प्रवासी भारतीय

प्रवासी भारतीय
Image : Knowledge at Wharton

प्रस्तावना :

प्रवास का अर्थ है अपने मूल स्थान को छोड़कर कहीं और चले जाना। विशिष्ट अर्थों में प्रवासी भारतीय वह है जो अपनी जन्मस्थान को छोड़कर किसी अन्य देश में बस गया हो।

 

प्रवास के कई कारण हो सकते हैं। जैसे कोई प्राकृतिक अथवा राजनैतिक संकट, सामाजिक परिस्थितियाँ आदि। परंतु इन सभी कारणों में सबसे बड़ा कारण होता है आजीविका की तलाश। इस तरह प्रवासी भारतीय वे लोग हैं जो विभिन्न कारणों से किसी अन्य राष्ट्र में जाकर बस गए, परंतु उनका मूल-निवास भारत में ही है।

 

भारतीयों के प्रवास का इतिहास :

भारत से प्रवास अथवा भारत में किसी अन्य देश के प्रवास का इतिहास बहुत पुराना है। कई यूरोपियन इतिहासिकारों ने आर्यों को भी प्रवासी ही माना है।

 

भारत से प्रवास का प्रथम प्रामाणिक प्रमाण हमें सम्राट अशोक के अभिलेखों में मिलता है। सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में श्रीलंका, यूनान आदि देशों में अपने दूत भेजे थे। इसके पश्चात 11वीं सदी में दक्षिण भारत के प्रतापी चोल सम्राटों ने जावा-सुमात्रा, कम्बोडिया आदि सुदूर पूर्व देशों की विजय-यात्रा की, जिसके फलस्वरूप इन देशों में भारतीयों का प्रवास हुआ। अंग्रेजों के समय में भी भारतीयों का प्रवास बड़े पैमाने पर हुआ।

 

आधुनिक समय में तरंग व्यवसायियों, शिल्पियों, व्यापारियों और फैक्ट्री मजदूरों के रूप में आर्थिक अवसरों की तलाश में निकटवर्ती देशों जैसे- थाईलैंड, मलेशिया, सिंगापुर, इंडोनेशिया, ब्रूनेई इत्यादि देशों में व्यवसाय के लिए अनेक लोगों ने प्रवास किया। यह प्रवृत्ति अभी भी जारी है। 1970 के दशक में पश्चिम एशिया में हुई सहसा तेल वृद्धि से उत्साहित भारत के अर्द्धकुशल एवं कुशल श्रमिकों का आर्थिक प्रगति हेतु अरब देशों में प्रवास अभी भी जारी है।

 

प्रवास की नवीनतम् लहर वर्ष 1980 के पश्चात् प्रारंभ होती है। यह मुख्य रूपसे ज्ञान आधारित प्रवास लहर है। इसके अंतर्गत सॉफ्टवेयर इंजीनियर, डॉक्टर, प्रबंधन परामर्शदाता, वित्तीय विशेषज्ञ तथा संचार प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ शामिल हैं। इन्होंने संयुक्त राज्य अमेरिका (USA), कनाडा, यूनाइटेड किंगडम (UK), ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, जर्मनी इत्यादि देशों में प्रवास किया।

 

वर्तमान विश्व में भारतीय प्रवासियों की स्थिति :

वर्तमान में विश्व के लगभग 200 देशों में रह रहे भारतीय प्रवासियों की संख्या करीब 2.5 करोड़ है। इनमें से 11 देशों में 5 लाख से अधिक प्रवासी भारतीय वहाँ की जनसंख्या के एक महत्त्वपूर्ण वर्ग के रूप में स्थापित हो चुके हैं। सूरीनाम, फिजी, त्रिनिडाड एवं टोबेगो, मॉरिशस आदि देशों में तो राष्ट्राध्यक्ष या शासन प्रमुख भारतीय मूल के लोग ही हैं या रह चुके हैं। उदाहरण के लिए, न्यूजीलैंड के गवर्नर जनरल आनंद सत्यानंद, सूरीनाम के पूर्व उपराष्ट्रपति राम सर्दजोई, सिंगापुर के पूर्व राष्ट्रपति एस.आर. नाथन, तीन बार गुयाना के राष्ट्रपति रह चुके भारत जगदेव, मॉरिशस के राष्ट्रपति कैलाश पुरयाग एवं प्रधानमंत्री अनिरुद्ध जगन्नाथ तथा त्रिनिडाड एवं टोबेगो की प्रधानमंत्री कमला प्रसाद बिसेसर नाम प्रमुख हैं।

 

इसके अलावा संयुक्त राज्य अमेरिका के अनेक शीर्ष प्रशासनिक पदों पर भी अनेक भारतीय विराजमान हैं। इनमें लुईसियाना के गवर्नर बॉबी जिंदल, साउथ कैरोलिना की गवर्नर निक्की हैली तथा कमला हैरिस (अटार्नी जनरल) आदि प्रमुख हैं।

 

एक अनुमान के अनुसार, अमेरिका के 38% डॉक्टर, 12% वैज्ञानिक तथा नासा के 36% कर्मचारी भारतीय हैं। कारोबार क्षेत्र की दिग्गज माइक्रोसॉफ्ट कम्पनी के सीईओ सहित लगभग 34% कर्मचारी भारतीय हैं। इसी तरह आईबीएम एवं इंटेल जैसी कम्पनियों के प्रशासनिक व कार्मिक पदों पर भी भारतीयों का वर्चस्व है। पेप्सिको की मुख्य कार्यकारी अधिकारी इंद्रा नूरी हों या ब्रिटेन के शीर्ष धनी परिवारों में शामिल लक्ष्मीनिवास मित्तल, हिंदुजा बंधु हों या कापरो समूह के संस्थापक लार्ड स्वराज पाल इन सभी ने अपने-अपने क्षेत्रों में मील के पत्थर स्थापित किए हैं।

 

भारतीय प्रवासियों की वैश्विक विकास में भूमिका :

विज्ञान के क्षेत्र में सर्वकालिक महान वैज्ञानिकों में शामिल नोबेल विजेता डॉक्टर हरगोविंद खुराना, अंतरिक्ष वैज्ञानिक चंद्रशेखर सुब्रह्मण्यम, 2009 के नोबेल पुरस्कार विजेता वी. एस. नायपाल, बुकर पुरस्कार विजेता सलमान रुश्दी, पुलित्जर पुरस्कार विजेता झुम्पा लाहिड़ी आदि भी प्रवासी भारतीय ही हैं।

 

आंकड़ों के अनुसार इस समय अमेरिका में लगभग 30 लाख, फ्रांस में तीन लाख, कुवैत में 5 लाख, कतर में 5 लाख, यूएई में 17 लाख, दक्षिण अफ्रीका में 12 लाख, यमन में 1 लाख, 50 हजार, श्रीलंका में 16 लाख, मलेशिया में 21 लाख, सिंगापुर में 6 लाख, फिजी में 3 लाख 22 हजार और ऑस्ट्रेलिया में लगभग साढ़े चार लाख भारतवंशी निवास कर रहे हैं।

 

भारत इस समय प्रतिभा पलायन की समस्या का सामना कर रहा है, परंतु फिर भी भारत के लिए प्रवासियों का आर्थिक, सामाजिक एवं राजनैतिक दृष्टि से बहुत महत्त्व है। वर्ष 1915 में एक प्रवासी भारतीय मोहनदास करमचंद गांधी भारत लौटे और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अग्रदूत बने। वास्तव में, भारतीय वर्षों पहले अवसरों व सम्भावनाओं की तलाश में भारतीय प्रवासी बने, किंतु अब भारत स्वयं सम्भावनाओं व अवसरों की भूमि है।

 

अतः इसके विकास में इनकी भूमिका महत्त्वपूर्ण हो जाती है। भारत विश्व के प्रवासियों द्वारा भेजी गई विदेशी मुद्रा प्राप्त करने में प्रथम स्थान पर है। भारतीय प्रवासियों द्वारा प्राप्त यह बहुमूल्य विदेशी मुद्रा भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करती है।

 

भारतीय प्रवासियों के महत्त्व को देखते हुए एवं उन्हें अपनी जड़ों से जोड़ने के लिए भारत सरकार भी प्रयत्नशील है। इसलिए वर्ष 2003 से प्रतिवर्ष 9 जनवरी को ‘प्रवासी भारतीय दिवस’ मनाया जाता है। इसी दिन महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस लौटे थे।

 

उपसंहार :

भारतीय जहाँ भी गए हैं वहाँ उन्होंने ज्ञान, विज्ञान, कारोबार, सेवा आदि क्षेत्रों में सफलता के कीर्तिमान स्थापित किए हैं। भारत विकास के पथ पर अग्रसर है। इस समय भारत विश्व की प्रमुख उभरती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। अतः इसे विकसित बनाने तथा भारत को विचारों की भूमि से अवसरों की भूमि बनाने में प्रवासी भारतीय उल्लेखनीय भूमिका निर्वाह कर सकते हैं।

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