वृक्षारोपण

वृक्षारोपण
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प्रस्तावना :

कहा जाता है – ‘एक तुम दस पुत्र समान।’ निश्चित रूप से यह उक्ति कोई साधारण वाक्य नहीं है; बल्कि यह महान भारतीय परंपरा एवं संस्कृति का आधार है। वैदिक काल से ही वृक्ष भारतीयों के लिए पूज्य रहे हैं और इसका सबसे महत्त्वपूर्ण कारण यही है कि वृक्ष मानव जीवन के अनिवार्य कारक हैं, वृक्षों के बिना मानव जीवन की परिकल्पना की ही नहीं जा सकती। किसी कवि ने वृक्षों की महानता का चित्रण करते हुए ठीक ही लिखा है –

 

सदियों से खड़े शांत अविचल हैं जो। 

आधार बने हैं मृत्युलोक में जीवन का वो।।

 

पर्यावरणविद् एवं वैज्ञानिक आजकल वृक्षारोपण पर अत्यधिक जोर दे रहे हैं। उनका कहना है कि पर्यावरण संतुलन एवं मानव की वास्तविक प्रगति के लिए वृक्षारोपण आवश्यक है। वृक्षारोपण क्यों आवश्यक है? इसका उत्तर हमें तब ही मिलेगा जब हम वृक्षों से आने वाले लाभों से अवगत होंगे। इसलिए सबसे पहले हम वृक्षों से होने वाले लाभों की चर्चा करते हैं।

 

वृक्षों से लाभ : 

वृक्ष हमारे लिए कई प्रकार से लाभदायक होते हैं। जीवों द्वारा छोड़े गए कार्बन-डाईऑक्साइड को ये जीवनदायिनी ऑक्सीजन में बदल देते हैं। इनकी पत्तियों, छालों एवं जड़ों से हम विभिन्न प्रकार की औषधियाँ बनाते हैं। इनसे हमें रसदार एवं स्वादिष्ट फल प्राप्त होते हैं। वृक्ष हमें छाया प्रदान करते हैं। इनकी छाया में पशु-पक्षी ही नहीं, मनुष्य भी चैन की सांस लेते हैं। जहाँ वृक्ष पर्याप्त मात्रा में होते हैं, वहाँ वर्षा की मात्रा भी समुचित होती है। वृक्षों की कमी सूखे का कारण बनती है। वृक्षों से पर्यावरण की खूबसूरती में निखार आता है। वृक्षों से प्राप्त लकड़ियाँ भवन-निर्माण एवं फर्नीचर बनाने के काम आती हैं। इस तरह, मनुष्य जन्म लेने के बाद से मृत्यु तक वृक्षों एवं उनसे प्राप्त होने वाली विभिन्न प्रकार की वस्तुओं पर निर्भर रहता है। कवि रबीन्द्रनाथ टैगोर ने पेड़-पौधों की महत्त्व को समझते हुए कहा है –

 

‘पृथ्वी द्वारा स्वर्ग से बोलने का अथक प्रयास हैं ये पेड़।’

 

वृक्षों की कटाई और उससे होने वाली हानि :

वृक्षों से होने वाले विभिन्न लाभों के कारण मनुष्य ने इनकी तेजी से कटाई की है। औद्योगिक प्रगति एवं वनोन्मूलन दोनों के कारण पर्यावरण अत्यंत प्रदूषित हो गया है। वृक्ष पर्यावरण को प्रदूषण मुक्त रखने में सहायक होते हैं। मनुष्य अपने लाभ के लिए कारखानों की संख्या में तो वृद्धि करता रहा, किंतु उस वृद्धि के अनुपात में उसने पेड़ों को लगाने की ओर ध्यान ही नहीं दिया। इसके विपरीत उसने जमकर उनकी कटाई की।

 

इसके कुपरिणामस्वरूप पृथ्वी का पर्यावरण असंतुलित हो गया है। वृक्षारोपण पर्यावरण को संतुलित कर मानव के अस्तित्व की रक्षा करने के लिए आवश्यक है। वनोन्मूलन के कारण ही पिछले कुछ वर्षों में बड़ी तेजी से जलवायु परिवर्तन हुआ है। मौसम में अचानक परिवर्तन, फसल चक्र का परिवर्तित होना, वनस्पतियों की प्रजातियों का लुप्त होना, तापमान में वृद्धि, हिमनदों का पिघलना तथा समुद्री जलस्तर में लगातार वृद्धि ऐसे सूचक हैं, जिनसे जलवायु परिवर्तन की परिघटना का पता चलता है।

 

जलवायु परिवर्तन कई कारणों से हुआ है, किंतु वातावरण में ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा में निरंतर बढ़ते रहने के सबसे बड़ा कारण माना जाता है। पृथ्वी पर आने वाली सौर ऊर्जा की बड़ी मात्रा अवरक्त किरणों के रूप में पृथ्वी के वातावरण से बाहर चली जाती है। इस ऊर्जा की कुछ मात्रा ग्रीन हाउस गैसों द्वारा अवशोषित होकर पुनः पृथ्वी पर पहुँच जाती है, जिससे तापक्रम अनुकूल बना रहता है। ग्रीहन हाउस गैसों में मीथेन, कार्बन डाईऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड इत्यादि हैं। वातावरण में ग्रीन हाउस गैसों का होना अच्छा है, किंतु जब इनकी मात्रा बढ़ जाती है, तो तापमान में वृद्धि होने लगती है। वृक्षारोपण के माध्यम से इस समस्या का काफी हद तक समाधान किया जा सकता है।

 

मनुष्य अपने विकास के लिए पेड़ों की कटाई एवं पर्यावरण का दोहन करता है। विकास एवं पर्यावरण एक-दूसरे के विरोधी नहीं हैं, अपितु एक-दूसरे के पूरक हैं। संतुलित एवं शुद्ध पर्यावरण के बिना मानव का जीवन कष्टमय हो जाएगा। हमारा अस्तित्व एवं जीवन की गुणवत्ता एक स्वस्थ प्राकृतिक पर्यावरण पर निर्भर है। विकास हमारे लिए आवश्यक है और इसके लिए प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग भी आवश्यक है, किंतु ऐसा करते समय हमें सतत विकास की अवधारणा को अपनाने पर जोर देना चाहिए। सतत विकास एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें वर्तमान आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उपलब्ध संसाधनों का उपयोग करते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि भावी पीढ़ी की आवश्यकताओं में भी कटौती न हो। यही कारण है कि सतत विकास अपने शाब्दिक अर्थ के अनुरूप निरंतर चलता रहता है। सतत विकास में सामाजिक एवं आर्थिक विकास के साथ-साथ इस बात का ध्यान रखा जाता है कि पर्यावरण भी सुरक्षित रहे। सतत विकास में आर्थिक समानता, लैंगिक समानता एवं सामाजिक समानता के साथ-साथ पर्यावरण संतुलन भी निहित है।

 

उपरोक्त बातों के अतिरिक्त वृक्षारोपण की आवश्यकता निम्नलिखित बातों से भी स्पष्ट हो जाती है –

  • औद्योगीकरण के कारण वैश्विक स्तर पर तापमान में वृद्धि हुई है, फलस्वरूप विश्व की जलवायु में प्रतिकूल परिवर्तन हुआ है। साथ ही समुद्र का जलस्तर उठ जाने के कारण आने वाले वर्षों में कई देशों एवं शहरों के समुद्र में जल-मग्न हो जाने की आशंका है।
  • जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, भूमि प्रदूषण एवं ध्वनि प्रदूषण में निरंतर वृद्धि हो रही है। यदि इस पर नियंत्रण नहीं किया गया, तो परिणाम अत्यंत भयानक होंगे।
  • इन्वायरन्मेंटल डाटा सर्विसेज की रिपोर्ट के अनुसार, नागरिक एवं राष्ट्रों की सुरक्षा, भोजन, ऊर्जा, पानी एवं जलवायु इन चार स्तंभों पर निर्भर है। ये चारों एक-दूसरे से घनिष्ठ रूप से संबंधित हैं और ये सभी खतरे की सीमा को पार करने की कगार पर हैं।
  • अपने आर्थिक एवं सामाजिक विकास के लिए मानव विश्व के संसाधनों का इतनी तीव्रता से दोहन कर रहा है कि पृथ्वी की जीवन को पोषित करने की क्षमता तेजी से कम होती जा रही है।

 

उपसंहार : 

वृक्षारोपण के कार्यक्रमों को प्रोत्साहन देने के लिए लोगों को वृक्षों से होने वाले लाभ से अवगत कराकर पेड़ लगाने के लिए प्रेरित करना होगा। कुछ संस्थाएँ तो वृक्षों को गोद लेने की परंपरा भी कायम कर रही हैं। शिक्षा के पाठ्यक्रम में वृक्षारोपण को भी पर्याप्त स्थान देना होगा। यदि हम चाहते हैं कि प्रदूषण कम हो एवं हम पर्यावरण की सुरक्षा के साथ सामंजस्य रखते हुए संतुलित विकास की ओर अग्रसर हों, तो इसके लिए हमें अनिवार्य रूप से वृक्षारोपण का सहारा लेना होगा। आज हम सबको एके जॉन्स की तरह वृक्षारोपण का संकल्प लेने की आवश्यकता है, जो कहते थे – ‘मैं एक पेड़ लगा रहा हूँ, जो मुझे अपनी गहरी जड़ों में सामर्थ्य एकत्र करने की शिक्षा देता है।’

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