कल्पना चावला
प्रस्तावना :
आदिकाल से ही भारत की नारियाँ ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में अग्रणी रही हैं। प्राचीनतम काल में याज्ञी, मैत्रेयी जैसी नारियाँ जहाँ वैदिक ऋचाओं की महान दार्शनिक एवं विचारक थीं वहीं मध्यकाल (11वीं सदी) में मंडन मिश्र की पत्नी उभय भारती महान विदुषी नारी थी। उन्होंने प्रख्यात वेदांती एवं जगतगुरु आदिगुरु शंकराचार्य से शास्त्रार्थ किया और शंकराचार्य को भी उनसे शास्त्रार्थ करते समय अत्यंत कठिनाई हुई थी। सल्तनत काल में भारत से ज्ञान-विज्ञान का लोप होने लगा। मुस्लिम शासकों का उद्देश्य ज्ञान-विज्ञान का प्रसार करने की जगह धर्म-प्रचार और भारत का इस्लामीकरण था। मुस्लिम शासकों के कुविचारों के कारण ही अरक्षित नारियों ने स्वयं को घर के अंदर छिपा लिया और नारी स्वतंत्रता पर अनेक प्रतिबंध लगा दिए गए। भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना के बाद लोगों की दृष्टि बदली और नारी को आधी-अधूरी स्वतंत्रता प्राप्त हुई। इस आधी-अधूरी स्वतंत्रता का लाभ भी भारतीय बेटियों ने उठाया और अनेक कन्याओं ने घर की दहलीज लांघकर देशकी आजादी में अपना विशेष योगदान दिया। अरुणा आसफ अली, मैडम भीकाजी कामा जैसी नारियाँ इसी काल की हैं। आजादी के बाद भारत की कन्याओं को एक खुली हवा प्राप्त हुई। इंदिरा गांधी, सुचेता कृपालानी, राजकुमारी अमृता कौर जैसी अनेक नारियों ने भारत का मस्तक गर्व से ऊंचा कर दिया। इसी श्रेणी में एक नाम आता है, अंतरिक्ष पुत्री कल्पना चावला का।
जन्म एवं शिक्षा :
कल्पना चावला का परिवार मूलतः लाहौर (अब पाकिस्तान में) का रहने वाला था। 1947 में देश बंटा और उनका परिवार भारत आकर करनाल में बस गया। 1 जुलाई, 1961 को कल्पना चावला का जन्म करनाल में ही हुआ। उनके पिता का नाम बनारसी दास चावला तथा माता का नाम संयोगिता चावला है। कल्पना चावला से बड़ी दो बहनें तथा एक भाई हैं। सन् 1968 में कल्पना का दाखिला टैगोर बाल निकेतन स्कूल में हुआ। कल्पना बचपन से ही पढ़ाई में तेज और गंभीर बालिका थीं। खेलकूद, पेंटिंग्स और सांस्कृतिक कार्यक्रम में भी वह बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती थीं। वे अक्सर आसमान में उड़ने की परिकल्पना करती थीं। जिससे उनके बचपन में ही यह स्पष्ट होने लगा था कि उनकी सर्वाधिक रुचि खगोल विज्ञान में है। टैगोर स्कूल से ही उन्होंने हाई स्कूल की परीक्षा पास की और वहाँ से स्थानीय डीएवी इंटरमीडिएट कॉलेज में प्रवेश किया, फिर वे दयाल सिंह कॉलेज से पढ़ाई करने लगीं। 1978 में प्री-इंजीनियरिंग की परीक्षा में 600 में से 452 अंक प्राप्त कर उन्होंने रिकॉर्ड कायम किया और पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला ले लिया। उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग को ही चुना। 1982 में उन्होंने पंजाब यूनिवर्सिटी में एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में टॉप किया। उसके बाद वे टैक्सास यूनिवर्सिटी में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग का दो वर्षीय मास्टर कोर्स पूरा करने में जुट गईं।
प्रोफेसनल जीवन :
1984 में टैक्सास विश्वविद्यालय से मास्टर डिग्री हासिल करने के बाद वे थाउल्डर चली गईं। वहाँ उन्होंने कोलराडो विश्वविद्यालय में कम्प्यूटेशनल फ्रलाइड डायनामिक्स पर डाक्टरेट का काम प्रारम्भ कर दिया। उनके शोध से उनके शोध मार्गदर्शक अत्यंत प्रभावित थे और वे दिल से चाहते थे कि कल्पना जब यहाँ से निकले तो वह सीधी नासा (नेशनल एयरोनॉटिक्स स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन) से जुड़े। उनकी यह इच्छा पूरी हुई 1988 में; जब सेन जॉस, कैलीफोर्निया की संस्था एम.सी. ए.टी. इंस्टीट्यूट, जो नाशा से ही सम्बद्ध थी ने कल्पना चावला को अपनी संस्थान ज्वाइन करने का ऑफर दिया और कल्पना चावला ने ज्वाइन कर लिया।
विवाह :
सन् 1987 के अंत में उनकी मुलाकात भारतीय मूल के एक ऐसे परिवार से हुई जिस परिवार के एक पारिवारिक मित्र थे जेब पियरे हैरिसन। हैरिसन का सम्बंध नासा से था। वे एक इंजीनियर थे और नासा में स्वतंत्र उड़ान के प्रशिक्षक के रूप में काम करते थे। कल्पना की हैरिसन से मुलाकात हुई तो वे हैरिसन के विचारों से काफी प्रभावित हुईं। हैरिसन भी कल्पना की भारतीय शख्सीयत और प्रतिभा से काफी प्रभावित थे। आखिरकार दोनों ने विवाह कर लिया और दोनों मिलकर कल्पना के सपने को साकार करने में जुट गए।
अंतरिक्ष यात्री के रूप में :
दिसम्बर 1994 में कल्पना का चयन नासा द्वारा एक अंतरिक्ष यात्री के रूप में कर लिया गया। सन् 1997 में कोलंबिया एसटीएस 87 के छः यात्रियों में एक यात्री कल्पना चावला भी थीं। यह अंतरिक्ष यान 17 दिन, 16 घंटे, 32 मिनट तक अंतरिक्ष में रहा था। एक अंतरिक्ष यात्री के रूप में उनकी इस यात्रा ने बचपन में देखा हुआ उनका सपना साकार कर दिया।
मृत्यु :
एक अंतरिक्ष यात्री के रूप में एक सफल यात्रा करके कल्पना ने अपना सपना साकार कर लिया था, परंतु अब वह अंतरिक्ष से जुड़ चुकी थीं। आखिरकार 1998 में नासा ने एक बार पुनः कल्पना चावला को कोलंबिया एसटीएसी 107 के यात्री के रूप में चुन लिया। विभिन्न प्रयोगों के बाद वह अतंरिक्ष यान 2002 के मध्य अंतरिक्ष में भेजा गया था। 16 जनवरी, 2003 को सात अंतरिक्ष यात्रियों को लेकर यान ने उड़ान भरी। 1 फरवरी, 2003 को यह यान वापसी कर रहा था कि अचानक किन्हीं अज्ञात कारणों से दुर्घटनाग्रस्त हो गया और इसके सातों यात्री जिनमें एक भारतपुत्री कल्पना चावला भी थीं अनंत आकाश में समा गए। एक क्षण पहले खुशी से झूमती दुनिया की आंखों में आंसू भर आए। सारा विश्व रो पड़ा। एक महान अध्याय के इस दुखद अंत की कल्पना तो शायद ही किसी ने की हो। सारी दुनिया से शोक संदेश आने लगे, परंतु अब तो जो होना था हो चुका था।
उपसंहार :
महत्त्वपूर्ण यह नहीं है कि कोई कितने दिन जीया। महत्त्वपूर्ण यह है कि कैसे जीया। जीवन की आयु चाहे जितनी हो, परंतु यदि वह मानवता के काम आए तो उससे श्रेष्ठ कुछ नहीं है। मनुष्यता और मानवता के विकास के लिए अपने प्राण गंवाने वाले मरते नहीं, अपितु अमर हो जाते हैं। कल्पना चावला, मानवता के लिए जीवन गंवाकर अमर हो गईं। वे युगों-युगों तक भारत की बेटियों के लिए एक दिव्य आलोक बनी रहेंगी।
अधिक निबंधों के लिए :