Maharashtra Board Textbook Solutions for Standard Ten

पाठ १ – बरषहिं जलद

‘बरषहिं जलद’ यह रचना रामचरितमानस का एक अंश है। रामचरितमानस के किष्किंधा कांड से यह रचना ली गई है। वर्षा का समय है। प्रकृति वर्षा के स्वागत के लिए उत्सुक है। ऐसे में श्री राम को सीता जी याद आ जाती है। सीता जी के बिना उनका मन भयभीत हो उठता है। प्रकृति का सुंदर वर्णन करते हुए उन्होंने पहाड़, लहराती खेती, जुगनू, नदियाँ, धरती, वृक्ष आदि का मनोहारी वर्णन किया है। उन्होंने व्यक्ति को सुसंग व सुराज्य के महत्त्व से परिचित कराया है। व्यक्ति को मद, मोह व कुसंग का त्याग करना चाहिए और उत्तम धर्म का आचरण करना चाहिए, यह सीख दी है।

घोरा – भयंकर

डरपत – डरना 

खल – दुष्‍ट

जथा – यथा, जैसे 

थिर – स्‍थिर

नियराई – नजदीक आना

नवहिं – झुकना

बुध – विद्‌वान

तोराई – तोड़कर

ढाबर – मटमैला

लपटानी – लिपटना

जिमि – जैसे

बटु – बालक

विटप पेड़, वृक्ष

अर्क – मदार (मंदार) का वृक्ष

उद्‌यम – उद्योग

कतहुँ – कहीं

सोह – सुशोभित होना

दंभिन्ह – घमंडी

निरावहिं – निराना (खेती की प्रक्रिया)

तजहिं – त्‍यागना

मद – घमंड

चक्रबाक – चक्रवाक पक्षी

भ्राजा – शोभायमान होना

मारुत – हवा

नसाहिं – नष्‍ट होना

निबिड़ – घोर, घना

बिनसइ – नष्‍ट होना

चौपाई

घन घमंड नभ गरजत घोरा । प्रिया हीन डरपत मन मोरा ।।

दामिनि दमक रहहिं घन माहीं । खल कै प्रीति जथा थिर नाहीं ।।

बरषहिं जलद भूमि निअराएँ । जथा नवहिं बुध विद्या पाएँ ।।

बूँद अघात सहहिं गिरि कैसे । खल के बचन संत सह जैसे ।।

छुद्र नदी भरि चली तोराई । जस थोरेहुँ धन खल इतराई ।।

भूमि परत भा ढाबर पानी । जनु जीवहिं माया लपटानी ।।

समिटि-समिटि जल भरहिं तलावा । जिमि सदगुन सज्‍जन पहिं आवा ।।

सरिता जल जलनिधि महुँ जाई । होई अचल जिमि जिव हरि पाई ।।

 

अर्थ : श्री राम-लक्ष्मण, सीता जी की खोज में इधर-उधर भटक रहे हैं। वर्षा ऋतु प्रारंभ हो गई है। ऐसे में श्री राम अपने भाई लक्ष्मण से कहते हैं –

 

“हे लक्ष्मण! देखो, आकाश में बादल बड़े अभिमान के साथ घुमड़-घुमड़कर घोर गर्जना कर रहे हैं, प्रियतमा सीता के बिना मेरा मन बहुत डर रहा है। बिजली की चमक बादलों में रह-रहकर हो रही है, वह ठहरती ही नहीं है ठीक उसी प्रकार जैसे दुष्ट की प्रीति कभी स्थिर नहीं रहती।”

 

“आसमान में छाए हुए बादल धरती के पास आकर ऐसे बरस रहे हैं, जैसे विद्या पाकर विद्वान नम्र हो जाते हैं। पहाड़ बूँदों की चोट को ऐसे सह रहे हैं जैसे दुष्टों के वचनों को संत सहा करते हैं।”

 

‘”तेज वर्षा के कारण छोटी नदियाँ भर गई हैं। वे अपने किनारों को इस प्रकार तोड़ते हुए बह चली हैं जैसे थोड़ा-सा धन पाकर दुष्ट लोग अभिमानी हो जाते हैं और अपनी मर्यादा त्याग देते हैं। बरसात का शुद्ध पानी धरती पर पड़ते ही इस प्रकार गंदला (मलिन) हो गया है जैसे पवित्र व शुद्ध जीव माया के फंदे में पड़ते ही मलिन हो जाता है।”

 

“धरती पर गिरा बरसात का पानी इकट्ठा होकर तालाबों में ऐसे भर रहा है जैसे सद्गुण आहिस्ता-आहिस्ता सज्जन व्यक्ति के पास चले जाते हैं। नदी का जल सागर में जाकर वैसे ही स्थिर हो जाता है; जैसे जीव ईश्वर को पाकर अचल हो जाता है अर्थात जीवन-मृत्यु के आवागमन से मुक्त हो जाता है।”

 

 

दोहा

हरित भूमि तृन संकुल, समुझि परहि नहिं पंथ ।

जिमि पाखंड बिबाद तें, लुप्त होहिं सदग्रंथ ।।

 

अर्थ : “जैसे पाखंड के प्रचार से सद्ग्रंथ लुप्त हो जाते हैं वैसे ही वर्षा ऋतु में धरती घास में पूर्णत: ढँककर लुप्त हो गई है अर्थात हरी-भरी हो गई है, जिससे रास्ते समझ में नहीं आ रहे हैं।”

 

 

चौपाई

दादुर धुनि चहुँदिसा सुहाई । बेद पढ़हिं जनु बटु समुदाई ।।

नव पल्‍लव भए बिटप अनेका । साधक मन जस मिले बिबेका ।।

अर्क-जवास पात बिनु भयउ । जस सुराज खल उद्यम गयऊ ।।

खोजत कतहुॅं मिलइ नहिं धूरी । करइ क्रोध जिमि धरमहिं दूरी ।।

ससि संपन्न सोह महि कैसी । उपकारी कै संपति जैसी ।।

निसि तम घन खद्योत बिराजा । जनु दंभिन्ह कर मिला समाजा ।।

कृषी निरावहिं चतुर किसाना । जिमि बुध तजहिं मोह-मद-माना ।।

देखिअत चक्रबाक खग नाहीं । कलिहिं पाइ जिमि धर्म पराहीं ।।

विविध जंतु संकुल महि भ्राजा । प्रजा बाढ़ जिमि पाई सुराजा ।।

जहँ-तहँ रहे पथिक थकि नाना । जिमि इंद्रिय गन उपजे ग्‍याना ।।

 

अर्थ : श्रीराम लक्ष्मण से कह रहे हैं, “चारों दिशाओं में मेंढ़कों की ध्वनि ऐसी सुहावनी लगती है, जैसे विद्यार्थियों के समुदाय वेद पाठ कर रहे ह्नों। कई वृक्षों पर नए पत्ते आने से वे ऐसे हरे-भरे व सुंदर हो गए हैं, जैसे किसी साधक या भक्त का मन ज्ञान प्राप्त होने पर हो जाता है !

 

“मदार व जवास नाम के पेड़ पर्णहीन हो गए हैं (उनके पत्ते झड़ गए है।) जैसे सुराज्य में दुष्टों का उद्यम या व्यवसाय चला जाता है।

 

अर्थात सुराज्य में दुष्टों की एक भी नहीं चलती है। वर्षा के कारण धूल वैसे ही कहीं खोजने पर भी नहीं मिलती।” जैसे क्रोध धर्म को दूर कर देता है अर्थात क्रोध का आवेश होने पर धर्म का ज्ञान नहीं रह जाता।”

 

“लहराती हुई खेती से हरी-भरी धरती इस प्रकार शोभित हो रही है, जैसे उपकारी पुरुष की संपत्ति सुशोभित होती है। रात के घने अंधकार में जुगनू अधिक शोभा पा रहा मानो दंभियों का समाज आ जुटा हो।” 

 

“वर्षा शुरू होने के कारण चतुर किसान खेतों से घास आदि अनुपयुक्त चीजें निकालकर फेंक रहे हैं, जैसे विद्वान लोग मद, मोह व मान का त्याग कर देते हैं। कहीं भी चक्रवाक पक्षी दिखाई नहीं दे रहे हैं, जैसे कलियुग को पाकर धर्म भाग जाते हैं।”

 

“धरती कई तरह के जीवों से भरी हुई उसी प्रकार शोभायमान है; जैसे सुराज्य पाकर प्रजा की वृद्धि होती है। जहाँ-तहाँ अनेक पथिक थककर ठहरे हुए हैं, जैसे ज्ञान उत्पन्न होने पर इंद्रियाँ शिथिल होकर विषयों की ओर जाना छोड़ देती हैं।”

 

 

दोहा

कबहुँ प्रबल बह मारुत, जहँ-तहँ मेघ बिलाहिं ।

जिमि कपूत के उपजे, कुल सद्धर्म नसाहिं ।।

कबहुँ दिवस महँ निबिड़ तम, कबहुँक प्रगट पतंग ।

बिनसइ-उपजइ ग्‍यान जिमि, पाइ कुसंग-सुसंग ।।

 

अर्थ : “वर्षा ऋतु में कभी-कभी वायु बड़े जोर से चलने लगती है; जिसके कारण बादल जहाँ-जहाँ गायब हो जाते हैं। जैसे कुल में कुपुत्र के पैदा होने से परिवार के उत्तम धर्म यानी अच्छे आचरण नष्ट हो जाते हैं। कभी-कभी आसमान में छाए बादलों के कारण दिन में ही घोर अंधकार छा जाता है और फिर अचानक से आसमान में सूर्य दिखाई देता है। जैसे कुसंग पाकर ज्ञान नष्ट हो जाता है और सुसंग पाकर फिर से उत्पन्न हो जाता है।”

स्‍वाध्याय

सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

(१) कृति पूर्ण कीजिए :

IMG 20231030 000546 पाठ १ – बरषहिं जलद

उत्तर:

IMG 20231030 002159 पाठ १ – बरषहिं जलद

(२) निम्‍न अर्थ को स्‍पष्‍ट करने वाली पंक्‍तियाँ लिखिए :

१. संतों की सहनशीलता _____

उत्तर: बूँद अघात सहहिं गिरि कैसे । खल के बचन संत सह जैसे।

 

२. कपूत के कारण कुल की हानि _____

उत्तर: जिमि कपूत के उपजे कुल सद्धर्म नसाहिं।

(३) तालिका पूर्ण कीजिए :

IMG 20231030 000558 पाठ १ – बरषहिं जलद

उत्तर:

20231030 103531 0000 पाठ १ – बरषहिं जलद

(४) जोड़ियाँ मिलाइए :

IMG 20231030 000613 पाठ १ – बरषहिं जलद

उत्तर:

IMG 20231030 002230 पाठ १ – बरषहिं जलद

(५) इनके लिए पद्‌यांश में प्रयुक्‍त शब्‍द :

IMG 20231030 000624 पाठ १ – बरषहिं जलद

उत्तर:

IMG 20231030 002330 पाठ १ – बरषहिं जलद

(६) प्रस्‍तुत पद्‌यांश से अपनी पसंद की किन्हीं चार पंक्‍तियों का सरल अर्थ लिखिए ।

उत्तर: 

कृषी निरावहिं चतुर किसाना । जिमि बुध तजहिं मोह-मद-माना ।।

देखिअत चक्रबाक खग नाहीं । कलिहिं पाइ जिमि धर्म पराहीं ।।

विविध जंतु संकुल महि भ्राजा । प्रजा बाढ़ जिमि पाई सुराजा ।।

जहँ-तहँ रहे पथिक थकि नाना । जिमि इंद्रिय गन उपजे ग्‍याना ।।

 

अर्थ : “वर्षा शुरू होने के कारण चतुर किसान खेतों से घास आदि अनुपयुक्त चीजें निकालकर फेंक रहे हैं, जैसे विद्वान लोग मद, मोह व मान का त्याग कर देते हैं। कहीं भी चक्रवाक पक्षी दिखाई नहीं दे रहे हैं। ऐसे लग रहा है मानो कलियुग को पाकर धर्म भाग जाते हैं।”

 

“धरती कई तरह के जीवों से भरी हुई उसी प्रकार शोभायमान हो रही है जैसे सुराज्य पाकर प्रजा की वृद्धि होती है। जिस प्रकार ज्ञान उत्पन्न होने पर इंद्रियाँ शिथिल होकर विषयों की और जाना छोड़ देती हैं। वैसे ही सुराज्य में सर्वत्र पथिक थककर एक जगह पर ठहरे हुए हैं।”

उपयोजित लेखन

कहानी लेखन :

‘परहित सरिस धर्म नहिं भाई’ इस सुवचन पर आधारित कहानी लेखन कीजिए।

उत्तर: 

विजयपुर नगर में संजय नाम का एक अमीर जमींदार रहता था। वह बहुत ही दयालु एवं परोपकारी था। यदि लोग उसके पास दान या सहायता के लिए आते तो वह उनकी जरूर से सहायता करता था। उसके द्वार से कोई भी खाली नहीं लौटता था। वह सबकी मदद करता था। 

 

एक दिन उस नगर में एक साधु आया। उसे जमींदार के बारे में लोगों से पता चला कि वह सबकी मदद करता है। इसलिए साधु भी उसके घर गया। साधु को देखते ही संजय ने उसके पाँव हुए और उन्हें बैठने के लिए कहा। उसने बड़े प्यार से साधु का सत्कार किया और उसके खाने का भी प्रबंध करवाया। 

 

साधु ने उसके घर में ही अपना डेरा जमाया। साधु बहुत ही धूर्त व्यक्ति था। उसने संजय को अपने वश में कर लिया और उसकी सारी संपत्ति लिखवा ली। पश्चात उसने संजय को घर से निकाल दिया। संजय अपने परिवार के साथ वहाँ से निकला और जंगल में आकर रहने लगा।

 

एक दिन उस जंगल में वही साधु शिकार करने आया। एक बाघ का शिकार करते समय वह घायल हो गया। उसे जंगल में खून से लथपथ पड़ा हुआ देखकर संजय ने उसकी मरहम-पट्टी और सेवा की। उसे पता था कि यह वही साधु है; जिसने उसकी सारी संपत्ति हड़प ली थी। फिर भी उसने साधु की सेवा की और उसे मरने से बचाया। आखिर कहा ही गया है: ‘परहित सरिस धर्म नहिं भाई।’ 

 

सीख: परोपकार से बढ़कर अन्य कोई धर्म नहीं। हमें एक-दूसरे की मदद करनी चाहिए। हमें किसी के साथ बुरा व्यवहार नहीं करना चाहिए।