पाठ ३ – कबीर (पूरक पठन)
प्रस्तुत पूरक पठन में द्विवेदी जी ने कबीर के व्यक्तित्व, दार्शनिक विचार और उनकी साधना को दर्शाया है। हिंदी साहित्य के इतिहास में कबीर जैसा व्यक्तित्व लेकर कोई लेखक उत्पन्न नहीं हुआ। उन्होंने कबीर का प्रतिद्वंद्वी तुलसीदास को बताया है परंतु तुलसीदास व कबीर के व्यक्तित्व में बहुत अंतर था। यद्यपि दोनों ही भक्त थे परंतु दोनों स्वभाव, संस्कार और दृष्टिकोण में भिन्न थे। मस्ती, फक्कड़ाना स्वभाव और सब कुछ झाड़-फटकारकर चल देने वाले तेज ने कबीर को हिंदी साहित्य का अद्वितीय व्यक्ति बना दिया था। कबीर की वाणी का अनुकरण नहीं हो सकता। उनकी वाणी वह लता है जो योग के क्षेत्र में भक्ति का बीज पड़ने से अंकुरित हुई थी।
कबीर जी सर्वजगत के पाप को अपने ऊपर ले लेने की इच्छा से विचलित नहीं होते थे बल्कि और भी कठोर व शुष्क होकर ध्यान वैराग्य का उपदेश देते थे। अक्खड़ता कबीर का गुण नहीं है। जब वे योगी को संबोधन करते हैं तभी उनकी अक्खड़ता पूरे चढ़ाव पर होती है। वे फक्कड़ स्वभाव के थे। अच्छा हो या बुरा, खरा हो या खोटा, ‘जिससे एक बार चिपट गए उससे जिदंगी भर चिपटे रहो’ यह सिद्धांत उन्हें मान्य नहीं था। वे सत्य के जिज्ञासु थे और कोई माया-ममता उन्हें अपने मार्ग से विचलित नहीं कर सकती थी वे बिल्कुल मस्त-मौला थे। वे प्रेम के मतवाले थे परंतु अपने को उन दीवानों में नहीं गिनते थे जो अपनी प्रेमिका के लिए सिर पर कफ़न बाँधे फिरते हैं। उन्हें संसार की अच्छी-बुरी टिप्पणियों की परवाह नहीं थीं। योग के संबंध में कबीर कहते हैं कि केवल शारीरिक और मानसिक कार्यों की नियमावली से दीखने वाली ज्योति जड़ चित्त की कल्पना मात्र है। केवल क्रिया बाह्य है, ज्ञान चाहिए। बिना ज्ञान के योग व्यर्थ है।
द्विवेदी जी ने कहा है कि कबीर के लिए साधना एक विकट संग्राम स्थली थी, जहाँ कोई विरला शूरवीर ही टिक सकता है। कबीर के मतानुसार प्रेम किसी खेत में नहीं उगता, किसी बाज़ार में नहीं बिकता, फिर जो कोई भी, इसे चाहेगा, पा लेगा। वह राजा हो या प्रजा, उसे सिर्फ एक शर्त माननी होगी, वह शर्त है सिर उतारकर धरती पर रख ले। जिसमें साहस व विश्वास नहीं, वह प्रेम की गली में नहीं जा सकता। विश्वास ही प्रेम की कुंजी है जिसमें संकोच नहीं, दुविधा नहीं और कोई बाधा नहीं।
कबीर युगावतारी शक्ति और विश्वास लेकर पैदा हुए थे और युगप्रवर्तक की दृढ़ता उनमें विद्यमान थी इसलिए वे युग प्रवर्तन कर सकें। द्विवेदी जी ने कबीर जी के व्यक्तित्व के लिए एक वाक्य में कहा है कि, “कबीर सिर से पैर तक मस्त-मौला थे, बेपरवाह, दृढ़, उग्र, फूल से भी कोमल और वज्र से भी कठोर थे । “
फक्कड़ – मस्त
हठयोग – योग का एक प्रकार
सुरत – कार्यसिद्धि का मार्ग
मेख – कील, काँटा
मुराड़ा – जलती हुई लकड़ी
क्रांतदर्शी – दूरदर्शी
माशूक – प्रिय
तहकीक – जाँच
शम – शांति, क्षमा
मुहावरे
दाल न गलना – सफल न होना
वाक्य: मैंने बहला-फुसलाकर मोहक से अपना काम निकलवाना चाहा लेकिन मेरी दाल नहीं गली।
संभाषणीय
संत कबीर जी के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त कीजिए तथा कक्षा में उसका वाचन कीजिए :
उत्तर: छात्रों को यह स्वयं करना चाहिए।
सूचना के अनुसार कृतियाँ :
(१) संजाल :
उत्तर:
(२) परिच्छेद पढ़कर प्राप्त होने वाली प्रेणा लिखिए :
उत्तर: कबीर जी के उपदेशों और उनके व्यक्तित्व से सभी को प्रेरणा मिलती है। हमें अपने लक्ष्य तक पहुँचने में मोह-माया को बीच में नहीं आने देना चाहिए क्योंकि यह हमारे मार्ग में बाधक बन सकती है। संसार की टिप्पणियों की परवाह न करके अपना कर्म करते रहना चाहिए। स्वयं पर विश्वास होना चाहिए। गुरु के द्वारा दिए गए ज्ञान और अपनी साधना को संदेह की नज़रों से नहीं देखना चाहिए। यदि मनुष्य में आत्मविश्वास है तो वह किसी भी विकट संग्राम स्थली तक पहुँच कर विजयी हो सकता है।
श्रवणीय
किसी संत कवि के दोहे तथा पद सुनिए।
उत्तर:
संत कबीर का दोहा – जीवन की महिमा
जीवन में मरना भला, जो मरि जानै कोय |
मरना पहिले जो मरै, अजय अमर सो होय ||
अर्थ : जीते जी ही मरना अच्छा है, यदि कोई मरना जाने तो। मरने के पहले ही जो मर लेता है, वह अजर-अमर हो जाता है। शरीर रहते-रहते जिसके समस्त अहंकार समाप्त हो गए, वे वासना – विजयी ही जीवनमुक्त होते हैं।
संत कबीर का पद –
एकै पवन एक ही पानीं एकै जाेति समांनां ।
एकै खाक गढ़े सब भांडै एकै काेंहरा सांनां ।।
व्याख्या – कबीरदास कहते हैं कि एक ही हवा है। एक ही पानी है। और एक ही ईश्वर हैं। और इस संसार के हर इंसान के भीतर उसी ईश्वर का अंश ज्योति रूप में समाया है। कबीरदास कहते हैं कि जैसे कुम्हार एक ही मिट्टी से अनेक तरह के बर्तन बनाता है। ठीक उसी प्रकार ईश्वर रुपी कुम्हार ने भी एक ही मिट्टी से अनेक तरह के मनुष्य बनाये है। कहने का तात्पर्य यह है कि सभी मनुष्यों का शरीर पंचतत्व (जल , वायु , अग्नि , आकाश और पृथ्वी) से बना है। जो मनुष्य के मर जाने पर मिट्टी में मिल जाता हैं।
लेखनीय
‘कबीर संत ही नहीं समाज सुधारक भी थे’ इस विषय पर विचार लिखिए।
उत्तर: कबीरदास जी एक संत होने के साथ-साथ एक समाज सुधारक के रूप में भी जाने जाते हैं। उन्होंने ऐसी बहुत-सी बातें कही हैं जिनका सही उपयोग किया जाए तो समाज सुधार में सहायता मिल सकती है। वे स्पष्टवादी व निर्भीक थे, कबीर जी को संस्कारों की विचारहीन गुलामी पसंद नहीं थी, वे विचारहीन संस्कारों से मुक्त मनुष्यता को ही प्रेमभक्ति का पात्र मानते थे। उन्होंने भेदभाव को भुलाकर हमेशा भाईचारे के साथ रहने की सीख दी है। सामाजिक विषमता को दूर करना ही उनकी पहली प्राथमिकता थी। उनके विचार आज भी समाज के लिए प्रासंगिक है।
संभाषणीय
दोहों की प्रतियोगिता के संदर्भ में आपस में चर्चा कीजिए :
उत्तर:
अतुल – नमस्कार! नकुल, आप कैसे हो ?
नकुल – नमस्कार! मैं ठीक हूँ, आप कैसे हो? आजकल क्या चल रहा है?
अतुल – मैं भी ठीक हूँ। आजकल मैं दोहे की प्रतियोगिता की तैयारी में लगा हूँ।
नकुल – अरे वाह! यह तो अच्छी बात है, परंतु तुम्हारी प्रतियोगिता कब है ?
अतुल – बुधवार को है । हमारे विद्यालय में इस बार दोहों की प्रतियोगिता करवाई जा रही है, जो भी यह प्रतियोगिता जीतेगा उसे एक कंप्यूटर पुरस्कार के रूप में दिया जाएगा।
नकुल – बहुत अच्छी बात है। मेरी शुभकामना तुम्हारे साथ है।
अतुल – धन्यवाद मित्र !
मौलिक सृजन
संतों के वचन समाज परिवर्तन में सहायक होते हैं’ इस विषय पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर: सभ्यता के प्रभातकाल से ही मानवीय संवेदनात्मक प्रेमिल सहिष्णु, त्याग, क्षमा, दया, तथा सद्व्यवहार को महत्व देने वाले संतों का आर्विभाव इस भारत भूमि पर हुआ है। इनमें मुख्य थे कबीर, तुकाराम, गुरूनानक, रैदास इत्यादि। इन्होंने अपने वचनों द्वारा समाज को हमेशा परिवर्तित करने का प्रयास किया। इनमें सबसे पहला नाम आता है संत कबीर का । कबीर ने इस समय समाज में फैले अंधविश्वास और रूढ़ीवादी परंपरा पर गहरा आघात किया। यही इस बात का साक्षी है कि समय- समय पर इस धरती पर महान संतों ने जन्म लिया और अपने विचारों तथा उपदेशों के जरिए समाज में परिवर्तन लाने का प्रयास किया। इन संतों ने लोगों को यह समझाने का प्रयास किया कि अंधविश्वासों तथा कुरीतियों से जकड़ा समाज कभी आगे नहीं बढ़ सकता है। इसके लिए समाज में खुलापन होना तथा लोगों का समझदार होना आवश्यक है। इस प्रकार संतों के वचन समाज परिवर्तन में अवश्य सहायक होते हैं।
आसपास
मन की एकाग्रता बढ़ाने की कार्य पद्धति की जानकारी अंतरजाल/यू ट्यूब से प्राप्त कीजिए ।
उत्तर: मानसिक एकाग्रता बढ़ाने की कार्य पद्धतियों का अध्ययन करने के लिए कई अनुशासनिक तथा मानसिक अभ्यास होते हैं, जो अकेले या गुरु के मार्गदर्शन में किए जा सकते हैं।
प्राथमिकत: समय का समय-समय पर सबसे महत्वपूर्ण होना चाहिए, इसलिए दैनिक ध्यान अभ्यास करें। इसमें मन को एक ही स्थिति पर ध्यानित करने का प्रयास करें।
योग और प्राणायाम: योग और प्राणायाम के अभ्यास से मानसिक एकाग्रता बढ़ सकती है। योगासन और दीर्घकालिक प्राणायाम के साथ मन को नियंत्रित करने की क्षमता विकसित करें।
मानसिक व्यायाम: इसमें मानसिक पहेलियों, सुदोकू, या ब्रेन ट्रेनिंग गेम्स का खेलना शामिल हो सकता है, जो मानसिक एकाग्रता को बढ़ावा देते हैं।
मेडिटेशन: ध्यान एक अच्छा तरीका है मानसिक एकाग्रता को बढ़ाने का, जिसमें अपने विचारों को शांत करने और अपने आसपास के परिपेक्ष्य को देखने का समय निकाला जाता है।
सोशल मीडिया और डिजिटल विश्राम का प्रबंधन: आपको अपने डिजिटल उपस्थिति को सीमित रखने की आदत डालनी चाहिए, क्योंकि इससे मानसिक शांति बढ़ सकती है और एकाग्रता में मदद कर सकता है।
अपनी आवश्यकताओं और आराम की आदतों का समर्थन करके, आप मानसिक एकाग्रता में सुधार कर सकते हैं और अपने लक्ष्यों को हासिल करने में मदद कर सकते हैं।
पाठ के आँगन में
(१) सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए :
संजाल
उत्तर:
(२) सही विकल्प चुनकर वाक्य फिर से लिखिए :
(क) कबीर के मतानुसार प्रेम किसी,
१. खेत में नहीं उपजता ।
२. गमले में नहीं उपजता ।
३. बाग में नहीं उपजता ।
उत्तर: विकल्प १ – खेत में नहीं उपजता ।
(ख) कबीर जिज्ञासु थे,
१. मिथ्या के ।
२. सत्य के
३. कथ्य के ।
उत्तर: विकल्प २ – सत्य के
पाठ से आगे
कबीर जी की रचनाएँ यू ट्यूब पर सुनिए।
उत्तर: छात्रों को यह स्वयं करना चाहिए।
भाषा बिंदु
रेखांकित शब्दों से उपसर्ग और प्रत्यय अलग करके लिखिए :
भारत की अलौकिकता सारे विश्व में फैली है ।
उत्तर: अ लौकिक ता
फक्कड़ना लापरवाही और निर्मम अक्खड़ता उनके आत्मविश्वास का परिणाम थी ।
उत्तर: ला परवाह ई
लोग उनकी असफलता पर क्या-क्या टिप्पणी करेंगे ।
उत्तर: अ सफल ता
राजेश अभिमानी लड़का है ।
उत्तर: अ भिमान ई
मोह-ममता उन्हें अपने मार्ग से विचलित नहीं कर सकती थी ।
उत्तर: वि चल इत
केवल एक ही प्रतिद्वंद्वी जानता है, तुलसीदास ।
उत्तर: प्रति द्वंद्व ई
पूर्णिमा के दिन चाँद परिपूर्णता लिए हुए था ।
उत्तर: परि पूर्ण ता