पाठ ६ – निसर्ग वैभव
The poet says, “O God, how much beauty is scattered in this natural world.” There is sunshine somewhere on the hilltops and in the valleys, and somewhere there is shadow. The grasses are thrilled by the touch of the wind. The sound of murmuring caused by the movement of leaves in the forest every day due to the blowing of the wind appears like sweet music. The beauty of flowers gives coolness to the eyes. Swarms of bumblebees are humming and drinking nectar from buds, and butterflies are flying. Somewhere far away, the cuckoo is singing melodiously among the dense trees.
In the soft rays of the sun, the shadows are falling on the tall palms and are stable. The golden rays of the sun greet these mountain peaks first. In the evening here in the people less forests, she secretly sleeps after doing evening prayer. Countless stars and the moon look like mirrors in the night sky. It is here that the scented air sleeping on the shoulders of the mountains wakes up. This blossoming beauty fascinates the mind. What wonderful quirks are there in the life of the mountain region? Birds eat the fruit, and squirrels keep munching on the tender fruit. The animals living in the forest seem happy in this turquoise courtyard.
God, I remember the human world at such moments. So much beauty is scattered in the inert world. What is the reason that worries and struggles permeate the life of an intelligent man every day? We have to re-analyze human nature. Why is man, the representative of God on earth, leading such a cursed life? It seems he is confined by his petty ego. has become self-centered. The whole Vasudha is one family; such a concept has disappeared from his mind.
श्लक्ष्ण – मधुर
अनिल – पवन
अहरह – प्रतिदिन
मुकुल – कली
शैल – पर्वत
समीरण – पवन
मरकत – पन्ना (एक रत्न)
निर्जन – वीरान
अपलक – बिनापलक झपकाए
मँझधार – बीचोबीच, लहरों के बीच
वैचित्र्य – अनोखापन
गिरि शिखर – पहाड़ों की चोटियाँ
वन-भू – जंगल या कानन
शीतल – ठंड
ऊषा – सुबह होने से पूर्व आसमान में सूर्य की लाल आभा फैल जाती है वह समय
खग – पक्षी
जड़ जग – सृष्टि
चेतन जग – संसार
विषण्ण – व्यथित या निराश
संभाषणीय
किसी विषय पर स्वयं स्फूर्त भाषण दीजिए :
उत्तर: छात्रों को यह गतिविधि स्वयं करनी चाहिए ।
पठनीय
निम्न शब्द पढ़िए । शब्द पढ़ने के बाद जो भाव आपके मन में आते हैं वे कक्षा में सुनाइए ।
नदी, पर्वत, वृक्ष, चाँद
उत्तर:
नदी – नदी के मन के भाव हमें हमेशा आगे बढ़ने की सिख देता है. नदी हमेशा आगे की और बहती है नदी से हमें जीवन में आगे बढ़ना और कभी हार ना मारना सीखना चाहिए। कर्म में ही हमारा विश्वास है। फल की इच्छा कभी नहीं करनी चाहिए। नदी हम सब को शीतलता प्रदान करती है। नदी की बहती आवाज़ मन को शांत करती है। हमें नदी को साफ रखना चाहिए उसके पास गंदगी नहीं डालनी चाहिए।
पर्वत – पर्वत देखने में बहुत अच्छे लगते है। हमेशा ऊंचाई की तरह इशारा करते है। हमें पर्वतों को देख कर हमेशा आगे बढ़ने और अपने लक्ष्य को ऊँचा करने की प्रेरणा लेनी चाहिए।
वृक्ष – वृक्ष धारा की आभूषण है। वृक्ष हमारी धरती के शान है यह है तो हम जीवित है। वृक्ष हम सब के जीने का सहारा है। यह पशु-पक्षियों का आवास है। वृक्ष हमारे वातावरण को साफ रखता है। वृक्ष से हमें ताज़ा साँस लेने को मिलती है।
चाँद – चांद कुदरत का एक बहुत प्यारा तोहफा हैं । आसमान में चाँद रात को बहुत अद्भुत लगता है। रात को चाँद की रोशनी में घूमने में और मज़ा आता है। ऐसा लगता है चाँद हमारे साथ चल रहा है।
कल्पना पल्लवन
किसी कार्यालय में नौकरी पाने हेतु साक्षात्कार देने वाले और लेने वाले व्यक्तियों के बीच होने वाला संवाद लिखिए ।
उत्तर:
अमित: नमस्कार, महोदय।
अधिकारी: नमस्कार, आइए बैठिए।
अमित: आप से मिलकर प्रसन्नता हुई।
अधिकारी: मुझे भी अपनी योग्ताओं के बारे में बताइए।
अमित: जी महोदय, मैंने प्रथम श्रेणी में मुंबई के जमनालाल संस्थान से मानव संसाधन में एम.बी.ए. किया है। पिछले एक वर्ष से इस स्टार्ट अप कंपनी लयोला में कार्यरत हूँ।
अधिकारी: बहुत अच्छा, इसके अलावा अपनी कुछ रुचियों के बारे में बताएँ।
अमित: मुझे संगीत, किताबें पढ़ना और भ्रमण करना पसंद है।
अधिकारी: मौजूदा नौकरी छोड़ने का कारण?
अमित: पदोन्नति और एक अच्छे वेतनमान के लिए।
अधिकारी: हम आपको यह नौकरी क्यों दे?
अमित: मैं शिक्षा और अनुभव के लिहाज से इस पद के लिए उपयुक्त उम्मीदवार हूँ। उत्साही, ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ हूँ।
अधिकारी: हम आपको दो दिनों में सूचित करेंगे।
अमित: धन्यवाद सर।
पाठ के आँगन में
(१) सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए :-
(क) संजाल :
उत्तर:
(ख) कविता की पंक्तियों को उचित क्रमानुसार लिखकर प्रवाह तख्ता पूर्ण कीजिए :
(१) परिचित मरकत आँगन में !
(२) अभिशापित हो उसका जीवन?
(३) अनिल स्पर्श से पुलकित तृणदल,
(४) निश्चल तरंग-सी स्तंभित !
उत्तर:
(२) कविता द्वारा प्राप्त संदेश लिखिए।
उत्तर: कविता में प्रकृति के सौंदर्य को बहुत ही सुंदर ढंग से चित्रित किया गया है। कविता में बताया गया है कि एक ओर इस धरती पर मौजूद पेड़, पहाड़, फूल, झरने, पशु-पक्षी सभी खुशी से झूम रहे हैं, वहीं दूसरी ओर मानव जीवन संघर्षों और परेशानियों से भरा हुआ है। इसका कारण स्वयं मनुष्य है। वह आत्मकेंद्रित हो गया है। वह अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए संसार के प्रति अपने कर्तव्यों की उपेक्षा कर रहा है। अतः मानव मन को मथने की आवश्यकता है। उसके मन में संसार के प्रति प्रेम जगाना और उसे अपने कर्तव्यों का बोध कराना आवश्यक है।
(३) कविता के तृतीय चरण का भावार्थ सरल हिंदी में लिखिए।
उत्तर:
फूलों की ज्वालाएँ
आँखें करतीं शीतल,
मुकुल अधर मधु पीते
गुंजन भर मधुकर दल !
तितली उड़तीं,
दूर, कहीं पल्लव छाया में
रुक-रुक गाती वन प्रिय कोयल !
भावार्थ – रंग-बिरंगे फूल आंखों को ठंडक प्रदान करते हैं। मधुमक्खियाँ शहद से भरी कलियों का रस पीती हैं और तितलियाँ उनके ऊपर मंडराती हैं। कहीं दूर जंगल में एक पेड़ पर नए अंकुरित पत्तों की छाया में बैठी कोयल अपनी सुरीली आवाज से बीच-बीच में मधुर गीत गाती रहती है।
श्रवणीय
नीरज जी द्वारा लिखित कोई कविता यू ट्यूब पर सुनिए और उसके केंद्रीय भाव पर चर्चा कीजिए।
उत्तर: छात्रों को यह स्वयं करना चाहिए।
भाषा बिंदु
निम्नलिखित मुहावरे/कहावतों में से अनुपयुक्त शब्द काटकर उपयुक्त शब्द लिखिए :
१. टोपी पहनना –
उत्तर: टोपी पहनना।
२. कमर बंद करना –
उत्तर: नजर बंद करना।
३. गेहूँ गीला होना –
उत्तर: आटा गीला होना।
४. नाक की किरकिरी होना –
उत्तर: आँख की किरकिरी होना।
५. धरती सर पर उठाना –
उत्तर: आसमान सर पर उठाना।
६. लाठी पानी का बैर –
उत्तर: आग-पानी का बैर।