श्री निवास रामानुजन
प्रस्तावना :
भारत महान विभूतियों का देश है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि इस पवित्र भूमि पर ऐसे महापुरुषों ने जन्म लिया जिन्होंने न सिर्फ अनेक संघर्षों के बावजूद न केवल अपने लाभ को प्राप्त किया बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए ज्ञान का वह अमूल्य खजाना छोड़ गए जिसके सामने संसार की समस्त सम्पत्तियाँ अर्थहीन हैं। श्री निवास रामनुजन ऐसे ही महापुरुष में एक थे जिनके पास न तो धन था और न ही कोई अवलम्ब परंतु अपने ज्ञान से उन्होंने विश्व के महानतम गणितज्ञों को आश्चर्यचकित कर दिया आज भी उनके गणितीय सूत्र नवीन अनुसंधानों के लिए आलोक स्तम्भ हैं।
जन्म एवं बचपन :
22 दिसम्बर, 1887 में तमिलनाडु के इरोदे नामक स्थान पर जन्म हुआ था। इनके पिता एक कपड़े की दुकान पर एक छोटे से क्लर्क थे। धन के अभाव में उचित शिक्षा की सुविधाएं इन्हें नहीं मिल पाईं। जब वे केवल 13 वर्ष के थे तभी इन्होंने लोनी द्वारा रचित विश्व प्रसिद्ध ट्रिगनोमिट्री को हल कर डाला था। जब वे मात्र 15 वर्ष के थे तब उन्हें जार्ज शूब्रिज कार (George Shoobridge Car) द्वारा रचित गणित की एक प्रसिद्ध पुस्तक ‘सयनोपोसिस ऑफ एलिमेंट्री रीजल्ट्स इन प्योर एंड एप्लायड मैथमेटिक्स’ (Synopsis of Elementary Results in Pure and Applied Mathematics) प्राप्त हुई। इस पुस्तक में लगभग 6 हजार प्रमेयों (Theorems) का संकलन था। उन्होंने इन सारे प्रमेयों को सिद्ध करके देखा और इन्हीं के आधार पर कुछ नयी प्रमेएं भी विकसित कीं। इनके बचपन की एक बड़ी ही दिलचस्प घटना है।
जब ये छोटे थे तो इनके अध्यापक गणित की कक्षा ले रहे थे। अध्यापक ने ब्लैकबोर्ड पर तीन केलों के चित्र बनाए और विद्यार्थियों से पूछा कि यदि हमारे पास तीन केलें हो और तीन विद्यार्थी हों तो प्रत्येक बच्चे के हिस्से में कितने केले आएंगे? सामने की पंक्ति में बैठे हुए एक विद्यार्थी ने तपाक से उत्तर दिया- “प्रत्येक विद्यार्थी को एक केला मिलेगा।” अध्यापक ने कहा, “बिल्कुल ठीक।”
जब अध्यापक भाग देने की क्रिया को आगे समझाने लगे तभी एक कोने में बैठे एक बच्चे ने प्रश्न किया – “सर, यदि कोई भी केला किसी को न बांटा जाए तो क्या तब भी प्रत्येक विद्यार्थी को एक केला मिल सकेगा।” इस बात पर सभी विद्यार्थी ठहाका मार कर हंस पड़े और कहने लगे कि क्या मूर्खतापूर्ण प्रश्न है।
इस बात पर अध्यापक ने अपनी मेज जोरों से थपथपाई और बच्चों से कहा कि इसमें हंसने की कोई बात नहीं है। मैं आप लोगों को बताऊंगा कि यह विद्यार्थी क्या पूछ रहा है। अध्यापक ने कहा कि बच्चा यह जानना चाहता है कि यदि शून्य को शून्य से विभाजित किया जाए तो भी क्या परिणाम एक ही होगा।
इस प्रश्न को समझाते हुए अध्यापक ने कहा कि इसका उत्तर शून्य ही होगा। इस विद्यार्थी ने जो प्रश्न पूछा था इसका उत्तर ढूंढ़ने के लिए गणितज्ञों को सैकड़ों वर्षों का समय लगा था। कुछ गणितज्ञों का दावा था कि यदि शून्य को शून्य से विभाजित किया जाए तो उत्तर शून्य ही होगा, लेकिन कुछ का कहना था कि उत्तर एक होगा। इस प्रश्न का सही उत्तर खोजा था भारतीय गणितज्ञ भास्कर ने, जिन्होंने सिद्ध करके दिखाया था कि शून्य को शून्य से विभाजित करने पर परिणाम अनंतता (Infinity) होगा।
इस प्रश्न को पूछने वाले विद्यार्थी थे श्रीनिवास रामानुजन, जो अनेक कठिनाइयों के बावजूद भी बहुत महान गणितज्ञ बने।
विद्यार्थी जीवन एवं संघर्ष :
सन् 1903 में उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय से छात्रवृत्ति प्राप्त की। लेकिन अगले वर्ष ही यह छात्रवृत्ति उनसे छीन ली गई क्योंकि वे दूसरे विषयों में पास न हो पाये। इसका कारण था कि वे गणित को ही अधिक समय देते थे और इस कारण दूसरे विषय उपेक्षित रह जाते थे। उनके परीक्षा में अनुत्तीर्ण होने से उनके पिता को गहरा धक्का लगा। जब उनके पिता ने देखा कि यह लड़का सदा ही संख्याओं से खिलवाड़ करता रहता है तो उन्होंने सोचा कि शायद यह पागल हो गया है। उसे ठीक करने के लिए पिता ने रामानुजन की शादी करने का निश्चय किया और जो लड़की उनके लिए पत्नी के रूप में चुनी गई वह थी एक आठ वर्षीय कन्या जानकी। इसके पश्चात उन्हें नौकरी की तलाश थी बहुत प्रयास करने पर उन्हें मुश्किल से 25 रुपए माहवार की क्लर्क की नौकरी मिली। अंत में कुछ अध्यापकों और शिक्षा-शास्त्रियों ने उनके कार्य से प्रभावित होकर उन्हें छात्रवृत्ति देने का फैसला किया और उन्हें मई, 1913 को मद्रास विश्वविद्यालय ने 75 रुपए महावार की छात्रवृत्ति प्रदान की। यद्यपि इस छात्रवृत्ति को प्राप्त करने के लिए उनके पास में कोई डिग्री नहीं थी।
कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में शोध :
इन्हीं दिनों रामानुजन ने अपने शोध कार्यों से सम्बंधित एक महत्त्वपूर्ण पत्र कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के विख्यात गणितज्ञ जी.एच. हार्डी (G. H. Hardy) को लिखा। इस पत्र में उन्होंने अपनी 120 प्रमेय प्रो. हार्डी को भेजी थी। हार्डी और उसके सहयोगियों को इस कार्य की गहराई परखने में देर न लगी। उन्होंने तुरंत ही रामानुजन के कैम्ब्रिज आने के लिए प्रबंध कर डाले और इस प्रकार 17 मार्च, 1914 को रामानुजन ब्रिटेन के लिए जलयान द्वारा रवाना हो गए।
रामानुजन ने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में अपने आपको एक अजनबी की तरह महसूस किया। तमाम कठिनाइयों के बावजूद भी वे गणित के अनुसंधान कार्यों में लगे रहे। प्रो. हार्डी ने उनमें एक अभूतपूर्व प्रतिभा देखी। उन्होंने संख्याओं से सम्बंधित अनेक कार्य किए। उनके कार्यों के लिए 28 फरवरी, 1918 को उन्हें रॉयल सोसायटी का फैलो घोषित किया गया। इस सम्मान को पाने वाले वे दूसरे भारतीय थे। उसी वर्ष अक्टूबर के महीने में उन्हें ट्रिनिटी कॉलेज का फैलो चुना गया। इस सम्मान को पाने वाले वे पहले भारतीय थे। बीजगणित (Algebra) में रामानुजन द्वारा किए गए कुछ कार्य विश्व प्रसिद्ध गणितज्ञ यूलर (Eular) और जेकोबी (Jacobi) की श्रेणी के रहे हैं।
मृत्यु :
जब रामानुजन इंग्लैंड में अपने अनुसंधान कार्यों में लगे हुए थे तभी उन्हें क्षय रोग (T.B.) ने ग्रसित कर लिया। इसके बाद उन्हें भारत वापिस भेज दिया गया। उनका रंग पीला पड़ गया था और वे काफी कमजोर हो चले थे। इस अवधि में भी वे अंकों के साथ कुछ न कुछ खिलवाड़ करते रहते थे। इसी रोग के कारण 26 अप्रैल, 1920 में मात्र 33 वर्ष की अल्पायु में ही भारत के इस महान गणितज्ञ का मद्रास के चैटपैट (Chetpet) नामक स्थान पर देहाँ त हो गया।
उपसंहार :
एक गणितज्ञ होने के साथ-साथ रामानुजन एक अच्छे ज्योतिष और अच्छे वक्ता भी थे। वे ईश्वर, शून्य और अनंतता जैसे विषयों पर ओजस्वी भाषण दिया करते थे। रामानुजन के कोई संतान नहीं थी। उनकी यादगार में भारतवर्ष में गणित के लिए रामानुजन पुरस्कार की स्थापना की गई और रामानुजन इंस्टीट्यूट बनाया गया आज भी रामानुजन आने वाली पीढ़ियों के लिए आदर्श हैं।
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