पाठ १ – हे मातृभूमि !
कवि कहते हैं, हे मातृभूमि में तेरे चरणों में अपना सिर झुकाता हूँ। में अपनी भक्ति रूपी भेंट लेकर तेरी शरण में आना चाहता हूँ।
माँ, मेरे मस्तक पर तुम्हीं चंदन के समान विराजित हो । तुम्हीं मेरे हृदय पर माला के समान सुशोभित हो। माँ, मेरी जिह्वा पर केवल तेरा ही नाम हो और मैं सदा तेरा ही गुणगान करता रहूँ।
इसी भूमि ने श्री राम और कृष्ण जैसे सुपुत्रों को जन्म दिया है। ऐसी मातृभूमि की रज को में नित्य अपने शीश पर चढ़ाना चाहता हूँ।
हे माँ, समुद्र सदा तुम्हारे जिन चरणों को धोकर तुम्हें प्रणाम करता है, मैं उन चरणों को दबाना चाहता हूँ, उन चरणों की सेवा करना चाहता हूँ।
माता, मैं हर तरह का भेद-भाव त्यागकर तेरी सेवा करना चाहता हूँ। मैं चाहता हूँ कि प्रतिदिन तेरा पुण्य नाम ही सुनूँ और दूसरों को भी सुनाऊँ ।
मैं मंत्र के रूप में तेरा ही नाम जपता रहूँ। जिस भी रूप में हो सके, मैं तेरे लिए ही समर्पित रहूँ। मैं अपना तन और मन तेरे लिए बलिदान कर दूँ।
नवाना – झुकाना
शीश – सिर
जिह्वा – जीभ
रज – धूल
बलिदान – प्राणाहुति, निछावर
देह – शरीर
कल्पना पल्लवन
‘मातृभूमि की सेवा में जीवन अर्पण करना प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है,’ इस कथन पर अपने विचार लिखो।
उत्तर: प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है कि वह पूरे मन से मातृभूमि की सेवा में अपना जीवन समर्पित कर दे। यह समर्पण अपने राष्ट्र के प्रति गहन प्रेम और जिम्मेदारी की भावना से उत्पन्न होता है। मातृभूमि की प्रगति और भलाई में निस्वार्थ योगदान देकर, पुरुष इसके भविष्य को आकार देने और इसके मूल्यों और विरासत को संरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
मातृभूमि की सेवा विभिन्न रूप ले सकती है, जिसमें देश की सीमाओं की रक्षा करना, अपने नागरिकों के बीच एकता और सद्भाव को बढ़ावा देना, लोकतांत्रिक प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग लेना और इसके आर्थिक और सामाजिक विकास में योगदान देना शामिल है। इस तरह का समर्पण राष्ट्रीय गौरव की भावना को बढ़ावा देता है और समाज के ताने-बाने को मजबूत करता है, एकता और साझा उद्देश्य की भावना को बढ़ावा देता है।
अंततः, जब पुरुष मातृभूमि के प्रति अपने कर्तव्य को प्राथमिकता देते हैं, तो वे एक संपन्न और समृद्ध राष्ट्र में योगदान देते हैं, और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्थायी विरासत छोड़ते हैं।
स्वाध्याय
सूचना के अनुसार कृतियाँ करो :-
(१) कृति पूर्ण करो :
उत्तर:
(२) कृति पूर्ण करो :
उत्तर:
(३) एक शब्द में उत्तर लिखो :
१. कवि की जिह्वा पर इसके गीत हों –
उत्तर: मातृभूमि
२. मातृभूमि के चरण धोने वाला –
उत्तर: समुद्र
३. मातृभूमि के सपूत –
उत्तर: श्री राम कृष्ण
४. प्रतिदिन सुनने/सुनाने योग्य नाम –
उत्तर: मातृभूमि
५. मातृभूमि के चरणों में इसे नवाना है
उत्तर: शीश
(४) कविता की पंक्तियाँ पूर्ण करो :
सेवा में तेरी ____________ ;
________________।।
________________।
__________ बलिदान मैं जाऊँ।।
उत्तर:
सेवा में तेरी माता ! मैं भेदभाव तजकर;
वह पुण्य नाम तेरा, प्रतिदिन सुनूँ-सुनाऊँ।।
तेरे ही काम आऊँ, तेरा ही मंत्र गाऊँ।
मन और देह तुम पर बलिदान मैं जाऊँ।।
भाषा बिंदु
निम्न विरामचिह्नाें के नाम लिखकर उनका वाक्य में प्रयोग करो :
।
उत्तर: पूर्ण विराम
वाक्य : राजा ने राजकुमारी को गले लगा लिया।
;
उत्तर: अर्ध विराम
वाक्य : शालू बच्ची थी; पर मुझे उससे चिढ़ हो गई थी।
?
उत्तर: प्रश्नसूचक चिह्न
वाक्य : मनुष्य किस ओर बढ़ रहा है?
–
उत्तर: योजक
वाक्य : दिन भर बड़ी दौड़-धूप रही।
!
उत्तर: विस्मयसूचक चिह्न
वाक्य : हे मातृभूमि ! तेरे चरणों में शीश नवाऊँ।
‘ ’
उत्तर: इकहरा उद्धरण चिह्न
वाक्य : रामकुमार जी ने ‘कबीर का रहस्यवाद’ लिखा।
‘‘ ’’
उत्तर: दोहरा उद्धरण चिह्न
वाक्य : राजा ने पूछा “तुमने क्या किया दानों का?”
– –
उत्तर: निर्देशक चिह्न
वाक्य : सच ही कहा गया है- बुरे काम का बुरा नतीजा।
उपयोजित लेखन
शब्दों के आधार पर कहानी लिखो :
ग्रंथालय, स्वप्न, पहेली, काँच
उत्तर: समीरा एक छोटे-से गाँव में रहती थी। उसे पढ़ने का बहुत शौक था। पर गाँव में आठवीं कक्षा के बाद कोई स्कूल ही नहीं था। उसके माता-पिता ने समीरा का शौक देखते हुए उसे आगे पढ़ने के लिए पास के कस्बे में भेजा। नया स्कूल समीरा को बहुत अच्छा लगा, विशेष रूप से वहाँ का ग्रंथालय। वहाँ हर विषय की ढेरों पुस्तकें थीं। काँच की बड़ी-बड़ी अलमारियों में सजी पुस्तकें मानो समीरा को अपनी ओर बुलातीं। जब भी अवसर मिलता, वह पुस्तकालय के अध्यक्ष की अनुमति लेकर पुस्तक पढ़ने बैठ जाती। पुस्तकें पढ़ने की लगन के कारण उसने काफी ज्ञान अर्जित कर लिया था। वह अपनी कक्षा में भी प्रथम स्थान पर रहती थी। धीरे-धीरे समीरा स्कूली पढ़ाई पूरी करके महाविद्यालय में पहुँची। अब समीरा का एक ही स्वप्न था, अपने गाँव के स्कूल में आगे की कक्षाएँ बढ़वाना। वह हमेशा इसी दिशा में सोचती रहती। जागती आँखों द्वारा देखा गया उसका यह स्वप्न मानो एक पहेली था। कैसे वह अपना यह स्वप्न पूरा कर पाएगी। पर कहते हैं न – जहाँ चाह होती है, वहाँ राह भी निकल आती है। समीरा अपने गाँव के सरपंच से मिली और उसने उन्हें इस दिशा में सोचने को विवश किया। दूसरी ओर उसने अपने महाविद्यालय की प्राचार्या से भी इस विषय में चर्चा की। समीरा के प्रयास रंग लाए। प्राचार्या जी के प्रभाव से शिक्षाधिकारी समीरा के गाँव में आए और अनेक लोगों से मिले। शीघ्र ही गाँव के स्कूल को दसवीं तक की कक्षाओं की अनुमति मिल गई।
स्वयं अध्ययन
‘विकास की ओर बढ़ता हुआ भारत देश’ से संबंधित महत्त्वपूर्ण कार्यों की सूची बनाओ।
उत्तर: छात्रों को यह स्वयं करना चाहिए।