हमारे देश में तीन मुख्य ऋतुएँ हैं- शीत ऋतु, ग्रीष्म ऋतु और वर्षा ऋतु। इनमें वर्षा ऋतु मुझे सबसे अधिक प्रिय है।
वर्षा बहुत सुहावनी ऋतु है। वर्षा होने पर तपती गर्मी से राहत मिलती है। चारों तरफ हरियाली छा जाती है। वन-बागों में मोर पंख फैलाकर नाचते हैं। पपीहे पी-पी करते हैं। तालाबों में मेढक खुश होकर टर्र-टर्र करने लगते हैं। खेतों में हरियाली छा जाती हैं।
जीवन के लिए जल बहुत जरूरी है। जल हमें वर्षा से ही मिलता है। वर्षा में नदियाँ, नाले, झीलें, सरोबर पानी से भर जाते हैं। इनका पानी पीने और सिंचाई के काम आता है।
१५ अगस्त, रक्षाबंधन, जन्माष्टमी, गणेशोत्सव जैसे त्योहार वर्षा ऋतु में ही आते हैं। मैं वर्षा में खूब नहाता हूँ। बहते पानी में कागज की नाव तैराना मुझे अच्छा लगता है। हरियाली से मुझे प्रेम है। इसलिए वर्षा ऋतु मुझे बहुत प्रिय है।
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हमारे देश में तीन प्रमुख ऋतुएँ हैं — गर्मी, बरसात और जाड़ा। हमारे देश के अधिकतर लोगों का धंधा खेती है। खेती से अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए खेतों की सिंचाई करना जरूरी होता है। इसलिए हमारे देश में वर्षाऋतु का विशेष महत्त्व है। यदि वर्षा आने में देर होती है, तो सबको अकाल पड़ने की आशंका होने लगती है।
हमारे देश में अनेक बड़ी-बड़ी नदियाँ हैं। उन पर बाँध बनाए गए हैं। देश के प्रायः सभी भागों में नहरों के जाल फैले हुए हैं। फिर भी हमारी अधिकांश खेती वर्षा पर ही निर्भर करती है। इसीलिए भारतीय किसान बरसात के इंतजार में आसमान की ओर टकटकी लगाए रहता है।
वर्षा आषाढ़ महीने में आरंभ होती है। जब तपती हुई धरती पर वर्षा की प्रथम बौछार गिरती है तब धरती की बहुत दिनों की प्यास बुझती है। जब तपी हुई मिट्टी पर वर्षा की बूँदें गिरती हैं, तब उससे सोंधी सोंधी गंध उठने लगती है। कुछ ही दिनों में चारों ओर हरियाली छा जाती है। वर्षा से वनस्पतियों तथा पशु-पक्षियों को नया जीवन मिलता है। बच्चे वर्षा में खेलते हैं और भीगकर आनंदित होते हैं। किसान खेती के काम में व्यस्त हो जाते हैं। बाजारों में छतरियों और बरसाती कोटों की बिक्री बढ़ जाती है। प्रकृति और मनुष्य दोनों प्रसन्न हो उठते हैं।
वर्षा की अधिकता से नदियों में बाढ़ आती है। वर्षा के अभाव से अकाल पड़ता है। वर्षा की अधिकता या अभाव, दोनों ही दुःखदायी होते हैं।
वर्षारानी से हम प्रार्थना करते हैं कि वह हम पर हमेशा अपनी कृपा बनाए रखें।