हिंग्लिश का प्रचलन

हिंग्लिश का प्रचलन
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प्रस्तावना :

भारत, क्षेत्रफल एवं जनसंख्या की दृष्टि से अति विशाल देश है। यहाँ  विभिन्न राज्यों में अलग-अलग भाषाएं बोली जाती हैं, किंतु जो भाषा सम्पूर्ण राष्ट्र को एक सूत्र में बांधती है वह है – हिन्दी। तभी तो कमलापति त्रिपाठी ने हिन्दी को भारतीय संस्कृति की आत्मा कहा है। निःसंदेह विभिन्न कालखंडों के दौरान विदेशी आक्रमणकारियों के यहाँ  आने और आकर बस जाने से हिन्दी भाषा को समृद्ध होने का अवसर मिला। विदेशी भाषाके अनगिनत शब्द हिन्दी भाषा में ऐसे घुल-मिल गए हैं, जैसे वे हिन्दी के मूल शब्द हों, किंतु अंग्रेजों ने न केवल अपनी भाषा अंग्रेजी को यहाँ  पूर्णतः स्थापित करने की कोशिश की, बल्कि हिन्दी के कलेवर को बिगाड़ने और नष्ट करने का भरपूर प्रयास भी किया। फलस्वरूप भारत में दिनों-दिन अंग्रेजी भाषा का वर्चस्व बढ़ता चला गया। धीरे-धीरे भारतीयों के दिल-दिमाग में यह बात घुसा दी गई कि बिना अंग्रेजी भाषा को आत्मसात् किए वे जीवन में आगे नहीं बढ़ सकते, सफलता की बुलंदियों को नहीं छू सकते। इस प्रकार हिन्दी को अपने ही देश में अपने अस्तित्त्व की रक्षा करने के लिए संघर्ष करना पड़ा। अंग्रेजों की गुलामी के दौरान भारतवासियों ने किसी प्रकार जन-जन में बोली जाने वाली अपनी भाषा हिन्दी के अस्तित्व को बचा तो लिया पर वे इस भाषा पर अंग्रेजी के अनावश्यक हस्तक्षेप को रोक पाने में सफल न हो सके, जिसके कारण हिन्दी अंग्रेजी की पिछलग्गू भाषा बनकर रह गई।

 

हिंग्लिश का तात्पर्य :

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् हिन्दी को राजभाषा का सम्मानजनक दर्जा तो मिल गया, मगर यह तब भी राजकाज की भाषा न बन सकी। शासनतंत्र एवं कार्यालयी क्षेत्रों में ब्रिटिश शासनकाल से चली आ रही अंग्रेजी में कार्य करने की परिपाटी अब भी कायम है, परंतु वर्तमान समय का एक सच यह भी है कि आज अपने कार्यों को सम्पन्न करने के लिए देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा हिन्दी और अंग्रेजी के मिले-जुले रूप अर्थात ‘हिंग्लिश’ का धड़ल्ले से प्रयोग कर रहा है।

 

भारत के एक शहर में दो शिक्षित व्यक्तियों के बीच हुए वार्तालाप का एक उदाहरण प्रस्तुत है –

पहला – ऑफिस में आज तुम्हें कौन-कौन से वर्क करने हैं?

दूसरा – वर्क तो बहुत हैं, बट तुम हेल्प करोगे, तो सारे वर्क जल्दी फिनिश हो जाएंगे।

पहला – आई एम ऑलवेज रेडी टू हेल्प यू, डियर।

 

यह वार्तालाप मूल रूप से हिन्दी भाषा में किया गया है, किंतु दोनों व्यक्तियों द्वारा प्रत्येक वाक्य में अंग्रेजी के शब्दों; जैसे- ऑफिस, वर्क, फिनिश इत्यादि का भी प्रयोग किया गया है। वार्तालाप का अंतिम वाक्य तो पूर्णतः अंग्रेजी में ही कहा गया है। सामान्य वार्तालाप के लिए प्रयुक्त इस भाषा को ही लोग हिंग्लिश कहते हैं। हिंग्लिश कोई भाषा नहीं है। हिन्दी भाषा बोलते समय अंग्रेजी के शब्दों एवं वाक्यों के बहुतायत में प्रयोग करने की स्थिति में सामान्य बोलचाल की ऐसी भाषा को हिंग्लिश नाम दिया गया है।

 

भाषा का वैज्ञानिक स्वरूप :

प्रयोग की दृष्टि से भाषा के सामान्यतः दो रूप होते हैं – साहित्य सृजन की भाषा एवं सामान्य बोलचाल की भाषा। साहित्य-सृजन की भाषा में व्याकरण के नियमों का पूरा-पूरा ध्यान रखा जाता है, किंतु सामान्य बोलचाल की भाषा व्याकरण के नियमों से परे होती है। सामान्य बोलचाल की भाषा में समाज एवं क्षेत्र का प्रभाव स्पष्ट नजर आता है। किसी भी भाषा में दूसरी भाषा के शब्दों का प्रयोग इसका एक अच्छा उदाहरण है। हिन्दी में भी कई भाषाओं के विदेशी शब्दों का प्रयोग बहुतयात से किया जाता है। ये भाषाएं हैं – तुर्की, फारसी, उर्दू, पुर्तगाली, अंग्रेजी इत्यादि। अंग्रेजी के कुछ संज्ञा शब्दों, जैसे- स्कूल, कॉलेज, टेबल, रिपोर्ट, स्टेशन, टैलीविजन, कम्प्यूटर इत्यादि को सामान्य रूप से हिन्दी में स्वीकार कर लिया गया है। ऐसा हिन्दी भाषा ही नहीं, विश्व की और भी भाषाओं को करना पड़ता है।

 

भारतीयों के अत्यधिक संख्या में ब्रिटेन में होने और सैकड़ों वर्षों तक अंग्रेजों के भारत में रहने के परिणामस्वरूप अंग्रेजी शब्दकोश में भी हिन्दी के कुछ शब्दों, जैसे – लोटा, लाठी, पूरी, रोटी इत्यादि को शामिल किया गया है। किसी भाषा में अन्य भाषा के संज्ञा शब्दों का प्रयोग तो सामान्य बात है, किंतु अनावश्यक रूप से विदेशी भाषा के शब्दों का बहुतायत में प्रयोग किए जाने के कारण उस भाषाकी गरिमा नष्ट होती है एवं उस पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। हिन्दी के साथ आजकल यही समस्या है।

 

उपरोक्त बातचीत में ‘फिनिश’ क्रिया शब्द है। इसके स्थान पर ‘पूरा होने’ या ‘खत्म होने’ जैसे हिन्दी के क्रियासूचक शब्दों का प्रयोग होना चाहिए था। इसे वैश्विक प्रभाव के कारण हुई भाषायी विकृति कहा जा सकता है।

 

वैश्वीकरण के इस युग में मानव की एक प्रजाति दूसरी प्रजाति के अत्यधिक निकट आई है, जिससे उनके बीच सभ्यता-संस्कृति का आदान-प्रदान हुआ है और इस आदान-प्रदान की प्रक्रिया में विश्व की भाषाएं भी अछूती नहीं रही हैं। अंग्रेजों ने भारत में सैकड़ों वर्षों तक शासन किया। यहाँ  अंग्रेजी भाषा के शिक्षण की शुरूआत की स्थिति यह है कि अंग्रेजी भारत में आज तक राज-काज की भाषा बनी हुई है, इसलिए भारत की सभी भाषाओं में अंग्रेजी के शब्दों का अधिकाधिक प्रयोग होता है, किंतु पिछले कुछ वर्षों में हिन्दी भाषा में अंग्रेजी के वाक्यों का भी बहुतायत में प्रयोग होने लगा है। साहित्य समाज का दर्पण है। यदि समाज में सामान्य बोलचाल में ऐसी भाषा का प्रयोग बढ़ा है, तो साहित्य भी भला इससे अछूता कैसे रह सकता था। आज साहित्यकारों ने भी इस प्रकार की भाषा का प्रयोग करना शुरू कर दिया है। 

 

हिंग्लश का बढ़ता प्रचलन :

हिंग्लिश के प्रयोग के उपरोक्त कारणों के अतिरिक्त और भी कई कारण हैं। पिछले कुछ वर्षों में भारत में व्यावसायिक शिक्षा में प्रगति आई है। अधिकतर व्यावसायिक पाठ्यक्रम अंग्रेजी भाषा में ही उपलब्ध हैं और विद्यार्थियों के अध्ययन का माध्यम अंग्रेजी भाषा ही है। इस कारण से विद्यार्थी हिन्दी में पूर्णतः निपुण नहीं हो पाते, क्योंकि अंग्रेजी में शिक्षा प्राप्त युवा हिन्दी में बात करते समय अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग करने को बाध्य होते हैं। हिन्दी भारत में आम जन की भाषा है।। इसके अतिरिक्त वर्तमान समय में समाचार-पत्रों एवं टेलीविजन के कार्यक्रमों में भी ऐसी ही भाषा के उदाहरण मिलते हैं। इन सबका प्रभाव आम आदमी पर पड़ता है। 

 

आज ‘हिंग्लिश’ का भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अलग ढंग से प्रयोग होने लगा है, जिसका असर सूचना प्रौद्योगिकी, इंटरनेट, चैट, मोबाइल मैसेज तथा हिन्दी ब्लॉगिंग के रूप में दिखने लगा है। वर्तमान में आम आदमियों से लेकर बुद्धिजीवियों तक में इसका प्रचलन बढ़ता जा रहा है। आज आजादी के इतने वर्षों बाद हिंग्लिश के बढ़ते हुए प्रयोग को देखकर केन्द्र सरकार व कई राज्य सरकारों ने भी इसे स्वीकार कर लिया है।

 

हिंग्लश के प्रयोग से बढ़ती चिंता :

भले ही हिंग्लिश के बहाने हिन्दी बोलने वालों की संख्या बढ़ रही है, किंतु हिंग्लिश का बढ़ता प्रचलन हिन्दी भाषा की गरिमा के दृष्टिकोण से गंभीर चिंता का विषय है। कुछ वैज्ञानिक शब्दों, जैसे- मोबाइल, कम्प्यूटर, साइकिल, टेलीविजन एवं अन्य शब्दों, जैसे- स्कूल, कॉलेज, स्टेशन इत्यादि तक तो ठीक है, किंतु अंग्रेजी के अत्यधिक एवं अनावश्यक शब्दों का हिन्दी में प्रयोग सही नहीं है।

 

हिन्दी, व्याकरण के दृष्टिकोण से एक समृद्ध भाषा है। यदि इसके पास शब्दों का अभाव होता, तब तो इसकी स्वीकृति दी जा सकती थी। शब्दों का भंडार होते हुए भी लोग यदि इस तरह की मिश्रित भाषा का प्रयोग करते हैं, तो यह निश्चय ही भाषायी गरिमा के दृष्टिकोण से एक बुरी बात है। भाषा संस्कृति की संरक्षण एवं वाहक होती है। भाषा की गरिमा नष्ट होने से उस स्थान की सभ्यता-संस्कृति पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

 

हिंग्लिश का प्रयोग भले ही साहित्य में समाज की स्थिति बताने के लिए हो रहा हो, किंतु अभी तक यह पूर्ण-रूपेण साहित्य-सुजन की भाषा नहीं बन पाई है। बोलचाल की भाषा किसी भी युग में साहित्य-सृजन की भाषा न बनी है और न ही आगे बन पाएगी। आम आदमी उसी भाषामें बातचीत करना चाहता है, जिसमें उसको आसानी होती है। भाषायी गरिमा एवं व्याकरण के नियमों से उसे कोई लेना-देना नहीं होता। वह इसकी परवाह नहीं करता कि जिन शब्दों एवं वाक्यों का प्रयोग वह कर रहा है, वे किस भाषा के हैं। यही बात हिंग्लिश बोलने वाले के साथ भी है। आधुनिक भारतीय युवा यदि हिन्दी में दक्ष नहीं हैं और उन्हें मजबूरन हिन्दी एवं अंग्रेजी के मिश्रित रूप का सहारा लेना पड़ रहा है तो इसमें उनका कोई दोष नहीं है, लोगों तक अपनी बात पहुंचाने के लिए उनके पास दूसरा कोई विकल्प नहीं है।

 

उपसंहार :

हिंग्लिश का प्रयोग इस बात का सबूत है कि हिन्दी भारत में आम बोलचाल की भाषा है और अंग्रेजी में शिक्षित होकर व्यक्ति आम आदमी से बात नहीं कर सकता। चाहे किसी भी रूप में हो। निःसंदेह हिन्दी को इससे लाभ ही होगा। दक्षिण भारतीयों को उत्तर भारतीयों से बात करने के लिए हिंग्लिश का सहारा लेना पड़ता है। इसी तरह, उत्तर भारतीय जब दक्षिण में जाते हैं, तो वे अपनी बात के लिए टूटी-फूटी हिन्दी मिश्रित अंग्रेजी का ही सहारा लेते हैं। इस तरह देखा जाए, तो हिंग्लिश भारत के कई भाषा-भाषियों के बीच वाक्-सेतु का कार्य करती है। अंग्रेजी बोलने वाला व्यक्ति सीधे-सीधे हिन्दी बोलने में सक्षम नहीं होगा, उसे टूटी-फूटी भाषा का सहारा लेना ही होगा। इस दृष्टिकोण से भी देखा जाए तो हिंग्लिश के कारण हिन्दी बोलने वाले लोगों की संख्या में बढ़ोतरी होगी। इस तरह, भाषायी गरिमा एवं व्याकरण के कुछ अन्य पहलुओं को छोड़ दिया जाए तो हिंग्लिश से हिन्दी को लाभ ही होगा।

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