सांप्रदायिकता

सांप्रदायिकता
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प्रस्तावना :

आज सांप्रदायिकता का विष अत्यंत तीव्र गति से फैल रहा है। विभिन्न सम्प्रदायों के लोगों में पारस्परिक विरोध की भावना बलवती होती जा रही है। विरोध की यह भावना हत्या, आगजनी, लूट-खसोट और दंगों के रूप में प्रकट हो रही है और अपने पीछे भयंकर विनाश, अनाथ बच्चे, विधवा औरतें, जले मकान और ध्वस्त दुकानें छोड़ जाती हैं। 

 

सांप्रदायिकता से होने वाली हानियाँ : 

स्वतंत्रता प्राप्ति से अब तक सांप्रदायिकता की आग में लाखों हिंदू-मुसलमान और सिख अपने प्राणों को गंवा चुके हैं, लेकिन फिर भी यह अग्नि शांत नहीं हुई है। पिछले कुछ वर्षों में तो सांप्रदायिकता की अग्नि का रूप और भी विकराल होता गया है। यह सांप्रदायिकता कहीं हिंदू-सिख में, कहीं हिंदू-मुसलमान में और कहीं जातिवाद के रूप में दिखाई पड़ती है।

 

कोई भी सम्प्रदाय लोगों को परस्पर शत्रुता का व्यवहार करना नहीं सिखाता। सांप्रदायिकता लोगों की संकीर्ण मनोवृत्ति की परिचायक है। अयोध्या में मंदिर निर्माण को लेकर देश के अनेक भागों में भयंकर दंगे हुए। इन दंगों में हजारों लोग देश के विभिन्न भागों में पुलिस की गोली अथवा विभिन्न सम्प्रदाय के लोगों द्वारा एक-दूसरे के हाथों मारे गए। करोड़ों रुपयों की सम्पत्ति अग्नि के भेंट चढ़ गई। अनेक बच्चे अनाथ हो गए, स्त्रियों के सुहाग उजड़ गए। दंगा-ग्रस्त क्षेत्रों में व्यापार के साथ-साथ पारस्परिक भाईचारे, देश की एकता और अखंडता को खतरा पैदा हो गया। इसी सांप्रदायिकता के कारण अनके मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे आदि पूजा स्थल तोड़े गए। पुरातत्त्व और ऐतिहासिक महत्त्व की अनेक सांस्कृतिक धरोहरों को मिट्टी में मिला दिया गया।

 

सांप्रदायिकता का बढ़ता विष: 

सांप्रदायिकता तब और घातक हो जाती है जब उसका राजनैतिक लाभ के लिए प्रयोग होने लगता है। सांप्रदायिकता हमारे देशकी सबसे बड़ी कमजोरी है। हमारे देश की कमजोरी का लाभ उठाकर विदेशी शक्तियाँ निरंतर देश को आर्थिक, सामाजिक एवं राजनैतिक रूप से कमजोर करने में लगी हैं। हमारा पड़ोसी देश पाकिस्तान नहीं चाहता कि हम प्रगति करें और शांतिपूर्ण ढंग से उच्च स्तरीय जीवन व्यतीत करें। अतः वह एक अल्पसंख्यक वर्ग के लोगों की भावनाओं को भड़काकर, उन्हें आर्थिक, नैतिक सहयोग देता है व युद्ध के साधनों एवं प्रशिक्षण की सुविधा प्रदान करता है। वह इन लोगों को देश में दंगे भड़काने, तोड़फोड़ करने को उकसाता है।

 

साम्प्रदायिक दंगों को रोकने के लिए सरकार को बड़ी संख्या में पुलिस और सेना की सहायता लेनी पड़ती है। सेना और पुलिस का बंदोबस्त करने में धन व्यय किया जाता है। कल-कारखाने बंद हो जाते हैं। उत्पादन गिर जाता है। विकास कार्य अवरुद्ध हो जाता है। देश के विभिन्न भागों में कर्फ्यू लगा रहता है। सरकार का सारा ध्यान इन दंगों को रोकने में लगा रहता है। इससे हमारे धर्म-निरपेक्ष स्वरूप को आघात लगता है।

 

कश्मीर में कश्मीरी पंडितों द्वारा भोगी गई यातनाएँ और पालयन इसका ज्वलंत उदाहरण हैं कि एक सुसंस्कृत, शांतिप्रिय तथा अल्पसंख्यक समुदाय को जीवित रखने के लिए अनेक विभीषिकाओं से दो-चार होना पड़ता है। कश्मीरी पंडितों के मंदिरों तथा कार्य व्यापार स्थलों पर हुए हमलों से उनकी धार्मिक भावनाओं को ही नहीं बल्कि पुरातत्त्व तथा सांस्कृतिक धरोहरों को भी अपार क्षति पहुँची है।

 

उपसंहार : 

सांप्रदायिकता देश की प्रगति, एकता, अखंडता तथा विभिन्न समुदायों के अनुयायियों के साथ पारस्परिक सद्भाव को क्षति पहुँचाने के कारण एक अभिशाप ही है। युवा पीढ़ी को इस सांप्रदायिकता से दूर रहने का प्रयास करना चाहिए।

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