अपने नाना जी को अपने मन की बात बताते हुए पत्र लिखो।
साई सदन,
गाँधीनगर,
नागपुर – ४४० ००३
१६ सितंबर, २०२४
आदरणीय नानाजी,
सादर चरण स्पर्श।
मैं यहाँ कुशलपूर्वक हूँ। आशा है आप भी कुशलपूर्वक होंगे। आपका पत्र प्राप्त हुआ। नानाजी, आपको जानकर संतोष होगा कि मेरी पढ़ाई सुचारु रूप से चल रही है। कक्षा में जो भी पढ़ाया जाता है, मैं घर आकर उसे नियम से पढ़ता हूँ। कोई शंका होती है, तो अगले दिन अपने शिक्षक से पूछ लेता हूँ।
नानाजी, यह पत्र मैं एक विशेष कारण से लिख रहा हूँ। मुझे आपसे अपने मम्मी-पापा की शिकायत करनी है। नानाजी, वे मुझे न कभी खेलने देते हैं और न ही टेलिविजन देखने देते हैं। कॉलोनी के बच्चे शाम को व छुट्टी के दिन कंपाउंड में खेलते हैं, पर मैं खेलने नहीं जा सकता। बस हर समय पढ़ते रहो, पढ़ते रहो। वे यही चाहते हैं कि हर टेस्ट में, हर परीक्षा में कक्षा का कोई भी विद्यार्थी मुझसे आगे न निकले। आप उन्हें समझाइए ना, नानाजी!
नानीजी और मामा को मेरा प्रणाम कहिएगा।
आपका पुत्र,
पल्लव
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