पाठ ११ – कृषक गान
‘कृषक गान’ यह कविता कृषक के जीवन पर आधारित है। कृषक विश्व का पालक एवं अन्नदाता है। यदि कृषक ही नहीं रहेगा, तो संपूर्ण विश्व का अस्तित्व ही मिट जाएगा। कृषक है, इसीलिए हम सब जीवित है। लेकिन आज कृषक मूलभूत सुविधाओं से वंचित और बेहाल है। वह अपना जीवन-यापन गरीबी में कर रहा है। उसके पास तन ढकने के लिए भी कपड़े नहीं हैं। आज का समाज इतना स्वार्थी हो गया है कि वह उसकी ओर ध्यान ही नहीं दे रहा है और उसके उत्थान के लिए प्रयास भी नहीं कर रहा है। कवि किसान का खोया हुआ सम्मान व प्रतिष्ठा फिर से स्थापित करने हेतु उस पर गीत गाना चाहता है।
मधुमास – वसंत ॠतु
सृजक – रचना करने वाला, सर्जक
मनुजता – मनुष्यता
पालित – पाला हुआ, आश्रित
ऊसर – बंजर, अनुपजाऊ
उर्वरा – उपजाऊ भूमि
नीड़ – घोंसला
हाथ में संतोष की तलवार ले जो उड़ रहा है,
जगत में मधुमास, उसपर सदा पतझर रहा है,
दीनता अभिमान जिसका, आज उसपर मान कर लूँ ।
उस कृषक का गान कर लूँ ।।
अर्थ: कवि कहते हैं कि किसान विश्व का पालक एवं अन्नदाता है। लेकिन आज वह स्वयं मूलभूत सुविधाओं से वंचित होकर हाथों में संतोष की तलवार लिए हुए अपने जीवन में तेज गति से आगे बढ़ता चला जा रहा है, अर्थात जीवन में आनेवाली विपरीत व कठिन परिस्थिति में भी वह संतुष्ट रहने का प्रयत्न करना है । दुनिया में जब मधुमास यानी वसंत ऋतु आई रहती है, अर्थात लोगों के जीवन में सर्वत्र संपन्नता होती है; तब किसान पतझड़ की छाया में ही अपना जीवन यापन करता है, हमेशा दुखी ही होता है। परंतु उसकी दीनता भी अभिमान के समान है। इसलिए ऐसे स्वाभिमानी किसान का कवि सम्मान करना चाहता है और उसे उसकी खोई प्रतिष्ठा फिर से स्थापित करने हेतु कवि उस पर गीत गाना चाहता है।
चूसकर श्रम रक्त जिसका, जगत में मधुरस बनाया,
एक-सी जिसको बनाई, सृजक ने भी धूप-छाया,
मनुजता के ध्वज तले, आह्वान उसका आज कर लूँ ।
उस कृषक का गान कर लूँ ।।
अर्थ: कवि कहते हैं कि लोग किसान द्वारा निर्मित खून पसीने को अनाज रूपी कमाई का शोषण करके अपना विलासिता पूर्ण जीवन जीते हैं। ईश्वर ने भी किसान पर अन्याय ही किया है। ईश्वर ने उसके लिए धूप और छाया एक जैसी ही बनाई है। अर्थात किसान दिन रात खेत में काम करता रहता है । इसलिए कवि मानवता का ध्वज हाथ में लेकर किसान का आह्नान कर रहा है। वह किसान का खोया हुआ सम्मान उसे वापस दिलाना चाहता है और इसलिए कवि उस पर गीत गाना चाहता है।
विश्व का पालक बन जो, अमर उसको कर रहा है,
किंतु अपने पालितों के, पद दलित हो मर रहा है,
आज उससे कर मिला, नव सृष्टि का निर्माण कर लूँ ।
उस कृषक का गान कर लूँ ।।
अर्थ: किसान संसार के लिए अनाज पैदा करता है। उसी से सभी का निर्वाह हो रहा है, इसलिए वही हमारा अन्नदाता व पालक है। किंतु दुनिया उसके साथ कृतघ्नता से पेश आती है। वह अपने ही द्वारा पाले गए लोगों के पैरों तले रौंदा और कुचला जा रहा है। इसलिए कवि उससे हाथ मिलाकर ऐसी नई सृष्टि का निर्माण करना चाहता है, जिसमें उसे सम्मान व प्रतिष्ठा मिले। इसलिए कवि उस पर आधारित गीत गाना चाहता है।
क्षीण निज बलहीन तन को, पत्तियों से पालता जो,
ऊसरों को खून से निज, उर्वरा कर डालता जो,
छोड़ सारे सुर-असुर, मैं आज उसका ध्यान कर लूँ ।
उस कृषक का गान कर लूँ ।।
अर्थ: किसान भले ही देश के लिए अनाज पैदा करता है, लेकिन आज उसके ही घर में खाने को अनाज नहीं है। इस कारण उसका शरीर दुर्बल एरा निस्तेज हो गया है। अपने दुर्बल और निस्तेज तन को ढंकने के लिए उसके पास वस्त्र भी नहीं है। वह फटे-पुराने वस्त्र पहनकर या पेड़ की बड़ी पत्तियों से अपने शरीर को ढंक कर काम चला रहा है। किसान अपना खून पसीना बहाकर बंजर जमीन को भी उपजाऊ बना देता है। कवि को दुनिया में अच्छे बुरे लोगों से कोई सरोकार नहीं है। वह सिर्फ किसानों की बात और उनका ध्यान करना चाहता है, इसलिए वह उसके गीत गाना चाहता है ।
यंत्रवत जीवित बना है, माँगते अधिकार सारे,
रो रही पीड़ित मनुजता, आज अपनी जीत हारे,
जोड़कर कण-कण उसी के, नीड़ का निर्माण कर लूँ ।
उस कृषक का गान कर लूँ ।।
अर्थ: आज का युग विज्ञान एवं तकनीक का युग है। बिना यंत्रों के मानव जीवित नहीं रह सकता है। आज के इस युग में सभी लोग अपने अपने अधिकारों की माँग कर रहे हैं। लेकिन हमारा दुर्भाग्य यह है कि आज भी हमारे देश में किसान का बुरा हाल है। किसान के दुर्दशा के कारण हो आज हमारी मानवता पीड़ित है। इस कारण आज हम जीत कर भी हार गए है अर्थात हमने बहुत प्रगति कर ली है। वास्तव में इस प्रगति का मानवता को कोई लाभ नहीं हुआ। इसलिए कवि प्रत्येक किसान को अपने साथ एकत्रित करके ऐसे घोंसले का निर्माण करना चाहता है, जिसमें किसान का भविष्य उज्ज्वल हो; उसे खोया हुआ मान सम्मान व प्रतिष्ठा फिर से प्राप्त हो। इसलिए मैं कृषक के गीत गाना चाहता हूँ।
स्वाध्याय
सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए :-
(१) संजाल पूर्ण कीजिए :
उत्तर:
(२) कृतियाँ पूर्ण कीजिए :
१.
उत्तर:
२.
उत्तर:
(३) वाक्य पूर्ण कीजिए :
१. कृषक कमजोर शरीर को ______
उत्तर: पेड़ की पत्तियों से ढँकता है।
२. कृषक बंजर जमीन को ______
उत्तर: खून-पसीने से उपजाऊ बनाता है।
(४) निम्नलिखित पंक्तियों में कवि के मन में कृषक के प्रति जागृत होने वाले भाव लिखिए :
उत्तर:
(५) कविता में आए इन शब्दों के लिए प्रयुक्त शब्द हैं :
१. निर्माता –
उत्तर: सृजक
२. शरीर –
उत्तर: तन
३. राक्षस –
उत्तर: असुर
४. मानव
उत्तर: मनुज
(६) कविता की प्रथम चार पंक्तियों का भावार्थ लिखिए ।
उत्तर: कवि कहते हैं कि किसान विश्व का पालक एवं अन्नदाता है । लेकिन आज वह स्वयं मूलभूत सुविधाओं से वंचित होकर हाथों में संतोष की तलवार लिए हुए अपने जीवन में तेज गति से आगे बढ़ता चला जा रहा है, अर्थात जीवन में आनेवाली विपरीत व कठिन परिस्थिति में भी वह संतुष्ट रहने का प्रयत्न करना है। दुनिया में जब मधुमास यानी वसंत ऋतु छाई रहती है, अर्थात लोगों के जीवन में सर्वत्र संपन्नता होती है; तब किसान पतझड़ की छाया में ही अपना जीवन – यापन करता है, हमेशा दुखी ही होता है । परंतु उसकी दीनता भी अभिमान के समान है । इसलिए ऐसे स्वाभिमानी किसान का कवि सम्मान करना चाहता है और उसे उसकी खोई प्रतिष्ठा फिर से स्थापित करने हेतु कवि उस पर गीत गाना चाहता है ।
(७) निम्न मुद्दों के आधार पर पद्य विश्लेषण कीजिए :
रचनाकार कवि का नाम :
रचना का प्रकार :
पसंदीदा पंक्ति :
पसंदीदा होने का कारण :
रचना से प्राप्त प्रेणा :
उत्तर:
(i) रचनाकार कवि का नाम – कवि दिनेश भारद्वाज
(ii) रचना का प्रकार – गीत (आधुनिक विधा काव्य)
(iii) पसंदीदा पंक्ति – क्षीण निज बलहीन.. उर्वरा कर डालता जो। (विद्यार्थी अपनी पसंदीदा काव्य पंक्ति लिख सकते हैं।)
(iv) पसंदीदा होने का कारण – उपर्युक्त पंक्ति में किसान की दुर्दशा का वर्णन किया गया है। परिस्थिति प्रतिकूल होने के बावजूद भी किसान कड़ी मेहनत करता है और बंजर जमीन को उपजाऊ बनाता है। अर्थात प्रतिकूल परिस्थिति में भी वह हिम्मत नहीं हारता बल्कि संघर्ष करता रहता है। इसलिए यह पंक्ति मुझे बेहद पसंद है।
(v) रचना से प्राप्त प्रेरणा – किसान हमारे देश का अन्नदाता है, परंतु आज वह जीवन की मूलभूत सुविधाओं से वंचित है। हमारा यह कर्तव्य है कि हम सब भारतीय एकत्रित होकर किसान को उसका खोया सम्मान एवं प्रतिष्ठा स्थापित करके रचनात्मकता की ओर एक अभियान चलाएँ।