हिंदी निबंध लेखन

MIDDLE SCHOOL LEVEL (For Class 5 to 7)

मेरी रेलयात्रा

मेरी रेलयात्रा

मेरे बचपन की सुनहरी यादों में से एक याद है सीटी बजाती,तेजी से दौड़ती रेलगाडी देखना। उस में बैठ कर सफर करना, मानो कोई सपना सुहाना हो।

 

तेजी से दौड़ती हुई रेलगाड़ी देखना मुझे बहुत अच्छा लगता है। उसे देखने के लिए मैं अक्सर रेलवे स्टेशन तक जाया करता था। जब मैं पहली बार रेलगाड़ी में बैठा, तब मैं बहुत खुश हुआ। पेट में तितलियां सी उड़ रही थीं, और दिल खुशी से झूम रहा था। मैं ने अपनी इच्छा खुली आंखों से पूरी होते देख ली थी।

 

मेरे पिताजी मुंबई में नौकरी करते हैं। शुरू-शुरू में वे अकेले ही रहते थे। जब उन्होंने परिवार के साथ रहने का उचित प्रबंध कर लिया, तो वे माताजी को और मुझे मुंबई ले आए। हम इलाहाबाद स्टेशन पर आकर वाराणसी एक्सप्रेस में बैठे। यह गाड़ी शाम को चार बजे के लगभग इलाहाबाद से रवाना हुई। यह मेरी पहली रेलयात्रा थी। मैं रेलगाड़ी में बैठकर बहुत खुश हुआ। हमारे डिब्बे में बैठ जाने के बाद गाड़ी ने सीटी दी। फिर वह धीरे-धीरे चलने लगी। जल्दी ही वह बहुत तेजी से दौड़ने लगी। वह एक स्टेशन के बाद दूसरा स्टेशन पार करती हुई आगे बढ़ती जा रही थी। गाँव, पेड़ आदि हमारी उलटी दिशा में भागते दिखाई देते थे। तेजी से दौड़ते, भागते घर, पेड़, पौधे, जानवर सब कुछ खुली आंखों का सपना से लग रहे थे। गाड़ी जिस दिशा में भाग रही थी सब कुछ उस के विपरित दौड़ रहा था। यह सब मेरे लिए बड़ा ही आश्चर्यजनक था। इस परिस्थिति के मैं ने खूब ही मजे लिए।

 

इलाहाबाद स्टेशन पर यात्रियों की बड़ी भीड़ थी। कुलियों की भाग-दौड़, खोमचेवालों की चिल्लाहट और यात्रियों की चहल-पहल, मैं पहली बार देख रहा था। मैं वह सब देखता देखता न जाने कब सो गया।जब आँख खुली, तब दूसरे दिन के रात के लगभग नौ बज रहे थे। हमारी गाड़ी दादर स्टेशन के प्लेटफार्म पर खड़ी थी। पिताजी ने माताजी और मुझे गाड़ी से नीचे उतारा। फिर उन्होंने सारा सामान उतारा। स्टेशन से बाहर आकर उन्होंने टैक्सी की और हम सब रात को लगभग दस बजे घर पहुँचे।

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