हेलेन एडम्स केलर

हेलेन एडम्स केलर
Image : Britannica

प्रस्तावना :

तो मानवता के इतिहास में विक्लांगता के बावजूद अनुपम उपलब्धियाँ हासिल करने वाली महान् विभूतियों की कमी नहीं, परंतु अन्धता एवं बधिरता जैसी दोहरी विक्लांगता के बावजूद न केवल अपना जीवन सफल बनाने, बल्कि अपने जैसे लाखों लोगों के लिए भी कार्य कर, सबके लिए प्रेरक मिसाल बन जाने वालों के उदाहरण के रूप में हेलेन केलर का नाम प्रमुखता से आता है। ‘दृष्टिहीनों की प्रगति में मुख्य बाधा दृष्टिहीनता नहीं, बल्कि दृष्टिहीनों के प्रति समाज की नकारात्मक सोच है।’ यह वक्तव्य उसी महान महिला हेलेन केलर का है, जिन्होंने दृष्टिहीन एवं बधिर होने के बावजूद अध्ययन, लेखन एवं रचनाशीलता से विविध क्षेत्रों में ऐसी अद्भुत मिसाल कायम की, जो किसी साधारण व्यक्ति के वश की बात नहीं। उनकी विलक्षण प्रतिभा से प्रभावित होकर विंसटन चर्चिल न हेलेन को अपने युग की सर्वाधिक महान महिला की संज्ञा देते हुए कहा था- ‘हेलेन केलर अन्धेपन व बधिरता जैसी विकलांगताओं के बावजूद जिस तरह का रचनात्मक जीवन जी रही हैं, वह कामयाबी की अत्यंत दुर्लभ मिसाल है। उनका जीवन आम आदमी को बाधाओं पर हर परिस्थिति में जीत हासिल करने की प्रेरणा देता है।’

 

जन्म एवं जीवन संघर्ष :

हेलेन केलर का जन्म संयुक्त राज्य अमेरिका स्थित अलबामा प्रांत के उत्तर पश्चिम इलाके के छोटे से कस्बे टस्कम्बिया में 27 जून, 1880 को हुआ था। उनके पिता ऑर्थर हेनली केलर कनफेडरेट आर्मी में कैप्टन थे और उनकी माता केट एडम्स केलर एक शिक्षित महिला थीं, जिन्होंने हेलेन को पर्याप्त सहयोग एवं प्रोत्साहन दिया। हेलेन केलर ‘जन्मान्ध नहीं थीं। उनका जन्म दृष्टि एवं श्रव्य-शक्ति सम्पन्न एक स्वस्थ बच्ची के रूप में हुआ था, किंतु प्रकृति की यह कृपा उन पर अधिक दिनों तक नहीं रह सकी।

 

फरवरी, 1882 में मात्र 19 माह की आयु में उन्हें स्कार्लेट ज्वर या मैनिजाइटिस नामक बीमारी ने जकड़ लिया, जिसका इलाज उन दिनों सम्भव नहीं था और जिसके परिणामस्वरूप एक दिन उनकी मां को यह एहसास हुआ कि उनकी नन्ही बच्ची की दृष्टि एवं श्रव्य-शक्ति जा चुकी है। उनकी बीमारी इस हद तक गंभीर हो चुकी थी कि उनके माता-पिता को हेलेन का बचना असम्भव लगता था, किंतु धीरे-धीरे वे स्वस्थ होने लगीं, बस दुख इस बात का था कि उनकी दृष्टि एवं श्रव्य-शक्ति को वापस नहीं लाया जा सकता था।

 

दृष्टि एवं श्रव्य-शक्ति खोने के बाद हेलेन का बचपन न केवल संघर्षपूर्ण, बल्कि कष्टमय भी हो गया था, जिसके परिणामस्वरूप वे अत्यधिक चिड़चिड़ी एवं तुनकमिजाज हो गईं। बात-बात पर चिल्लाने और घर के सामानों को फेंकने की आदतों के कारण उनके रिश्तेदार यह मानने लगे कि हेलेन वास्तव में शैतान हैं और उन्हें किसी संस्थान में भर्ती कराना आवश्यक है। जब हेलेन छः वर्ष की हुई, तब तक उनके माता-पिता उनके भविष्य को लेकर निराश हो चुके थे। उनकी देखभाल करना अत्यंत कठिन कार्य था, इसलिए उनकी मां ने एक अच्छे विशेषज्ञ डॉक्टर की तलाश की। उस डॉक्टर ने हेलेन को कुछ दिनों तक देखने पर पाया कि वे अपने रसोइए के कुछ इशारों को आसानी से समझ लेती थीं और कुछ चिन्हों की मदद से अपने परिवार के लोगों से बात कर सकती थीं, इस अवलोकन के बाद, उसने सलाह दी कि हेलेन की दृष्टि तो वापस नहीं लाई जा सकती, पर उसे पढ़ाया जा सकता है।

 

इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु उसने उन्हें मूक-बधिर बच्चों के विशेषज्ञ एक स्थानीय व्यक्ति से मिलने की सलाह दी। ये विशेषज्ञ थे- अलेक्जेण्डर ग्राहम बेल, जिन्होंने टेलीफोन का आविष्कार किया था। बेल ने उन्हें अंधों एवं बधिरों के स्कूल ‘पार्किस इंस्टीट्यूट फॉर द ब्लाइण्ड’ जाने की सलाह दी। इस स्कूल के निदेशक माइकल एनेगनस ने अपनी भूतपूर्व छात्रा ऐनी सुलिवियन, जो स्वयं भी दृष्टिहीन थीं, को हेलेन का प्रशिक्षक बनाया।

 

1894 ई. में हेलेन केलर अपनी सहायिका ऐनी सुलिवियन के साथ राइट ह्यूमेसन मूक बधिरार्थ विद्यालय में दाखिल होने के लिए तथा होरेस मैन बधिरार्थ विद्यालय की सारा फुलर से सीखने के लिए न्यूयॉर्क गईं। 1896 ई. में केलर मैसाचुसेट्स गईं तथा वहाँ  उन्होंने कैम्ब्रिज स्कूल फॉर यंग लेडी और इसके बाद वर्ष 1900 में रेडक्लिफ कॉलेज में प्रवेश लिया। 24 वर्ष की अवस्था में वर्ष 1904 में हेलेन केलर कला स्नातक की डिग्री हासिल करने वाली पहली दृष्टिबाधित बधिर बनीं।

 

आरंभ  में ऐनी के पढ़ाने का तरीका बड़ा ही प्रायोगिक था, उन्होंने हेलेन को प्रथम शब्द डॉल सिखाने के लिए उसके हाथ में एक डॉल थमा दी। इसी तरह, वाटर शब्द सिखाने के लिए उसे ठण्डे पानी के बीच ले गई। इस तरह, हेलेन की शिक्षा प्रारम्भ हो गई और एक वक्त ऐसा भी आया जब सारी दुनिया उनकी विद्वता एवं रचनाशीलता देखकर दंग रह गई। ऐनी सुलिवियन ने 49 वर्षों तक साथी एवं शिक्षक के रूप में हेलेन केलर का साथ दिया।

 

ऐनी के अथक प्रयासों से हेलेन अंग्रेजी, लैटिन ग्रीक, फ्रेंच और जर्मन भाषा की जानकार बन गईं। दूसरों के साथ पारस्परिक संवाद सम्भव करने के लिए प्रतिबद्ध हेलेन ने बातचीत करना सीखा तथा बाद में उनके जीवन का अधिकांश समय भाषण और व्याख्यान में बीता। होंठों को स्पर्श कर लोगों की बात समझने की कला सीखना उनकी अद्भुत स्पर्श क्षमता का प्रमाण था, उन्होंने ब्रेल तथा हाथों के स्पर्श से सांकेतिक भाषा समझने में महारत हासिल कर ली थी।

 

हेलेन केलर का ऑस्ट्रिया के दार्शनिक एवं शिक्षाविशारद् विल्हेम यरूशलम के साथ पत्राचार चलता था। इसी पत्राचार के दौरान विल्हेम ने सबसे पहले हेलेन की साहित्यिक प्रतिभा को पहचाना तथा हेलेन एक विश्व प्रसिद्ध वक्ता एवं लेखक बनीं।

 

हेलेन केलर की रचनाएँ :

हेलेन केलर की लिखी कुल 12 पुस्तकें एवं कई आलेख प्रकाशित हुए। ‘मेरा धर्म’ तथा ‘मेरी जीवन कहानी’ हेलेन की विश्वप्रसिद्ध कृतियाँ हैं।

 

हेलेन केलर इंटरनेशनल की स्थापना :

केलर ने दृष्टिहीनों के लिए समर्पित संस्था के लिए 44 वर्षों तक काम किया। विक्लांगों की सहायता के लिए उन्होंने विश्व के 39 देशों की यात्रा की। वर्ष 1915 में हेलेन और जॉर्ज केसलर ने मिलकर हेलेन केलर इंटरनेशनल संगठन की स्थापना की।

 

यह संगठन दृष्टि, स्वास्थ्य एवं पोषण से सम्बंधित अनुसंधानों को समर्पित था। वर्ष 1920 में अमेरिकन सिविल लिबर्टीज यूनियन की स्थापना में उनकी भूमिका उल्लेखनीय रही। वे अपने विश्व भ्रमण के दौरान अनेक देशों के प्रमुखों से मिलीं, उनमें से कई उनके मित्र एवं प्रशंसक ही नहीं, बल्कि सहायक भी बन गए। उनके मित्रों एवं प्रशंसकों की सूची में मार्क ट्वेन, विंसटन चर्चिल, चार्ली चैपलिन जैसे विश्वविख्यात नाम शामिल हैं। मार्क ट्वेन ने एक बार हेलेन केलर की प्रशंसा करते हुए कहा था- ‘इस सदी में दो ही महान, व्यक्तियों का प्रादुर्भाव हुआ एक नेपोलियन और दूसरी हेलेन केलर, एक बाह्य बाधाओं एवं शत्रुओं का विजेता बना और दूसरी अपनी कमजोरियों व अपंगता की विजेता बनी।’ हेलेन केलर से एक बार पूछा गया कि दृष्टिहीन होने से भी बुरा क्या हो सकता है, तब उन्होंने कहा था- ‘लक्ष्यहीन होना दृष्टिहीन होने से भी बुरा है। यदि आपको अपने लक्ष्य का पता नहीं है, तो आप कुछ नहीं कर सकते हैं।’

 

सम्मान :

दृष्टिहीनों एवं बधिरों के लिए उनके द्वारा किए गए कार्यों के लिए दुनिया भर के विश्वविद्यालयों ने उन्हें विभिन्न उपाधियाँ देकर सम्मानित किया। 14 सितम्बर, 1964 को तत्कालीन राष्ट्रपति जॉनसन ने उन्हें अमेरिका का सर्वोच्च नागरिक सम्मान प्रेसीडेण्ट मेडल ऑफ फ्रीडम तथा दो अन्य सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित किया। वर्ष 1965 में उन्हें न्यूयॉर्क विश्व मेले में नेशनल वूमेंस हॉल ऑफ फेम के लिए चुना गया। इसके अतिरिक्त, विश्व के कई देशों की सरकारों ने भी उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया।

 

देहावसान :

अक्टूबर, 1961 में उन्हें लगातार कई हृदयघातों का सामना करना पड़ा, जिसके बाद उनका सार्वजनिक जीवन लगभग समाप्त ही हो गया और 1 जून, 1968 को निद्रावस्था में उनकी मृत्यु हो गई।

 

उपसंहार :

हेलेन केलर की प्रेरक जीवनी को आधार बनाकर दुनिया भर में अब तक कई फिल्मों एवं वृत्त चित्रों का निर्माण हो चुका है। प्रतिभाशाली निर्देशक संजय लीला भंसाली कृत और सदी के महानायक अमिताभ बच्चन व रानी मुखर्जी अभिनीत बॉलीवुड की सुप्रसिद्ध हिंदी फिल्म ‘ब्लैक’ भी हेलेन केलर की ही कहानी से प्रेरित थी। यह सत्य है कि प्रकृति पर मानव का वश नहीं है, परंतु मनुष्य अपने जीवन को अपने अनुसार परिवर्तित करने के सामर्थ्य रखता है यह भी निःसंदेह सत्य है। हेलन केलर अपनी महान क्षमता के बल पर संसार को यह बता गईं कि शारीरिक असमर्थता की चुनौती देकर मनुष्य चाहे तो अपनी दुनिया को बदल सकता है।

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