काला धन : समस्या एवं समाधान

काला धन : समस्या एवं समाधान
Image : Sangbad

प्रस्तावना :

विगत कुछ वर्षों से काला धन के संदर्भ में बहुत-सी चर्चाएँ हो रही हैं। वर्ष 2014 के चुनाव में तो कालाधन एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा बन गया था।

 

काला धन, जिसको अंग्रेजी में ‘ब्लैक मनी’ कहा जाता है। यह ऐसा धन होता है, जो व्यावहारिक रूप से आयकर विभाग की नजर से छुपा होता है। इस धन का लेखा-जोखा सरकारी आंकड़ों में कहीं नहीं होता। यह बड़े-बड़े व्यापारियों, राजनेताओं, अधिकारियों, माफियाओं एवं हवाला कारोबारियों का अघोषित धन होता है। काला धन किसी भी अर्थव्यवस्था के विकास में बाधक होता है, क्योंकि यह एक समानान्तर अर्थव्यवस्था को जन्म देने में पूर्णतः सक्षम होता है। ‘अपनी जिस आय पर कोई व्यक्ति समुचित आयकर का भुगतान नहीं करता है, उतना धन व्यक्ति का काला धन हो जाता है।’ इस तरह, काला धन वैध एवं अवैध दोनों प्रकार के आय स्रोतों से प्राप्त किया जा सकता है। चूंकि आय के अधिकांश वैध स्रोत राज्य को ज्ञात होते हैं। अतः उन पर आयकर ले लिया जाता है, किंतु अवैध स्रोतों से अर्जित आय का लेखा-जोखा रख पाना एवं उस पर कर लगा पाना सम्भव नहीं होता।

 

इसलिए काला धन का मुख्य स्रोत अवैध आय के स्रोत ही होते हैं। इस आय को छुपाने के लिए लोग ऐसे देशों का रुख करते हैं, जहाँ आय, कर मुक्त हो। सिंगापुर, मॉरिशस, जर्मनी सहित स्विट्जरलैंड आदि ऐसे ही देशों के उदाहरण हैं। स्विस बैंकों में भारतीयों द्वारा काला धन छुपाए जाने की जब-तब भर्त्सना होती है।

 

काला धन और भारत का संदर्भ:

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भारत के संदर्भ में काले धन से संबंधित एक रिपोर्ट तैयार की है। जिसमें कहा गया है कि भारत में काले धन की समस्या देश एवं देश के बाहर की गैर-कानूनी गतिविधियों का परिणाम है। इस रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि एशिया की उभरती आर्थिक ताकत के रूप में भारत अहम है, लेकिन उसे काले धन के कारण देश के भीतर एवं बाहर गैर-कानूनी गतिविधियों, मादक पदार्थों के कारोबार, धोखाधड़ी, संगठित अपराध, मानव तस्करी, भ्रष्टाचार, नकली धन एवं अवैध धन वसूली जैसे कई प्रकार के आर्थिक एवं राजनीतिक खतरों का सामना करना पड़ेगा।

 

ग्लोबल फाइनेंशियल इंटीग्रिटी द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले एक दशक (2002-11) के दौरान भारत से 343.04 अरब डालर की राशि काले धन के रूप में देश से बाहर भेजी गई। इस सूची में चीन, रूस, मैक्सिको एवं मलेशिया जैसे देश भारत से भी आगे हैं। वाशिंगटन डीसी स्थित इस शोध एवं एडवोकेसी संगठन के अनुसार, वर्ष 2011 में विकासशील देशों द्वारा लगभग साढ़े नौ सौ अरब डॉलर का काला धन बाहर के देशों में भेजा गया। इस सूची में रूस और चीन के बाद भारत 84.93 अरब डॉलर राशि का काला धन बाहर भेजे जाने वाले देश के रूप में तीसरे स्थान पर है।

 

काला धन को सुरक्षित रखने की सुविधा :

स्विटरजलैंड और जर्मनी के अलावा संसार में ऐसे 69 ठिकाने और हैं, जहाँ काला धन जमा करने की आसान सुविधा है। इनमें से स्विट्जरलैंड सभी काला धन धारकों की पहली पसंद है, जहाँ खाताधारकों के नाम गोपनीय रखने संबंधी कानून का सख्ती से पालन किया जाता है। यहाँ तक कि बैंकों के बहीखाते में खाताधारी का नाम न लिखकर सिर्फ कोड नम्बर लिखा जाता है। विदेशी बैंकों में जमा काले धन में सिर्फ कर चोरी का धन नहीं रहता, बल्कि भ्रष्टाचार से अर्जित काली कमाई भी उसमें सम्मिलित रहती है।

 

काला धन वापस लाने की कोशिश :

दुनिया के बड़े-बड़े राजनेताओं, नौकरशाहों, दलालों, व्यापारियों के साथ-साथ आतंकवादियों द्वारा भी खातों की गोपनीयता रखने वाले इन बैंकों में काला धन जमा किया जाता है। गैर-कानूनी तरीके से विदेशों में जमा काला धन वापस लाने के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2003 में संकल्प पारित किया है, जिस पर भारत सहित 140 देशों के हस्ताक्षर हैं। इस संकल्प को लागू कर 126 देशों ने काला धन वसूलना भी प्रारंभ कर दिया है। इस संकल्प पर भारत ने वर्ष 2005 में हस्ताक्षर किए हैं।

 

स्विट्जरलैंड के कानून के अनुसार, संकल्प हस्ताक्षर किए बिना विदेशों में जमा धन की वापसी की कार्यवाही नहीं की जा सकती है। स्विट्जरलैंड सरकार की संसदीय समिति द्वारा भारत और स्विट्जरलैंड के बीच हुए समझौते को मंजूरी दे दी गई है, जो भारत के हित में है। विश्व में आई आर्थिक मंदी के बाद दुनिया के तमाम देशों के द्वारा विदेशों में जमा काला धन वापस लाने का सिलसिला शुरू किया गया। अमेरिका पर ओसामा-बिन-लादेन द्वारा किए गए 9/11 के हमले के बाद ही इस बात का खुलसा हुआ कि लादेन भी अपना धन खातों को गोपनीय रखने वाले बैंकों में जमा करता था, फलस्वरूप जर्मनी द्वारा काला धन जमा करने वाले खाताधारियों के नाम बताए जाने के लिए स्विट्जरलैंड पर दबाव बनाया गया। तत्पश्चात् इटली, फ्रांस, अमेरिका, भारत एवं ब्रिटेन भी स्विट्जरलैंड पर काला धन जमा करने वालों के नाम बताने का दबाव बनाने लगे। अमेरिका की बराक ओबामा सरकार के दबाव में आकर वहाँ के यूबीए बैंक ने न सिर्फ काला धन जमा करने वाले 17 हजार अमेरिकियों के नामों की सूची जारी की, बल्कि उसने 78 करोड़ डॉलर राशि के काले धन की वापसी भी कर दी। इसी बैंक से सेवानिवृत्त हुए एक अधिकारी रूडोल्फ ऐल्मर ने विकिलीक्स के सम्पादक जूलियन असांजे को 2,000 भारतीय खाताधारियों की सूची सौंपे जाने का दावा भी किया है। ऐसे में भारत में काले धन की वापसी की उम्मीद भी बढ़ जाती है।

 

एक अनुमान के अनुसार, देश का ₹35 लाख करोड़ राशि का काला धन विदेशी बैंकों में जमा है, जिनमें जेनेवा स्थित एचएसबीसी बैंक के 782 खातों में र 3,000 करोड़ जमा होने की आशंका है। आयकर विभाग द्वारा एचएसबीसी बैंक के अन्य देशों के साथ-साथ भारतीयों द्वारा भी विदेशी बैंकों में रखा धन चोरी-छिपे वापस लाया जा रहा है। स्विस नेशनल बैंक के अनुसार, वर्ष 2011 में स्विस बैंकों में भारतीयों की जमा राशि₹14,000 करोड़ थी, जो वर्ष 2012 में घटकर ₹9,000 करोड़ रह गई है। देश के काले धन को सामने लाने के लिए अब तक भारत सरकार द्वारा कई प्रयास किए गए हैं।

 

काले धन के मामले में न्यायालय की प्रतिक्रिया :

समय-समय पर विभिन्न अदालतें भी कालेधन के संबंध में प्रतिक्रिया करती रही हैं। उच्चतम न्यायालय द्वारा भी काले धन से जुड़े खातों की जानकारी सार्वजनिक न किए जाने पर केंद्र सरकार की कई बार खिंचाई की गई है। वर्ष 2014 में केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद काले धन पर नियंत्रण हेतु उच्चतम न्यायालय के निर्देशानुसार स्पेशल इंवेस्टिगेशन टीम (SIT) का गठन किया गया। जस्टिस एम. बी. शाह को इसका अध्यक्ष बनाया गया। विशेष जाँच दल के गठन से विदेशी बैंकों में जमा काले धन की वापसी की नई आस जगी है।

 

कालेधन की समस्या का समाधान :

काले धन की समस्या के समाधान करने के लिए विभिन्न देशों के साथ दोहरी काराधान संधि के साथ-साथ विमुद्रीकरण की नीति को व्यवहार में लाना लाभप्रद हो सकता है। विमुद्रीकरण का अर्थ होता है- रुपये का पुनर्मुद्रण। जब अर्थव्यवस्था में काला धन बढ़ जाता है, तो इसे दूर करने के लिए सरकार द्वारा विमुद्रीकरण की नीति अपनाई जाती है। इसमें पुरानी मुद्रा के स्थान पर नई मुद्रा को प्रचलन में लाया जाता है। परिणामस्वरूप जिसके पास काला धन होता है, वह उसके बदले नई मुद्रा लेने का साहस नहीं कर पाता एवं काला धन स्वयं नष्ट हो जाता है।

 

देश में काले धन की रोकथाम के लिए बड़े नोटों की जगह छोटे नोटों की व्यापक पैमाने पर छपाई की जानी चाहिए, क्योंकि बड़े नोटों की सुगमता के कारण यहाँ अधिकतर लेन-देन नकद में होता है, जिससे काले धन को बढ़ावा मिलता है। भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर श्री रघुराम राजन का कथन है- ‘हमें इस बात पर ध्यान देने की जरूरत है कि विदेशों में काला धन जमा कराने को रोका कैसे जाए? हमें उच्च वर्ग को प्रोत्साहन देने हेतु कर दरों को नीचे लाना होगा। हमें स्रोत पर ही काले धन पर अंकुश लगाना चाहिए और ऐसे धन को दूसरे देशों में छिपाने को मुश्किल करना चाहिए। हमें प्रणाली में सुधार करने की जरूरत है और इस धन को पैनकार्ड या आधार कार्ड का इस्तेमाल अनिवार्य कर औपचारिक प्रणाली में लाया जाना चाहिए।’

 

उपसंहार :

अक्सर यह देखा जाता है कि काले धन को बाहर निकालना इसके मालिकों के प्रभाव के कारण ही सम्भव नहीं हो पाता। यदि आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों को कहीं भी निर्वाचित न किया जाए, तो भी काले धन को काफी हद तक बाहर लाया जा सकता है। इसके साथ-साथ काले धन पर नियंत्रण के लिए करों की वसूली भी सही ढंग से की जानी अनिवार्य है। इसके लिए आयकर विभाग को नियमित रूप से व्यापारियों एवं राजनेताओं के विभिन्न ठिकानों पर छापा मारना होगा। देश की उन्नति एवं जनता के कल्याण हेतु काले धन की वसूली अत्यावश्यक है। आचार्य चाणक्य के कहे इन शब्दों को अपने जीवन में चरितार्थ कर हम अपने देश से काले धन की समस्या दूर कर सकते हैं- हमें पैसे कमाने के सही साधनों और पैसे खर्च करने के सही तीरकों पर बार-बार विचार करना चाहिए।

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