खुदरा बाजार में विदेशी निवेश

खुदरा बाजार में विदेशी निवेश
Image : Business Today

प्रस्तावना :

भारत मूलतः एक कृषि प्रधान देश है। प्राचीनकाल से ही भारतीय बाजार में खुदरा वस्तुओं के विक्रय की संस्कृति रही है। खुदरा बिकने वाली वस्तुओं में मुख्यतः अनाज, दाल, सब्जी आदि प्रमुख हैं। वर्तमान समय में इनका व्यापार 500 बिलियन डॉलर से भी ज्यादा है। इस तरह यह विश्व का पाँचवां सबसे बड़ा खुदरा बाजार है। सकल घरेलू उत्पादन में इसकी भागीदारी 14 से 15% तक है। इस व्यापार के माध्यम से 4 करोड़ से भी अधिक भारतीयों को रोजगार प्राप्त हुआ है, जबकि 20 करोड़ से अधिक लोगों की आजीविका इसी व्यापार से चलती है।

 

भारत में विदेशी कम्पनियों के लिए मार्ग :

केंद्र सरकार द्वारा उदारवादी आर्थिक नीति को लागू किए जाने के बाद विभिन्न विदेशी कम्पनियों को भारत में प्रवेश की छूट मिल गई। अब विदेशी निवेशकों को यहाँ के बाजार में अपना निवेश कर कम्पनी स्थापित करने की सुविधा प्राप्त हो गई। विदेशी निवेशकों को भारत में पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कम्पनी अथवा भारत की किसी कम्पनी के साथ साझा कारोबार शुरू करने का अधिकार प्राप्त हो गया, इसके साथ-ही-साथ विदेशी कम्पनियों को सम्पर्क के माध्यम से भारत में शाखा कार्यालय खोलकर भी यहाँ के बाजार में अपना निवेश करने की सुविधा दे दी गई। किसी देश के द्वारा अन्य देश के बाजार में इस प्रकार किया गया निवेश ‘प्रत्यक्ष विदेशी निवेश’ अथवा एफडीआई (फॉरेन डायरेक्ट इंवेस्टमेंट) कहलाता है।

 

विकास :

वर्ष 2011 तक केंद्र सरकार द्वारा बहुब्राण्ड खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश का विरोध किया गया। यहाँ तक कि एकल ब्राण्ड खुदरा क्षेत्र में भी 51% तक ही विदेशी निवेश को स्वीकृति दी गई। जनवरी, 2012 में केंद्र सरकार द्वारा एकल ब्राण्ड खुदरा क्षेत्र में 100% विदेशी निवेश की छूट प्रदान की गई, पर शर्त रखी गई कि 30% उत्पाद भारत से खरीदे जाएँ। केंद्र सरकार ने सितम्बर, 2012 में 30% स्थानीय खरीदारी की अनिवार्यता के साथ बहु-ब्राण्ड खुदरा क्षेत्र में भी 31% विदेशी निवेश की अनुमति दे दी, किंतु इसका क्रियान्वयन राज्यों पर छोड़ दिया गया है। बहुब्राण्ड खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के फैसले पर तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह ने कहा था- ‘इस कदम से किसानों और उपभोक्ताओं को लाभ होगा तथा कृषि बाजार में नई प्रौद्योगिकी के प्रवेश में मदद मिलेगी।’ इस फैसले के बाद 10 लाख से अधिक आबादी वाले शहरों में विदेशी रिटेल स्टोर खोले जाने के रास्ते खुल गए।

 

और अब वॉलमार्ट, टेस्को, कॉरफोर जैसे दुनिया के बड़े रिटेल स्टोर्स के आउटलेट भारतीय शहरों में खोले जा सकते हैं। हालांकि विपक्ष ने केंद्र सरकार के इस फैसले को भारतीय खुदरा बाजार के लिए अहितकर बताया।

 

लाभ :

भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से खुदरा व्यापार क्षेत्र में होने वाले लाभों को निम्नलिखित रूपों में देखा जा सकता है –

  • बड़े पैमाने पर देशवासियों को रोजगार की प्राप्ति : टेस्को, वॉलमार्ट, कॉरफोर, मेटो आदि बड़ी-बड़ी विदेशी कम्पनियों के भारतीय खुदरा बाजार में प्रवेश करने से रोजगार के नए-नए अवसर प्राप्त होंगे।
  • कृषकों की आय में वृद्धि : खुदरा क्षेत्र में विदेश निवेश में 30% उत्पाद की स्थानीय खरीदारी की अनिवार्यता किए जाने से भारतीय कृषकों को लाभ पहुँचने की सम्भावना है।
  • ग्राहकों को चयन का विकल्प : मॉल, सुपर मार्केट, डिस्काउंट स्टोर जैसे संगठित रिटेल के आने से ग्राहकों को खरीदी जाने वाली सामग्रियों के विकल्प की सुविधा प्राप्त होती है।
  • दलालों से किसानों को मुक्ति : विदेशी निवेश के माध्यम से किसानों का सीधा सम्पर्क कम्पनियों से हो सकेगा और उन्हें दलालों से छुटकारा मिल जाएगा।

 

खुदरा क्षेत्र में एफडीआई की आलोचना :

खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश से होने वाले इन लाभों के बावजूद भारतीय कृषि विशेषज्ञ भारत के संदर्भ में इसे अच्छा नहीं मानते। उनके अनुसार इन विदेशी कम्पनियों के द्वारा कृषि उत्पादों की गुणवत्ता के नाम पर किसान छले जाएँगे और उन्हें अपनी मेहनत की वास्तविक मजदूरी नहीं मिल सकेगी। छोटे किसानों की पहुँच इन बड़ी-बड़ी विदेशी कम्पनियों तक नहीं हो पाएगी और वे बाजार की प्रतियोगिता में पिछड़ जाएँगे। इससे बेरोजगारी और बढ़ जाएगी। केंद्र की वर्तमान भाजपा सरकार भी इन्हीं कारणों से बहुब्राण्ड खुदरा खेत्र में एफडीआई के पक्ष में नहीं है।

 

उपसंहार :

इन सबके बावजूद वैश्वीकरण के इस दौर में भारत जैसे विकासशील देश के लिए खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश को पूर्णतः नकारा नहीं जा सकता, किंतु इस क्षेत्र में नीतियों में सुधार की सम्भावनाएँ भी समाप्त नहीं की जानी चाहिए। किसान यूनियनों, एमएसएस ई और राज्य सरकारों की भागीदारी एवं व्यापक परामर्श के बाद ही केंद्र सरकार द्वारा एफडीआई से सम्बद्ध नीतियाँ बनाई जानी चाहिए।

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