Maharashtra Board Textbook Solutions for Standard Nine

पाठ १ – चाँदनी रात

कवि चाँदनी रात का वर्णन करते हुए कहते हैं कि चंद्रमा की किरणें जल और थल में फैली हुई हैं। पृथ्वी से लेकर आकाश तक सर्वत्र चाँदनी बिछी हुई है। पूरी प्रकृति चाँदनी में सराबोर है। रात सन्नाटे में डूबी हुई है। वायु स्वच्छंद होकर मंद-मंद बह रही है। सभी दिशाओं में आनंद ही आनंद व्याप्त है। नियति चुपचाप अपने कर्तव्यों का पालन कर रही है। ऐसे में पंचवटी की छटा बहुत ही निराली प्रतीत होती है। उसकी घनी छाया में पत्तों की एक सुंदर कुटिया बनी हुई है। इसके सामने स्वच्छ शिला के ऊपर धैर्यशाली, निडर मनवाला एक पुरुष बैठा हुआ है। यह वीर ऐसा दिखाई पड़ता है जैसे कामदेव योगी बनकर बैठा है।

बथान – पालतू गाय-बैल के रहने का स्‍थान

पुलक – रोमांच, खुशी

कार्य कलाप – गतिविधि

कुटीर – झोंपड़ी, कुटिया

निर्भीक – निडर

धनुर्धर – तीरंदाज

कुसुमायुध अनंग, कामदेव

दृष्‍टिगत – जो दिखाई पड़ता हो

कविता का नाम :

चाँदनी रात

 

कविता की विधा :

खंडकाव्य

 

पसंदीदा पंक्ति :

चारू चंद्र की चंचल किरणें खेल रही हैं जल-थल में। स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है अवनि और अंबर तल में।

 

पसंदीदा होने का कारण :

उपर्युक्त पंक्ति मेरी पसंदीदा पंक्ति है क्योंकि उसमें ‘च’ वर्ण की बार-बार पुनरावृत्ति होने से अनुप्रास अलंकार की छटा दिखलाई दे रही है। इस कारण कविता के सौंदर्य में वृद्धि हो गई है।

 

कविता से प्राप्त संदेश या प्रेरणा :

प्रस्तुत कविता से प्रेरणा यह मिलती है कि व्यक्ति को चाँदनी रात की तरह अपना जीवन सुंदर बनाना चाहिए। मनुष्य को प्रकृति के प्रति कृतज्ञ रहना चाहिए। प्रकृति मनुष्य के जीवन को शक्ति एवं आनंद प्रदान करती है। अतः उसे प्रकृति के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहिए। प्रकृति के संतुलन को बनाए रखने के लिए व्यक्ति को पेड़ लगाने चाहिए।

चारु चंद्र की चंचल किरणें

खेल रही हैं जल-थल में ।

स्‍वच्छ चाँदनी बिछी हुई है

अवनि और अंबर तल में ।।

 

अर्थ : चाँदनी रात में आकाश में सुंदर चंद्रमा शोभायमान है। उसकी चंचल किरणें झिलमिल झिलमिल करती हुई अठखेलियाँ कर रही है। ऐसा लगता है, जैसे वे जल और जमीन के साथ खेल रही हों। चंद्रमा का निर्मल प्रकाश पृथ्वी पर और समूचे नभ मंडल में फैला हुआ है और वह उन्हें प्रकाशित कर रहा है।

 

 

पुलक प्रगट करती है धरती

हरित तृणों की नोकों से ।

मानो झूम रहे हैं तरु भी

मंद पवन के झोंकों से ।।

 

अर्थ : इस अवसर पर पृथ्वी अत्यंत प्रसन्न है। वह अपनी यह प्रसन्नता पृथ्वी पर उगी हुई हरी हरी घास की नोकों से प्रकट कर रही है। मंद-मंद हवा के झोंकों से पेड़-पौधे भी झूम रहे हैं और ऐसा लगता है, जैसे वे भी अपनी खुशी प्रकट कर रहे हैं।

 

 

क्‍या ही स्‍वच्छ चाँदनी है यह 

है क्या ही निस्‍तब्‍ध निशा ।

है स्‍वच्छंद-सुमंद गंध वह

निरानंद है कौन दिशा ?

 

अर्थ : कवि चंद्रमा के स्वच्छ प्रकाश में निखरी हुई रात्रि का वर्णन करते हुए कहते हैं कि यह चाँदनी गजब की निर्मल है। और यह रात कितनी शांत है। कहीं किसी ओर कोई स्वर नहीं है। सर्वत्र मुक्त रूप से मंद-मंद ‘सुगंध’ व्याप्त है। कोई भी दिशा ऐसी नहीं है, जिस ओर आनंद का माहौल न हो। अर्थात सर्वत्र आनंद ही आनंद है।

 

 

बंद नहीं, अब भी चलते हैं

नियति नटी के कार्य-कलाप ।

पर कितने एकांत भाव से

कितने शांत और चुपचाप ।।

 

अर्थ : कवि कहते हैं कि कोई भी गतिविधि बंद नहीं है। रात्रि रूपी नटी के सारे कार्य-कलाप अब भी पहले जैसे चल रहे हैं। विशेषता यह है कि सब कुछ बहुत ही शांत ढंग से और एकांत भाव से चुपचाप हो रहा है। कहीं कोई कोलाहल नहीं है।

 

 

है बिखेर देती वसुंधरा

मोती, सबके सोने पर ।

रवि बटोर लेता है उनको

सदा सबेरा होने पर ।। 

 

अर्थ : कवि चाँद-तारों की तुलना मोतियों से करते हुए कहते हैं कि जब सब लोग सो जाते हैं, तो पृथ्वी आकाश में चाँद-तारों के रूप में मोती बिखेर देती है। जब सवेरा होता है, तो ऐसा लगता है, जैसे सूर्य इन मोतियों को हमेशा बटोर ले जाता हो। अर्थात सुबह उजाला हो जाने पर आकाश में चाँद-तारे लुप्त होते जाते हैं।

 

 

और विरामदायिनी अपनी 

संध्या को दे जाता है ।

शून्य श्याम तनु जिससे उसका

नया रूप छलकाता है ।।

 

अर्थ : कवि कहते हैं कि सुबह होने पर बटोरे हुए ये चाँद-तारे रूपी मोती सूर्य उसे विश्राम देने वाली संध्या को सौंप जाता है। अर्थात शाम होने के बाद चाँद-तारे आकाश में फिर चमकने लगते हैं और वे मोतियों का आभास कराने लगते हैं। इससे रात्रि की कालिमा प्रकाशमान हो जाती है और अपने नए रूप में छलकने लगती है।

 

 

पंचवटी की छाया में है

सुंदर पर्ण कुटीर बना ।

उसके सम्‍मुख स्‍वच्छ शिला पर

धीर-वीर निर्भीक मना ।।

 

अर्थ : कवि पंचवटी का वर्णन करते हुए कहते हैं कि पंचवटी (वट के पाँच वृक्षों) की छाया में घास-फूस और पत्तों के छप्पर वाली एक सुंदर झोंपड़ी बनी हुई है। उसके सामने एक साफ-सुथरी शिला है। उस शिला पर एक दृढ़ मन वाला और निडर योद्धा विराजमान है।

 

 

जाग रहा यह कौन धनुर्धर

जबकि भुवन भर सोता है ?

भोगी कुसुमायुध योगी-सा

बना दृष्‍टिगत होता है ।।

 

अर्थ : कवि कहते हैं कि इस समय संसार के सारे लोग सो रहे हैं, पर यह धनुषधारी कौन है, जो (रात्रि में) इस समय जाग रहा है? वे कहते हैं कि यह कामदेव सा भोगी (गृहस्थ) कोई संन्यासी जैसा बना हुआ-सा दिखाई देता है।

कल्पना पल्लवन

(प्र) ‘पुलक प्रगट करती है धरती हरित तृणों की नोकों से,’ इस पंक्‍ति का कल्‍पना विस्‍तार कीजिए ।

उत्तर: चाँदनी रात में धरती से लेकर आकाश तक पूरी प्रकृति सुंदर और स्वच्छ किरणों में सराबोर है। धरती का कण-कण इन किरणों से दिप्त हो रहा है। धरती पर फैली हुई हरी-हरी घास की नोकों पर ओस की बूँदें पड़ी हैं, जिस पर चाँद की उज्ज्वल किरणें पड़ने से वे मोतियों की तरह चमक रही हैं। इनको देखकर ऐसा लगता है मानों धरती इन घास की नोकों पर चमकने वाली मोतियों के माध्यम से अपनी खुशी प्रकट कर रही हैं।

पठनीय

(प्र) संचार माध्यमों से ‘राष्‍ट्रीय एकता’ पर आधारित किसी समारोह की जानकारी पढ़िए ।

उत्तर: छात्रों को यह स्वयं करना चाहिए ।

श्रवणीय

(प्र) अपने घर-परिवार के बड़े सदस्‍यों से लोककथाओं को सुनकर कक्षा में सुनाइए ।

उत्तर: छात्रों को यह स्वयं करना चाहिए ।

लेखनीय

(प्र) ‘प्रकृति मनुष्‍य की मित्र है’, स्‍पष्‍ट कीजिए ।

उत्तर: हमारे सबसे आस-पास सुंदर और आकर्षक प्रकृति है जो हमें खुश रखती है और स्वस्थ जीवन जीने के लिये एक प्राकृतिक पर्यावरण उपलब्झ कराती है। हमारी प्रकृति हमें कई प्रकार के सुंदर फूल, आकर्षक पक्षी, जानवर, हरे वनस्पति, नीला आकाश, भूमि, समुद्र, जंगल, पहाड़, पठार आदि प्रदान करती है। हमारे स्वस्थ जीवन के लिये ईश्वर ने हमें एक बेहद सुंदर प्रकृति बना कर दी है। जो भी चीजें हम अपने जीवन के लिये इस्तेमाल करते है वो प्रकृति की ही संपत्ति है जिसे हमें सहेज कर रखना चाहिये।

 

हमें इसकी वास्तविकता को खत्म नहीं करना चाहिये और साथ ही इसके पारिस्थितिकी तंत्र को असंतुलित नहीं करना चाहिये। हमारी कुदरत हमें जीने और खुश के लिये बहुत सुंदर वातावरण प्रदान करती है इसलिये ये हमारा कर्तव्य है कि हम इसको सुरक्षित और स्वस्थ रखें। आज के आधुनिक समय में, इंसानों की बहुत सी खुदगर्जी और गलत कामों ने प्रकृति को बुरी तरह प्रभावित किया है लेकिन हम सभी को इसकी सुंदरता को बनाये रखना है।

पाठ के आँगन में

(१) सूचनानुसार कृतियाँ कीजिए :

(क) संजाल :

IMG 20230721 225511 पाठ १ – चाँदनी रात

उत्तर:

jpg 20230721 230519 0000 पाठ १ – चाँदनी रात

(ख) चाँदनी रात की विशेषताएँ :

उत्तर: 

१. चंद्रमा की चंचल किरणें जल-थल में खेल रही हैं।

२. धरती और आकाश में निर्मल चांदनी बिछी हुई है।

३. हरी घास की नोकों से जन्मोत्सव का शुभारम्भ हो रहा है।

४. हवा के पंखों से सारे वृक्ष झूम रहे हैं।

५. सभी दिशाओं में मनमोहक गंध फ़ोटो हुई हैं।

६. सभी दिशाएँ आनंदित हैं।

७. नियति के सभी क्रिया-कलाप जारी हैं।

८. चारों ओर शांति है।

(२) निम्‍नलिखित पंक्‍तियों का सरल अर्थ लिखिए :

(च) चारु चंद्र की चंचल किरणें
खेल रही हैं जल-थल में ।
स्‍वच्छ चाँदनी बिछी हुई है
अवनि और अंबर तल में ।।

 

पुलक प्रगट करती है धरती
हरित तृणों की नोकों से ।
मानो झूम रहे हैं तरु भी
मंद पवन के झोंकों से ।।

 

उत्तर: गुप्त जी चाँदनी रात का वर्णन करते हुए कहते हैं कि सुंदर चंद्रमा की किरणें जल और थल में फैली हुई हैं। संपूर्ण पृथ्वी तथा आकाश में स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है। पृथ्वी हरी हरी घास की नोकों के माध्यम से अपनी खुशी प्रकट कर रही है। ऐसा प्रतीत होता है, मानो वृक्ष भी मंद-मंद वायु के झोंकों से झूम रहे हैं।

 

(छ) क्‍या ही स्‍वच्छ चाँदनी है यह
है क्या ही निस्‍तब्‍ध निशा ।
है स्‍वच्छंद-सुमंद गंध वह
निरानंद है कौन दिशा ?

 

बंद नहीं, अब भी चलते हैं
नियति नटी के कार्य-कलाप ।
पर कितने एकांत भाव से
कितने शांत और चुपचाप ।।

 

उत्तर: पंचवटी में दूर-दूर तक चाँदनी फैली हुई है, वह बहुत ही साफ दिखाई दे रही है। रात सन्नाटे से भरी है। कोई शब्द नहीं हो रहा है। वायु स्वच्छंद होकर अपनी स्वतंत्र चाल से मंद-मंद बह रही है। इस समय कौन-सी दिशा है जो आनंद नहीं ले रही है ? अर्थात सभी दिशाएँ इस सौंदर्य से आनंदित हो रही हैं। उत्तर-पश्चिम आदि सभी दिशाओं में आनंद ही आनंद व्याप्त है। कोई भी दिशा आनंद-शून्य नहीं है। ऐसे समय में भी नियति नामक शक्ति-विशेष के समस्त कार्य संपन्न हो रहे हैं। कोई रुकावट नहीं। वह एक भाव से अर्थात् अकेले-अकेले और चुपचाप अपने कर्तव्यों का निर्वाह किए जा रही है।

संभाषणीय

शरद पूर्णिमा त्‍योहार के बारे में चर्चा कीजिए ।

उत्तर: हिंदू पंचांग के अनुसार प्रतिवर्ष अश्विन मास में आने वाले पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। मान्यताओं के अनुसार आज के ही दिन भगवान श्री हरि विष्णु ने महारास रचा था। इसीलिए शरद पूर्णिमा को राष्ट्र पुर्णिमा के नाम से भी भारत में जाना जाता है।

 

शरद पूर्णिमा को लेकर ऐसा भी कहा जाता है कि पूरे एक वर्ष भर में आज के ही दिन चंद्रमा अपनी सभी १६ कलाओं के साथ परिपूर्ण हो जाता है इसलिए आज के दिन को लोग काफी उत्साह के साथ मनाते हैं। कलाओं से परिपूर्ण होने के कारण ही शरद पूर्णिमा को कोजागिरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इतना ही नहीं कोजागिरी पूर्णिमा को भारत के कई स्थानों पर कौमुदी पूर्णिमा या कौमुदी व्रत के नाम से जाना जाता है।

 

शरद पूर्णिमा को लेकर भारत के कई स्थानों पर ऐसा माना जाता है कि इसी दिन रात के समय चंद्रमा से अमृत की बरसात होती है। जिसके कारण से उत्तर भारत में रात्रि में खीर बनाकर लोग छत पर खुला छोड़ देते हैं। जिससे कि चंद्रमा की अमृत भरी किरण उस पर पड़े और रात भर खुला छोड़ने के पश्चात वह सुबह उसे प्रसाद के रूप में लोगों को बांट देते हैं।

 

इस व्रत को लोग अपने सभी कामनाओं को पूर्ण करने के लिए रखते हैं। इस दिन रात्रि को लोग माता लक्ष्मी की पूजा बड़े ही प्रेम भाव से करते हैं। इस पूजा को लेकर उत्तर भारत के लोग बहुत अधिक उत्साहित रहते हैं और वह पूजा को बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं।

 

आज के ही दिन माता लक्ष्मी की पूजा भी की जाती है क्योंकि ऐसा माना जाता है लक्ष्मी पूजन करने से सुख एवं समृद्धि की प्राप्ति होती है और इस पूजन को करने से हमारा दिन और आने वाला समय पूरी तरह से सुधर जाता है। माता को प्रसन्न करने के लिए आज के दिन लोग बड़े ही भक्ति भाव से माता का भजन एवं उनका पूजा करते हैं।

पाठ से आगे

IMG 20230721 231407 पाठ १ – चाँदनी रात

उत्तर:

 

जैसे नदी केवल पानी नहीं बहाती,

आकाश केवल बिजली नहीं चमकाता

पर्वत केवल चोटियाँ नहीं दिखलाता

पृथ्वी केवल भूकंप नहीं लाती

तारे केवल टिमटिमाते नहीं

वैसे ही, हाँ वैसे ही

मन में सिर्फ विचार नहीं आते

बल्कि विश्वास,

आस्था, प्रकाश, उदासी की

एक पावन श्रृंखला भी आती है।

जो मनुष्य को मनुष्य से जोड़कर

मानवता के एकसूत्र में बाँधती है।

भाषा बिंदु

निम्‍न शब्‍दों के पर्यायवाची शब्‍द लिखिए ।

IMG 20230721 232203 पाठ १ – चाँदनी रात

उत्तर: 

IMG 20230721 232317 पाठ १ – चाँदनी रात