विशेष आर्थिक जोन (सेज)

विशेष आर्थिक जोन (सेज)
Image : Ganesh Housing

प्रस्तावना :

पिछले कुछ सालों में भारत में आर्थिक ही नहीं राजनीतिक जगत में भी जिस योजना को व्यापक विरोध के साथ-साथ व्यापक समर्थन भी प्राप्त हुआ है वह है- विशेष आर्थिक जोन या क्षेत्र। विशेष आर्थिक क्षेत्रों का विरोध यदि किसानों द्वारा किया जाता है, तो इसके साथ ही औद्योगिक प्रगति के समर्थक अर्थवेत्ताओं का एक समूह इनकी स्थापना का समर्थन भी करता है। इस विरोध एवं समर्थन के फलस्वरूप पिछले कई वर्षों से विशेष आर्थिक क्षेत्र अत्यधिक चर्चा में रहा है।

 

विशेष आर्थिक जोन से तात्पर्य :

विशेष आर्थिक क्षेत्र का अंग्रेजी पर्याय स्पेशल इकोनॉमिक जोन (एसईजेड अथवा सेज) है। यह उस विशेष औद्योगिक क्षेत्र को कहा जाता है, जिसे व्यापार, आर्थिक क्रियाकलाप, उत्पादन तथा अन्य व्यावसायिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के लिए विशेष आर्थिक नियमों को ध्यान में रखकर विकसित किया जाता है। ये क्षेत्र 10 से 10,000 हेक्टेयर या इससे भी अधिक क्षेत्रफल के हो सकते हैं। इन क्षेत्रों में आधारभूत ढांचे अर्थात् भवन, कारखाने, ऊर्जा, सड़क, परिवहन, संचार व्यवस्था इत्यादि की उत्कृष्ट सुविधा होती है।

 

लगभग सभी विकसित देशों में विशेष आर्थिक क्षेत्र स्थापित हैं। एसईजेड की स्थापना किसी भी निजी, सार्वजनिक अथवा संयुक्त क्षेत्र के उपक्रमों द्वारा की जा सकती है, इसके साथ ही विदेशी कम्पनियों को भी इसकी स्थापना की अनुमति प्रदान की जाती है। उत्तर प्रदेश में नोएडा, पश्चिम बंगाल में फाल्टा, गुजरात में काण्डला एवं सूरत, महाराष्ट्र में शान्ताक्रूज, तमिलनाडु में चेन्नई, आंध्र प्रदेश में विशाखापत्तनम आदि एसईजेड के उदाहरण हैं। वर्ष 2013 तक देश में काम कर रहे 170 विशेष आर्थिक क्षेत्रों ने 10 लाख से ज्यादा लोगों को रोजगार उपलब्ध कराया है और कुल निर्यात में इनकी भागीदारी एक-तिहाई रही है। पश्चिम बंगाल में नन्दीग्राम एवं टाटा नैनो परियोजना के साथ सिंगूर में हुए हादसे के कारण परियोजना को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा था, बावजूद इसके आज इसका देशभर में व्यापक विस्तार किया जा रहा है। आज चीन अपने मात्र छः एसईजेड के बल पर विश्व का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक देश बन गया है।

 

हालांकि भारत में चीन के सबसे बड़े एसईजेड शेन्चेन, जो लगभग 50 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में फैला है, की तरह विस्तृत भू-भाग वाली किसी भी सेज परियोजना को अब तक स्वीकृति नहीं दी गई है, क्योंकि यहाँ इतने बड़े स्तर पर भूमि अधिग्रहण करना आसान कार्य नहीं है। भूमि अधिग्रहण से जुड़ी समस्याओं के कारण ही महाराष्ट्र के रायगढ़ में 14,000 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली सबसे बड़ी सेज परियोजना के प्रस्ताव को स्वीकृति नहीं मिल पाई। भारत में सेज की स्थापना से पूर्व निर्यात को बढ़ावा देने के उद्देश्य से वर्ष 1965 में गुजरात के काण्डला में सेज से मिलता-जुलता एशिया का प्रथम एक्सपोर्ट प्रोसेजिंग जोन (ईपीजेड) अर्थात् निर्यात प्रक्रिया क्षेत्र स्थापित किया गया था।

 

भारत में सेज का विकास :

अपने देश की इस ईपीजेड परियोजना से प्रोत्साहित होकर चीन की सेज परियोजनाओं की तर्ज पर भारत में विशेष आर्थिक क्षेत्र की अवधारणा के अनुकूल औद्योगिक क्षेत्रों के निर्माण की प्रक्रिया वर्ष 2000 में तब प्रारंभ हुई, जब सरकार ने वर्ष 2000 में ही विशेष आर्थिक क्षेत्र नीति का निर्माण किया था। इसका उद्देश्य अधिक-से-अधिक विदेशी निवेशकों को आकर्षित व्यापार को बढ़ावा देना था। इसके अलावा विशेष आर्थिक क्षेत्र को और विशिष्ट बनाकर व्यापार को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 2005 में विशेष आर्थिक क्षेत्र अधिनियम पारित किया गया, जिसका उद्देश्य निर्यात के लिए आधिकारिक तौर पर अनुकूल मंच प्रदान करना था।

 

विशेष आर्थिक क्षेत्र अधिनियम, 2005 के अनुसार, एसईजेड में स्थापित होने वाली इकाइयों को शुरूआत के पाँच वर्षों तक कर में 100% की छूट एवं इसके बाद अगले पाँच वर्षों तक 50% की छूट दिए जाने का प्रावधान है। एसईजेड विकसित करने वालों को भी 10 से 15 वर्ष की समय-सीमा के लिए आयकर में 100% छूट का प्रावधान किया गया है। इस अधिनियम का उद्देश्य एसईजेड को आधिकारिक रूप से सशक्त बनाना तथा उसे स्वायत्तता प्रदान करना है, ताकि एसईजेड से संबंधित प्रकरणों का निपटारा शीघ्र हो सके। इसके लिए इन क्षेत्रों में आयात-निर्यात संबंधी विश्व स्तर की सुविधा उपलब्ध करवाई जाती है।

 

इस अधिनियम के पश्चात् विशेष आर्थिक क्षेत्र (संशोधन) नियम, 2006, विशेष आर्थिक क्षेत्र (संशोधन) नियम, 2009 एवं विशेष आर्थिक क्षेत्र (संशोधन) नियम, 2013 भी बनाए गए। केंद्र में श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बनी भाजपा सरकार हाल में पारित किए गए भूमि अधिग्रहण कानूनों को कारोबार के दृष्टिकोण से अधिक आसान बनाने के उपायों पर भी विचार कर रही है। विशेष आर्थिक क्षेत्र को तीन स्तरीय प्रशासनिक व्यवस्था से नियंत्रित किया जाता है। एक शीर्ष निकाय अनुमोदन बोर्ड की तरह कार्य करता है और यह अनुमोदन समिति के साथ क्षेत्रीय स्तर पर इससे संबंधित मामलों को देखता है। एसईजेड की इकाइयों के प्रदर्शन का समय-समय पर विश्लेषण करने के लिए इनकी निगरानी भी की जाती है।

 

सेज से लाभ :

एसईजेड के कई लाभ हैं। इससे आयात-निर्यात को बढ़ावा मिलता है, इससे विदेशी निवेश में वृद्धि होती है। आयात-निर्यात को बढ़ावा मिलने एवं विदेशी निवेश में वृद्धि होने के कारण अत्यधिक संख्या में लोगों को रोजगार मिलता है, जिससे बेरोजगारी जैसी समस्याओं के समाधान में सहायता मिलती है। एसईजेड विदेशी मुद्रा के अर्जन में भी सहायक होता है। इस तरह, यह देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करता है। एसईजेड में हर प्रकार की सुविधा एवं छूट के कारण वस्तुओं की निर्माण लागत को कम किया जाता है। इस तरह औद्योगिक प्रगति के दृष्टिकोण से भी एसईजेड अत्यंत लाभप्रद है।

 

पिछले कुछ वर्षों से किसानों द्वारा एसईजेड का विरोध किया जा रहा है। पश्चिम बंगाल के सिंगूर जिले में टाटा द्वारा प्रस्तावित एसईजेड के निर्माण को किसानों के व्यापक विरोध के कारण रद्द करना, इसका अच्छा उदाहरण है। अब प्रश्न उठता है कि जब एसईजेड के कई फायदे हैं, तो इसका विरोध क्यों किया जा रहा है?

 

वस्तुतः औद्योगिक प्रगति के लिए कृषि भूमि के उपयोग से किसानों को लाभ कम एवं नुकसान अधिक है। कृषि भूमि के बदले में अच्छी कीमत से किसानों की समस्या हल नहीं हो सकती। कृषि भूमि के अधिग्रहण के बाद उनके लिए रोजगार की समस्या उत्पन्न होने का खतरा होता है। यही कारण है कि देश के लगभग हर क्षेत्र में, जहाँ एसईजेड का निर्माण प्रस्तावित है, किसानों द्वारा इसका विरोध किया जा रहा है। एसईजेड के लिए भूमि के अधिग्रहण के बाद उस क्षेत्र के लोगों के लिए पुनर्वास की समस्या भी उत्पन्न हो जाती है। उपजाऊ जमीनें कम हो जाती हैं, कोई रोजगार नहीं होता। इन्हीं सब कारणों से किसानों द्वारा सेज का विरोध किया जाता है।

 

उपसंहार :

एसईजेड का बड़े पैमाने पर निर्माण किया जाना, यद्यपि देश की अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए आवश्यक भी है, किंतु इसके लिए देश की बहुसंख्यक ग्रामीण जनता विशेषकर किसानों के हितों की अनदेखी नहीं की जानी चाहिए। एसईजेड के लिए कृषि योग्य उपजाऊ भूमि के अधिग्रहण को सही नहीं ठहराया जा सकता। भारत के कुल क्षेत्रफल का लगभग 24% भू-भाग बंजर एवं अनुपजाऊ है। यदि सेज के लिए ऐसी जमीन का उपयोग किया जाए, तो इसके दोहरे लाभ हो सकते हैं, एक ओर कृषि योग्य भूमि भी बची रहेगी, तो दूसरी ओर बंजर जमीन का भी उपयोग हो जाएगा। देश की कुल श्रम शक्ति का लगभग 52% भाग कृषि एवं इससे संबंधित उद्योग-धंधों से अपनी आजीविका चलाता है। यदि कृषि योग्य भूमि का उपयोग सेज के लिए किया गया, तो इससे अनेक प्रकार की समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।

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