पाठ ४ - सिंधु का जल
I am in constant motion, and this is the identity of my life. There is a sound of yesterday in my voice. I am the water of the river Indus. Civilization on earth was born on my shores. Cultures flourish; humanity spreads on my shores. My speed never slowed down. My pace is fickle, but my spirit is unshakable.
I am the holy water of the river Indus. Those who come to bathe in my water, I never ask them about their caste and religion; I just know the essence of life. My waves are always moving forward. There is life in them. I never ask those who come to quench their thirst in my water whether they are my friends or enemies. I do not ask people whether they are Muslim or Hindu before removing the dirt.
My water is for everyone. I want everyone who comes here to drink this water to their heart’s content. Many small rivers come running and merge in me. Many civilizations and cultures get mixed up in me. But what to tell, how to tell, sometimes blood also flows in my water. Battles take place on my ghats. Swords rattle.
The atmosphere echoes with the hoofbeats of horses. Cannons roar. There are explosions, and many brave warriors become martyrs. For me, he was a brave soldier. I don’t ask where they are from. Where did you come from? I wash everyone’s wounds. Tears from the eyes of many widows come out of their eyes and get mixed in my water. Dear humans, no matter how I flow, I am the river Indus. Indu shows her reflection in my rippling waters.
शब्द संसार:
प्रवाहमान – गतिशील, निरंतर, प्रवाहित
मजहब – धर्म मर्म
रणबांकुरे – बहादुर, वीर, योद्धा
बिंब – छाया, आभास
इंद्रु – चंद्रमा
घाव धोना – मरहमपट्टी करना, घाव साफ करना
स्वर – ध्वनि
गति – वेग
अचल – स्थिर
आसपास
नदी के जल-प्रदूषण पर चर्चा कीजिए :
उत्तर: मानव की मूलभूत आवश्यकताओं में जल भी आवश्यक वस्तु है। ये जल हमें प्रकृति के विभिन्न स्रोतों जैसे नदी, झरने, झीलों आदि से प्राप्त होता है। इन सबमें नदी हमारे लिए अति विशिष्ट स्थान रखती है। मानव सभ्यता का विकास इन्हीं नदी के किनारे हुआ है और हमने भी उसे आदर देने के लिए माँ का दर्जा दिया है परंतु मानव सभ्यता के विकास की अंधी दौड़ से उपजे प्रदूषण के कारण नदियों ने माँ का दर्जा लगभग खो दिया है।
वर्तमान में हमारी नदियों में इतना प्रदूषण बढ़ गया है पूरे विश्व नदियों के प्रदूषण को एक भयंकर समस्या के रूप में देखा जा रहा है। मानवीय गतिविधियों के कारण नदियों के जल में प्रदूषण बढ़ता ही जा रहा है। नदियों में कल-कारखानों की गंदगी को बहाकर लगातार प्रदूषित किया जा रहा है। यह प्रदूषित पानी न केवल मानव बल्कि धरती पर रहने वाले सभी जीव-जंतुओं, कीट पतंगों सभी को नुकसान पहुँचा रहा है। समय रहते यदि हम नहीं चेते तो वह समय दूर नहीं जब मनुष्य साफ़ पानी देखने के लिए भी तरस जाएगा।
संभाषणीय
‘जल ही जीवन है’ विषय पर कक्षा में गुट बनाकर चर्चा कीजिए ।
उत्तर: प्राचीन काल से ही नदियाँ हमारी जीवनदायिनी रही हैं। नदियों को हमने माँ का दर्जा दिया है। जल के बिना हम जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते। जल केवल हमारे रोजमर्रा के उपयोगों में ही नहीं आता बल्कि व्यावसायिक, कृषि, कल-कारखाने, भवन-निर्माण आदि के लिए भी हमें जल की आवश्यकता होती है। प्रकृति के इस अनमोल उपहार को हम लेकिन सहेज नहीं पा रहे हैं और अनावश्यक रूप से जल की बर्बादी और उसे प्रदूषित करते जा रहे हैं।
आज देश के कई भागों को पानी की कमी का सामना करना पड़ रहा है। लोगों को पेयजल को प्राप्त करने के लिए भी घंटों मेहनत और मशक्कत करनी पड़ती है। किसानों को फसल उपजाने के लिए पर्याप्त पानी नहीं मिल रहा जिसके कारण उत्पादन कम हो रहा है और महँगाई दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही है। पेड़ पौधों को पर्याप्त पानी न मिलने के कारण पेड़-पौधे सूखते जा रहे हैं जिसके कारण भूमि का जल स्तर भी कम होता जा रहा है आने वाले दिनों में यदि हम इसी तरह हम जल को बर्बाद करते रहें तो मनुष्य बूँद बूँद के लिए तरसने लगेगा।
पठनीय
रवींद्रनाथ टैगोर की कोई कविता पढ़कर ताल और लय के साथ उसका गायन कीजिए ।
उत्तर:
पिंजरे की चिड़िया थी..
पिंजरे की चिड़िया थी सोने के पिंजरे में
वन कि चिड़िया थी वन में
एक दिन हुआ दोनों का सामना
क्या था विधाता के मन में
वन की चिड़िया कहे सुन पिंजरे की चिड़िया रे
वन में उड़ें दोनों मिलकर
पिंजरे की चिड़िया कहे वन की चिड़िया रे
पिंजरे में रहना बड़ा सुखकर
वन की चिड़िया कहे ना…
मैं पिंजरे में क़ैद रहूँ क्योंकर
पिंजरे की चिड़िया कहे हाय
निकलूँ मैं कैसे पिंजरा तोड़कर
वन की चिड़िया गाए पिंजरे के बाहर बैठे
वन के मनोहर गीत
पिंजरे की चिड़िया गाए रटाए हुए जितने
दोहा और कविता के रीत
वन की चिड़िया कहे पिंजरे की चिड़िया से
गाओ तुम भी वनगीत
पिंजरे की चिड़िया कहे सुन वन की चिड़िया रे
कुछ दोहे तुम भी लो सीख
वन की चिड़िया कहे ना ….
तेरे सिखाए गीत मैं ना गाऊँ
पिंजरे की चिड़िया कहे हाय!
मैं कैसे वनगीत गाऊँ
वन की चिड़िया कहे नभ का रंग है नीला
उड़ने में कहीं नहीं है बाधा
पिंजरे की चिड़िया कहे पिंजरा है सुरक्षित
रहना है सुखकर ज़्यादा
वन की चिड़िया कहे अपने को खोल दो
बादल के बीच, फिर देखो
पिंजरे की चिड़िया कहे अपने को बाँधकर
कोने में बैठो, फिर देखो
श्रवणीय
अंतरजाल/यू ट्यूब से ‘जल संधारण’ संबंधी जानकारी सुनकर उसका संकलन कीजिए ।
उत्तर: जल सभी के लिए बहुत ही जरूरी होता है, जल के बिना हम सभी का जीवन संभव नहीं है क्योंकि जल ही जीवन है। हमें जल को बर्बाद नहीं करना चाहिए बल्कि उसको बचाना चाहिए। ऐसा करके हम जल संरक्षण में मदद कर सकते हैं। ऐसा करने के लिए हमें नीचे दिए गए इस एप्स को फॉलो करना होगा, जो निम्न है:
- अपने घर की पानी टंकी को खुला ना छोड़े।
- यदि टंकी कहीं से लिंक हो रही है तो उसे बनवा लें या टंकी को बदल दें।
- व्यर्थ रूप से पानी की बर्बादी को पूरी तरह से रोकना चाहिए जैसे यदि कोई काम एक बाल्टी से हो रहा है तो उसकी अधिक बाल्टी पानी लेने से बचें।
- कपड़े धोते समय पानी की टंकी को खुला न छोड़ें। जरूरत के हिसाब से ही पानी उपयोग करें।
कल्पना पल्लवन
‘मैं हूँ नदी’ इस विषय पर कविता कीजिए ।
उत्तर:
मैं नदी हूँ
– सुभाष राय
नदी के पास
होता हूँ जब कभी
बहने लगता हूँ
तरल होकर
नदी को उतर जाने
देता हूँ अपने भीतर
समूची शक्ति के साथ
उसके साथ बहती
रेत, मिट्टी, जलकुंभी
किसी को भी
रोकता नहीं कभी
तट में हो
बिल्कुल शांत, नीरव
या तट से बाहर
गरजती, हहराती
मुझे बहा नहीं पाती
तोड़ नहीं पाती
डुबा नहीं पाती
मैं पानी ही हो जाता हूँ
कभी उसकी सतह पर
कभी उसकी तलेटी में
कभी उसके नर्तन में
कभी उसके तांडव में
फैल जाता हूँ
पूरी नदी में
एक बूँद मैं
महासागर तक
रोम-रोम भीगता
लरजता, बरसता
नदी के आगे
नदी के पीछे
नदी के ऊपर
नदी के नीचे
कैसे देख पाती
वह अपने भीतर
पहचानती कैसे मुझे
ख़ुद से अलग
जब होता ही नहीं
मैं उसके बाहर
जब कभी सूख
जाती है वह
निचुड़ जाती है
धरती के गर्भ में
तब भी मैं होता हूँ
माँ के भीतर सोई नदी में
निस्पंद, निर्बीज, निर्विकार
पाठ के आँगन में
(१) सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए :
(क) आकृति पूर्ण कीजिए :
उत्तर:
(ख) पूर्ण कीजिएः-
पावन जल स्नान करने वालों से नहीं पूछता –
१.
२.
३.
उत्तर:
१. उनकी जात
२. उनका मजहब
३. उनका धर्म
२) भारत के मानचित्र में अलग-अलग राज्यों में बहने वाली नदियों की जानकारी निम्न मुद्दों के आधार पर तालिका में लिखिएः
उत्तर: भारत में अलग-अलग राज्यों में बहने वाली नदियों उनके उद्गम स्थल और बांध के नाम इस प्रकार हैं:
नदी : चंबल
उद्गम स्थल : जानापाव पहाड़ी
बांध का नाम: गांधी सागर
राज्य : मध्य प्रदेश
नदी : महानदी
उद्गम स्थल : रायपुर, छत्तीसगढ़
बांध का नाम : हीराकुंड बांध
राज्य : उड़ीसा
नदी : सतलुज नदी
उद्गम स्थल : मानसरोवर झील के निकट राक्षस ताल
बांध का नाम भाखड़ा नांगल बांध
राज्य: पंजाब नदी
(३) पाठ से ढूँढ़कर लिखिए :
(च) संगीत- लय निर्माण करने वाले शब्द ।
उत्तर:
प्रवाहमान-पहचान
उछलती – मचलती
आती – मचलसमाती
टापें – मचलतोपें
धोता – रोता
वैसे – कैसे
बिंदु – सिंधु
(छ) भिन्नार्थक शब्दों के अर्थलिखिए और ऐसे अन्य दस शब्द ढूँढ़िए ।
अलि –
अली –
उत्तर:
१. कुल – वंश
कूल – किनारा
२. चिर – पुराना
चीर – कपड़ा
३. दिन – दिवस
दीन – गरीब
४. कृति – रचना
कृती – निपुण
५. अंस – कंधा
अंश – हिस्स
६. आदि – आरंभ
आदी – अभ्यस्त
७. अवधि – समय
अवधी – भाषा
८. तरणि – सूर्य
तरणी – छोटी नाव
९. कोष – खजाना
कोश – शब्द-संग्रह
१०. तरी – गीलापन
तरि – नाव
पाठ से आगे
‘नदी जल मार्गयोजना’ के संदर्भ में अपने विचार लिखिए ।
उत्तर: भारत सरकार ने देश की अनेक नदियों को जल मार्ग में परिवर्तित करने की योजना बनाई है। यह यातायात का सबसे सस्ता साधन है। इसके लिए परिवहन मार्गों का निर्माण नहीं करना पड़ता। इसलिए सड़क और रेल परिवहन की तुलना में इसकी लागत बहुत कम है। देश में अभी तक केवल पाँच जलमार्ग विकसित हैं। ये हैं गंगा, ब्रह्मपुत्र, पश्चिमी तटीय नहर, काकीनाड़ा-पुड्डुचेरी नहर तथा पूर्वी तटीय नहर । इन्हें राष्ट्रीय जलमार्ग का नाम दिया गया है। इस योजना के द्वारा 101 नदियों को जलमार्ग के रूप में विकसित करने का लक्ष्य रखा गया है। इन जलमार्गों के द्वारा माल की ढुलाई और यात्रियों का परिवहन खर्च काफी कम तो होगा ही, साथ ही सड़क और रेल परिवहन का बोझ भी कम हो जाएगा ।
(१) प्रेरणार्थक क्रिया का रूप पहचानकर उसका वाक्य में प्रयोग कीजिए :-
(क) जिसे वहाँ से जबरन हटाना पड़ता था ।
उत्तर: हटाना – प्रथम प्रेरणार्थक क्रिया
वाक्य : रिश्वत के इलजाम के कारण उसे नौकरी से हटाना पड़ा।
(ख) महाराजा उम्मेद सिंह द्वारा निर्मित होने से ‘उम्मेद भवन’ कहलवाया जाता है ।
उत्तर: कहलवाया – द्वितीय प्रेरणार्थक क्रिया
वाक्य : दादीजी ने नौकर से कहलवाया कि सभी भोजन के लिए इकट्ठे हों।
(२) सहायक क्रिया पहचानिए :-
(च) हम मेहरान गढ़ किले की ओर बढ़ने लगे ।
उत्तर: लगे – लगना
(छ) काँच का कार्य पर्यटकों को आश्चर्यचकित कर देता है ।
उत्तर: देता – देना
(३) सहायक क्रिया का वाक्य में प्रयोग कीजिए ।
(त) होना
उत्तर: आपने कल का अखबार पढ़ा होगा।
(थ) पड़ना
उत्तर: मुझे मजबूरी में तुम्हारे साथ आना पड़ा।
(द) रहना
उत्तर: लगातार काम में लगे रहो।
(ध) करना
उत्तर: अपना कार्य स्वयं किया करो।