हिन्दू धर्म : एक सांस्कृतिक विरासत
प्रस्तावना :
यदि हम कल्पना कर सकें तो हमें यह अनुभूति अवश्य ही होगी कि आदि मानवों का जीवन कितना कठिन और संघर्षमय रहा होगा। उनकी सम्पूर्ण शक्तियाँ और समय जीवन रक्षा और उदरपोषण में ही खर्च हो जाते थे। धीरे-धीरे उन्होंने विकास किया और भोजन उत्पादन की अवस्था तक का सफर तय किया। खेती-बाड़ी एवं पशुपालन के कारण वह एक निश्चित स्थान पर निवास करने लगा और इस तरह मानव का सामुदायिक जीवन प्रारम्भ हुआ। जीवन-रक्षा के संघर्षमय जीवन से जब मानव को कुछ राहत मिली तब उन्होंने अपने चारों ओर प्रकृति की महान शक्तियों का अनुभव किया। कड़कती बिजली की चमक, बादलों का गर्जन, तूफान, बारिश जैसी प्राकृतिक लीलाओं से वह भयभीत भी हुआ परंतु उसी के साथ उसने यह अनुभूति भी की कि इन्हीं प्राकृतिक शक्तियों के बल पर ही उसका जीवन और विकास आश्रित है। अतः भय, श्रद्धा और कृतज्ञता के भाव से वह उसके समक्ष नत्मस्तक हो गया। यहीं से प्रकृति-पूजा और प्राकृतिक शक्तियों का दैवीकरण प्रारम्भ हुआ। परंतु धीरे-धीरे वह अनुभव कर रहा था कि प्रकृति स्वतः पूर्ण और स्वतंत्र नहीं है उसमें एक निश्चित नियम है। इसका अर्थ यह है कि प्रकृति पर भी नियंत्रण रखने वाली कोई शक्ति होनी चाहिए। क्रमशः वह ज्ञात से अज्ञात और जड़ से चेतन की ओर अग्रसर होते हुए प्रकृति की रचना और नियंत्रण के मूल में एक अदृश्य एवं महाशक्ति की कल्पना की ओर बढ़ता गया। इस तरह मानव ने एक सर्वशक्तिमान और सर्वज्ञ ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार किया और सम्पूर्ण श्रद्धा के साथ आत्मसमर्पण कर दिया। यहीं से धर्म की उत्पत्ति हुई।
भारत में धर्म की भिन्नता :
भारत मूलतः एक धर्म प्रधान देश है। यहाँ एक अत्यंत सुदीर्घ एवं श्रेष्ठ धार्मिक परम्परा है। सुविधा की दृष्टि से हम भारत की महान धार्मिक परम्परा को दो मुख्य श्रेणियों में विभाजित कर सकते हैं –
१. भारतीय उत्पत्ति के धर्म : हिन्दू, जैन, सिख एवं बौद्ध धर्म भारतीय उत्पत्ति के धर्म हैं। इनका मूल स्रोत भारतीय वैचारिक दर्शन है।
२. गैर भारतीय उत्पत्ति के धर्म : इस्लाम, ईसाई एवं जरथुस्त्र धर्म गैर भारतीय उत्पत्ति के धर्म हैं। इनका मूल स्रोत विदेशी विचार-दर्शन है।
हिन्दू धर्म विचार एवं दर्शन :
हिन्दू धर्म विश्व के सभी धर्मों में प्राचीनतम् है। यह विश्व का एकमात्र ऐसा धर्म है जिसका प्रवर्तक कोई नहीं है। सदियों पुराना यह धर्म वास्तव में अनेक ऋषियों, मुनियों एवं तत्त्वदर्शी महात्माओं के ज्ञान एवं अनुभूति का संचित कोष है। इसलिए हिन्दू धर्म को ‘सनातन धर्म’ अथवा ‘वैदिक धर्म’ के नाम से भी अभिहित किया जाता है।
हिन्दू धर्म की मूल अवधारणा :
हिन्दू धर्म की पांच मूल अवधारणाएं हैं – १. ब्रह्म, २. आत्मा, ३. ब्रह्म और आत्मा का एकत्व, ४. आध्यात्मिक जीवन एवं ५. कर्म।
हिन्दू धर्म में जीवन के चार लक्ष्य :
हिन्दू धर्म के अनुसार जीवन के चार प्रमुख लक्ष्य हैं – १. धर्म, २. अर्थ, ३. काम, ४. मोक्ष।
हिन्दू धर्म का स्वरूप :
हिन्दू धर्म अपने मौलिक स्वरूप में पूर्णतः आदर्शवादी एवं प्रायोगिक धर्म है। इसके द्वारा प्रतिपादित जीवन के चार लक्ष्यों में अर्थ और काम भी हैं। इसका अर्थ यह है कि, यह कहना कि हिन्दू धर्म भौतिक सुख-सुविधाओं का निषेधक है, असत्य है। अर्थ को अर्जित करना मानव जीवन का लक्ष्य है परंतु इसका उपयोग धर्म के अनुसार ही किया जाना चाहिए। इसी तरह ‘काम’ अथवा इंद्रिय सुख को मानव जीवन के लक्ष्य के रूप में निरूपित करके हिन्दू धर्म यह स्पष्ट कर देता है कि उसका लक्ष्य सबको तपस्वी अथवा योगी बना देना नहीं है। यह मानव जीवन में इंद्रिय सुख को समुचित महत्त्व देता है परंतु इंद्रिय सुख का उपयोग भी धर्म के अनुसार ही होना चाहिए।
हिन्दू धर्म की विशेषता :
हिन्दू धर्म की मूल विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
१. ईश्वर की सत्ता पर पूर्ण विश्वास एवं आस्था : हिन्दू धर्म एक मात्र ईश्वर की सत्ता की स्थाई और सत्य मानता है। यह ईश्वर को ही सर्वव्यापी एवं सर्वज्ञ मानता है।
२. एककेश्वरवाद : हिन्दू धर्म मूलतः एकेश्वरवादी है, परंतु साथ-साथ हिन्दू धर्म में अलग-अलग देवताओं की उपासना भी हिन्दू धर्म में प्रचलित है। आधारभूत मान्यता यह है कि उसी परमब्रह्म की उपस्थिति प्रकृति में है और देवताओं में भी। यह सभी देवता मनुष्य की विभिन्न इच्छाओं की पूर्ति में सहायक हैं पंरतु सभी परमब्रह्म के अधीन हैं।
३. देवत्रयी : हिन्दू धर्म में देवत्रयी का सिद्धांत सृजन, पोषण और विनाश के शाश्वत नियम के साथ जुड़ा है। ब्रह्मा सृष्टि का सृजन, विष्णु पोषण और शिव विनाश (विकृतियाँ उतपन्न होने पर) के देवता हैं। धर्म-दर्शन के अनुसार ये तीनों परमब्रह्म के ही स्वरूप हैं।
४. शक्तिपूजा : यह हिन्दू धर्म की अन्यतम विशिष्टता है। सैंधव संस्कृति (लगभग ३००० वर्ष पूर्व) में मातृदेवी की उपासना होती थी शक्ति पूजा के रूप में वह आज भी हिन्दू धर्म की प्रमुख विशेषता है।
५. पुरुषार्थ : मानव जीवन का उपयोग तभी है जब मनुष्य पुरुषार्थी हो। हिन्दू धर्म के चार लक्ष्यों धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का संतुलित आचरण ही पुरुषार्थ है।
६. कर्म और पुनर्जन्म : हिन्दू धर्म कर्म और पुनर्जन्म के सिद्धांत पर विश्वास रखता है। मनुष्य जैसा कर्म करता है उसे वैसा ही फल प्राप्त होता है। कर्म के अनुसार ही मानव जन्म लेता है, जीवित रहता है और मरता है। श्रीमद्भागवत गीता कर्म और पुरुषार्थ को ही प्रधान मानती है।
७. अवतारवाद : हिन्दू धर्म अवतारवाद में विश्वास रखता है। इस मान्यता के अनुसार जब-जब इस संसार में अधर्म बढ़ जाता है और समाज अन्याय और अत्याचार से विकृत हो जाता है तब-तब ईश्वर पृथ्वी पर अवतरित होकर धर्म और मर्यादा की रक्षा करते हैं।
८. मूर्तिपूजा : यह हिन्दू धर्म का अभिन्न अंग है। यद्यपि निराकारोपसना भी हिन्दू धर्म के प्रमुख अंगों में है और अनेक हिन्दू धर्म के अनुयायी उसका अनुसरण करते हैं। परंतु सरल एवं सुगम होने के कारण साकारोपसना अधिक प्रचलित है। वस्तुतः भारतीय धर्म-दर्शन के अनुसार निराकारोपासना ज्ञानियों के लिए है। सामान्य जन निराकारोपासना का मार्ग ग्रहण करने में सहज नहीं रहता अतः सगुणोपसना ही सामान्यजन के लिए सर्वथा उचित है।
९. नैतिक मूल्यों में अटूट आस्था : हिन्दू धर्म जीवन में नैतिक मूल्यों पर अत्यधिक बल देता है। इसलिए मनु ने धर्म को आचार लक्षणो धर्मः कहा है। मनु के अनुसार धर्म के दस लक्षण हैं – १. धैर्य, २. क्षमा, ३. दमन, ४. अस्तेय, ५. पवित्रता, ६. बुद्धि, ७. विद्या, ८. सत्य, ९. अक्रोध एवं १०. इंद्रिय निग्रह। इनका पालन करना ही धर्म है।
१०. सहिष्णुता एवं विश्वबंधुत्व: प्रत्येक मनुष्य के प्रति बंधुत्व का भाव एवं प्रत्येक विचार के प्रति सहनशीलता का भाव हिन्दू धर्म की अत्यंत महत्त्वपूर्ण विशिष्टता है। वेद इसे घोषित करते हुए कहते हैं –
सर्वे भवन्तु सुखमय सर्वेसन्तु निरामयाः ।
सर्वे भद्राणि पश्यंतु मा कश्चिद् दुखभाग भवेत ।।
११. विभिन्न सम्प्रदायों पर विश्वास : हिन्दू धर्म संसार के प्रत्येक विचारों का स्वागत करता है। ईश्वर प्राप्ति के मार्ग भिन्न-भिन्न हो सकते हैं। ईश्वर सत्य है, अतः इसमें कोई विरोध नहीं है। सभी उपाय या विचार एक दूसरे के पूरक हैं।
हिन्दू धर्म के मुख्य सम्प्रदाय:
हिन्दू धर्म अपने विचारों एवं उपासना पद्धति के अनुसार तीन सम्प्रदायों में विभक्त है – १. वैष्णव सम्प्रदाय – यह सम्प्रदाय भगवान विष्णु में आस्था रखता है। २. शैव सम्प्रदाय – यह सम्प्रदाय मुख्य रूप से भगवान शिव के विभिन्न रूपों की उपासना करता है। ३. शाक्त सम्प्रदाय – यह सम्प्रदाय शक्ति (आदि देवी, मातृ शक्ति) के विभिन्न रूपों का उपासक है।
उपसंहार :
धर्म मूल रूप से जीवन जीने की पद्धति है। एक विश्वास है जिसकी प्रबल शक्ति जिजीविषा को कायम रखती है। वस्तुतः धर्म वह बंधन है जो मनुष्य के जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य निर्धारित करने के साथ-साथ मानवमात्र को परस्पर स्नेह सहानुभूति और सहृदयता के बंधन में बंधता है। हिन्दू धर्म के अनुसार यह सम्पूर्ण जगत ही ईश्वर का प्रतिरूप है इसलिए कोई शत्रु नहीं है। सबके प्रति हमारा प्रेम एवं भाव है।
हिन्दू धर्म न तो भौतिक सुख का निषेधक है न ही ऐश्वर्य का, परंतु पापपूर्ण एवं अत्याचार से अर्जित किए गए सुख एवं ऐश्वर्य का निषेध करता है। हिन्दू धर्म-दर्शन यह मानता है कि मनुष्य का जन्म, जन्मों के अनवरत पथ का एक भाग है। प्रत्येक मनुष्य अपनी इस अनवरत यात्रा में अनेक कर्म करता है और प्रारब्ध के रूप में वे कर्म उनके जीवन के साथ जुड़कर उनके लिए भाग्य बन जाते हैं। अतः श्रेष्ठतम् कर्म ही मानव के श्रेष्ठ जीवन के कारण हैं।
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