राष्ट्रीय एकता

राष्ट्रीय एकता
Image : The Teenager Today

प्रस्तावना :

एक होने का भाव एकता कहलाता है। यदि मनुष्य एक-दूसरे से अलग होकर कार्य तथा विचार करते हैं तो निश्चित रूप से न तो समाज और राष्ट्र का विकास हो सकता है और न ही मनुष्य व्यक्तिगत रूप से उन्नति कर सकता है। इसलिए व्यक्तिगत विकास की आकांक्षा हो अथवा सामाजिक अथवा राष्ट्रीय विकास की। यह आवश्यक है कि हम एकजुट होकर विचार तथा कार्य करें तभी हम उन्नति की ओर कदम बढ़ा सकते हैं। इस संबंध में अंग्रेजी में कहा गया कथन निश्चित रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण है- ‘यूनाईटेड वी स्टैंड, दि डिवाईडेड वी फाल।’ अर्थात हम संगठित रहे तो टिके रहेंगे, असंगठित हुए तो गिरेंगे। अंग्रेजी में ही एक और कहावत कही जाती है- ‘एकता ही में बल है (यूनियन इज स्ट्रेंथ।)’ अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता। एक मामूली तिनके की क्या बिसात। एक बालक भी कुचल कर फेंक दे, परंतु जब वही तिनका संगठित होकर रस्सी बन जाता है तो उससे बड़े-बड़े गजराज तक बांध लिए जाते हैं। एक नन्ही बूंद की क्या औकात, धूल में गिरी और गिरकर मिट गई, परंतु वही बूंद जब संगठित होकर एक हो जाती है तो महानद बन जाता है जिसके वेग के सामने बड़े-बड़े पर्वत भी कांपने लगते हैं। जो चींटी बहुत कमजोर मालूम पड़ती है, वही चींटी जब एक होकर चलती है तो बड़े विषधर सर्पों को भी पलक झपकते ही समाप्त कर देती है। अतः यह कथन पूर्णतः यथार्थ है कि एकता ही वह शक्ति है जिससे बड़े-बड़े असाध्य कार्य सिद्ध किए जा सकते हैं।

 

एकता का महत्त्व :

इतिहास के पृष्ठ साक्षी हैं कि एकता के अभाव का दुष्परिणाम हमारे देश को कितना भोगना पड़ा है। कौरव और पांडव की एकता के अभाव के कारण ही इतना बड़ा महाभारत हुआ, जिसे सारा संसार जानता है। अनाचारी रावण भी शायद ही पराजित होता अगर उसने भाई को ही लात मारकर बाहर नहीं खदेड़ा होता। पृथ्वीराज और जयचंद की फूट के कारण ही यह देश अत्याचारी इस्लामिक शासन का गुलाम बना। मीर जाफर की गद्दारी के कारण भारत मुट्ठीभर अंग्रेजों के कब्जे में आ गया और वर्षों तक गुलाम बना रहा। इसके विपरीत जब हिंदुओं ने एक होकर मुकाबला किया तो औरंगजेब के दांतों तले पसीने निकल आए। मुट्ठी भर जापानी और जर्मनों के सामने दुनिया भर की बड़ी-बड़ी शक्तियाँ पानी भरती रहीं। इसका एकमात्र कारण था इन देशों के लोगों की राष्ट्रीय एकता। एकता का सबसे बड़ा महत्व यह है कि यह हमारी शक्ति को दो गुनी, चार गुनी कर देता है। एकता ही किसी देश अथवा समाज की उन्नति का सर्वोच्च कारण है। यदि किसी देश में एकता नहीं है तो वह लंबे समय तक आजादी का जीवन नहीं जी सकता। बाहरी आक्रमण के समय भी उस देश के नागरिक एक होकर अपने राष्ट्र की रक्षा के लिए आगे नहीं आ पाएँगे। यदि किसी समाज में एकता नहीं है तो वह समाज आपसी सहयोग एवं सहभाव की असीम शक्ति से वंचित हो जाएगा और कभी भी उन्नति नहीं कर पाएगा। आत्मोन्नति का सबसे महत्वपूर्ण आधार एकता ही है। अतः यह आवश्यक है कि हम एकता के महत्व को समझें। यदि हम परिवार में सुख-समृद्धि चाहते हैं तो परिवार के सदस्यों को एक साथ विचार करने और एक होकर कार्य करने का महत्व समझाएँ और यदि राष्ट्र में उन्नति और विकास देखना चाहते हैं तो राष्ट्र के लोगों को एकता के महत्व से परिचित कराना आवश्यक है।

 

उपसंहार :

कहा जाता है – ‘संघे शक्ति कलियुगे’, अर्थात कलियुग में एकता में ही बल है। अन्य युगों में भले ही कोई और शक्ति काम करती हो, परंतु कलियुग में एकता की शक्ति ही सर्वश्रेष्ठ शक्ति है। पुराने जमाने में व्यक्ति एवं समाज की रक्षा का भार राजा के ऊपर होता था, परंतु आज हर व्यक्ति को खुद ही संगठित होकर यह दायित्व उठाना होगा। मुण्डकोपनिषद् की इस उक्ति को यदि प्रत्येक मनुष्य अपने आचरण में उतार सके तो समाज का कल्याण सुनिश्चित हो सकता है –

 

सहनाववतु, सहनौभुनक्तु, सहवीर्य करवाव है।

तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषाव है।

 

अर्थात् – ईश्वर! आप हम गुरु-शिष्य दोनों की साथ-साथ रक्षा करें। हम दोनों का साथ-साथ समुचित रूप से आप पालन-पोषण करें। हम दोनों साथ-साथ आप से सभी प्रकार का बल प्राप्त करें। हम दीनों की अध्ययन की हुई विद्या तेजपूर्ण हो। कहीं किसी से भी हम विद्या में परास्त न हों और हम दोनों जीवन पर्यन्त परस्पर स्नेह सूत्र में बंधे रहें। हमारे अंदर कभी भी द्वेष भाव की उत्पत्ति न हो। यही एकता का मूल सूत्र है। अगर हम राष्ट्रीय एकता का महत्व समझें तो हमारे विकास को कोई भी बाधित नहीं कर सकता।

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