक समान पालन-पोषण करती थी।
हमको भाई का करना उपकार नहीं क्या होगा,
भाई पर भाई का कुछ अधिकार नहीं क्या होगा ।
अर्थ : समाज में अमीर भाइयों को गरीब भाइयों की भलाई के बारे में अवश्य विचार करना चाहिए। अमीरों को गरीबों पर उपकार करना चाहिए और उन्हें अभावग्रस्त जीवन से बाहर निकालना चाहिए। आखिर, एक भाई को दूसरे भाई की भलाई के विषय में अवश्य सोचना चाहिए। समाज से अमीरी-गरीबी का भेदभाव दूर करके पुनः समता प्रस्थापित करनी चाहिए। आपसी सहृदयता व बंधुता द्वारा समाज कल्याण करना चाहिए।
स्वाध्याय
सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए :
(१) कृति पूर्ण कीजिए :
उत्तर:
(२) जीवन शैली में अंतर स्पष्ट कीजिए :
उत्तर:
(३) तालिका पूर्ण कीजिए :
उत्तर:
(४) निम्न मुद्दों के आधार पर पद्य विश्लेषण कीजिए :
१. रचनाकार
२. रचना का प्रकार
३. पसंदीदा पंक्ति
४. पसंदीदा होने का कारण
५. रचना से प्राप्त संदेश
उत्तर:
(१) कविता के कवि / रचनाकार का नाम : कवि मुकुटधर पांडेय
(२) काव्य प्रकार : छायावादी काव्य
(३) पसंदीदा पंक्ति : हमको भाई का नहीं क्या होगा।
(४) पसंदीदा होने का कारण : प्रस्तुत पंक्तियाँ समाज में अमीर भाइयों को गरीब भाइयों की भलाई के बारे में विचार करने के लिए प्रवृत्त करती है। इन पंक्तियों में समाज से अमीरी-गरीबी का भेदभाव दूर करके समता स्थापित करने की बात बताई गई है। इसलिए प्रस्तुत पंक्तियाँ मुझे बेहद पसंद हैं।
(५) कविता से प्राप्त संदेश : विश्व बंधुत्व जैसी मानवीय भावना को अपनाकर एक-दूसरे के साथ बंधुत्व का व्यवहार करना।
(५) अंतिम दो पंक्तियों से मिलने वाला संदेश लिखिए।
उत्तर: प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कवि यह संदेश देते हैं कि एक भाई को दूसरे भाई की भलाई के बारे में अवश्य सोचना चाहिए। समाज से अमीरी-गरीबी का भेदभाव दूर होकर फिर से समता स्थापित होनी चाहिए। सभी के कल्याण हेतु प्रत्येक व्यक्ति को विश्व को बंधुत्व के भाव को अपनाना चाहिए।
उपयोजित लेखन
‘विश्वबंधुता वर्तमान युग की माँग’ विषय पर अस्सी से सौ शब्दों में निबंध लिखिए ।
उत्तर:
सर्वे भवन्तु सुखिनः,
सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु,
मा कश्चित दुःखभाग्भवेत्।
इसका अर्थ यह है, दुनिया में सब सुखी व निरोगी रहें; सब भद्र देखें व कोई भी दुखी न हो। दुनिया के सभी लोगों को एक-दूसरे की भलाई के बारे में सदैव सोचना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति को भाईचारे की भावना अपनानी चाहिए। हमारी भारतीय संस्कृति इसी विश्व बंधुत्व का संदेश देती है। विश्व बंधुत्व का सही अर्थ है, सबको भाई समझने का भाव समस्त संसार के विकास के लिए विश्व बंधुत्व जरूरी है।
आज मनुष्य विनाश के कगार पर खड़ा है उसे अपने स्वार्थों ने जकड़ लिया है। वह अपनी स्वार्थ की पूर्ति के लिए भयानक अस्त्रों-शस्त्रों के निर्माण की होड़ लगाए जा रहा है। मनुष्य विनाश के लिए अणुबम व परमाणु बम आदि बनाकर अपनी अपार शक्ति का परिचय दे रहा है। इससे अशांति एवं भयानक वातावरण निर्माण हो रहा है। इसलिए विश्व बंधुत्व वर्तमान युग की माँग है। बच्चों को विश्व बंधुत्व की शिक्षा देकर ही महात्मा गांधी जी के सपनों को साकार किया जा सकता है। विश्व में शांति की स्थापना हेतु विश्व बंधुत्व की अत्यंत जरूरत है। आज चारों ओर अशांति एवं वैमनस्य का वातावरण दिखाई दे रहा है। सर्वत्र आराजकता फैली हुई है। एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र की सीमा पर आक्रमण करने के लिए तत्पर है भारत पर आक्रमण करने के लिए हो कई देश तैयार हैं। वे सिर्फ अवसर की प्रतीक्षा कर रहे हैं। यह बहुत ही गलत बात है। इससे विश्व में अशांति फैलेगी। इसे रोकने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को विश्व बंधुत्व को अपनाना पड़ेगा। विश्व में शांति बनाए रखने के लिए इसकी बहुत जरूरत है।
विश्व बंधुत्व एक ऐसा मानवीय गुण है, जिसे अपनाने से सबका भला होगा। संस्कृत सुभाषित में कहा भी गया है:
अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम् ।
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ।।