पाठ ५ – बंदर का धंधा
हाथ लगा बंदर के एक दिन,
टूटा-फूटा आला ।
झट बंदर ने पेड़ के नीचे,
कुरसी-मेज ला डाला ।
भालू आकर बोला-मुझको,
खॉंसी और जुकाम,
बंदर बोला-तुलसी पत्ते,
पीपल की जड़ थाम ।
पानी में तुम इन्हें उबालो,
सुबह-शाम को लेना,
खॉंसी जब छू-मंतर होए,
फीस तभी तुम देना ।
बिल्ली बोली-मुझको आया,
एक सौ चार बुखार,
मैं शिकार पर कैसे जाऊँ,
जल्दी इसे उतार ।
बंदर बोला-रस गिलोय का,
तीन बार तुम पीना,
कल से ही तुम डांस करोगी
ईना, मीना, डीना ।
तभी लोमड़ी आकर बोली,
चिकना-सुंदर मुझे बनाओ,
मैं ही दीखूँ सबसे सुंदर
ऐसी बूटी लाओ ।
बंदर बोला-घी कुँवार तुम
दोनों समय लगाओ,
चमकेगा कुंदन-सा चेहरा
फीस मुझे दे जाओ ।
चल निकला बंदर का धंधा,
अब वह मौज मनाता,
अच्छी-अच्छी जड़ी-बूटियाँ,
जंगल से वह लाता ।