दूरदर्शन : लाभ और हानि

दूरदर्शन : लाभ और हानि
Image : Parents app

प्रस्तावना :

विज्ञान के चमत्कारों में दूरदर्शन का विशेष स्थान है। देखने में तो दूरदर्शन (TV) एक बक्से की तरह होता है, किंतु इस जादुई बक्से में वह सब कुछ आप प्रत्यक्ष देख सकते हैं जो दुनिया में घटित होता है। आजकल यह मनोरंजन का सबसे सस्ता और सरल माध्यम हो गया है। सरकारें भी इस माध्यम को इतना सस्ता बना रही हैं ताकि उनकी रीति-नीतियाँ जनता तक बिना किसी रुकावट के पहुँच सकें। शुरू में इस पर प्रसारण शुल्क लगाया गया था, परंतु बाद में वह हटा लिया गया। दूरदर्शन एक प्रकार से रेडियो का ही सुधरा हुआ रूप है। रेडियो में हम केवल आवाज सुनते हैं जबकि टीवी में आवाज के साथ-साथ स्थान और लोगों की आकृति दोनों देख सकते हैं। टीवी में अब कई चैनल हैं जिनकी वजह से आप मनचाहे कार्यक्रम सुन और देख सकते हैं। आजकल एक सुविधा और हो गई है जिसकी वजह से विदेशों के कार्यक्रम घर बैठे देख सकते हैं। एक विशेष प्रकार का एँटीना लगाने से आप उक्त सुविधा प्राप्त कर सकते हैं।

 

टेलीविजन का आविष्कार एवं विस्तार :

टेलीविजन का आविष्कार करने का श्रेय जॉन बेयर्ड को दिया जाता है जो स्कॉटलैण्ड के निवासी थे। उनके द्वारा यह आविष्कार सन् 1926 में किया गया था। सन् 1936 में बी. बी. सी. लंदन से टीवी का प्रसारण शुरू हुआ। इसके आविष्कार का श्रेय यद्यपि जॉन बेयर्ड को प्राप्त हुआ है, किंतु अन्य लोगों ने भी इस आविष्कार में प्रकारान्तर से अपनी विशेष भूमिका निभाई थी। ऐसे लोगों में मोर्स, कार्लस्टाईन, प्रोटोविज, ग्राहम वैल, जगदीश चन्द्र वसु और मार्कोनी का नाम उल्लेखनीय है।

 

भारत में टेलीविजन के लाभ एवं हानि :

भारत में टेलीविजन कितना उपयोगी और लाभकारी है यदि इस पर विचार किया जाए तो पक्ष में अधिक और विरोध में कम तर्क सामने आएँगे। हमारा देश बहुत प्राचीन है। इसलिए कहा जाता है कि मिस्र, यूनान, रोम की संस्कृतियाँ मिट चुकी हैं, किंतु भारत की संस्कृति, इसकी विरासत में बाधाएँ तो आई किंतु यह टूटी नहीं, विकास में ठहराव आया, किंतु वह रुका नहीं। इसलिए यहाँ  के मंदिर ऐतिहासिक स्थल, किले, नदी, पहाड़, वन, जंगली, जीव, वनस्पतियाँ जिन्हें हर व्यक्ति नहीं देख सकता था, अब दूरदर्शन की वजह से मामूली से मामूली व्यक्ति को भी दिखाई पड़ता है कि हमारा देश कितना सुंदर कितना भव्य और कितना आकर्षक है।

 

दूरदर्शन मनोरंजन का श्रेष्ठ साधन होने के साथ-साथ कलाओं का उन्नायक भी है। दूरदर्शन में दिखाए जाने वाले नाटकों, प्रहसनों, मनोरंजक कार्यक्रमों के जरिये हमारे दूर-दराज के ग्रामवासी भी आनंदित होते हैं। जो कार्यक्रम तथा शास्त्रीय नृत्य कभी राजदरबारों तथा दरबार के विशिष्ट व्यक्तियों को सुलभ थे- अब आम जनता को सुलभ हो गए हैं। अतः दूरदर्शन के कार्यक्रमों को हम लोकरंजक कार्यक्रम कह सकते हैं। 

 

राजाओं का आश्रय समाप्त हो जाने की वजह से अनेक कलाएँ मिट रही थीं। कलाकारों की हालत चिंताजनक थी। परंतु दूरदर्शन की वजह से ऐसे कलाकारों की मांग बढ़ी है जो छोटे पर्दे पर अच्छा प्रदर्शन करने में निपुण हैं। कई स्कूल, कॉलेज, संस्थाएँ खुल गई हैं, अनेक बंद पड़े कलाकेंद्रों के कपाट खुल गए हैं तथा लोगों में नृत्य, गायन, वृन्द गायन आदि सीखने और उसमें निपुणता प्राप्त करने की रुचि बढ़ी है। दिल्ली के स्कूल ऑफ डांस एँड ड्रामा में तो अब प्रवेश लेना भी मुश्किल हो गया है। सीखने वालों की संख्या ज्यादा और सीटें कम होने की वजह यह दर्शाती है कि दूरदर्शन की वजह से देश में कलाओं के प्रति लोगों के मन में अनुराग जागा है।

 

दूरदर्शन से जहाँ  कला के क्षेत्र में चेतना जगी है, वहीं व्यापार के क्षेत्र में इसका योगदान कम नहीं है। दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले कुछ विज्ञापनों की शैली इतनी मनोरंजक होती है जिसे दर्शक बरबस देखना चाहता है। इन आकर्षणों की वजह से विज्ञापनदाताओं के उत्पादनों की बिक्री भी बढ़ जाती है। इसीलिए टेलीविजन पर विज्ञापन की दरें काफी अधिक होती हैं तथा बहुत नपा-तुला समय विज्ञापनदाताओं को दिया जाता है।

 

दूरदर्शन से हमें अपनी प्राचीन गरिमा का बोध होता है। महाभारत और रामायण की कथाएँ, नेहरू जी की लिखी भारत की खोज जैसे कार्यक्रम टीवी ने दिखाए हैं जिनकी वजह से लोगों के मन में अपनी संस्कृति के प्रति काफी अनुराग जागा है। किसी पर्व त्यौहार पर टेलीविजन पर दिखाई जाने वाली झलकियाँ तथा मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारों तथा गिरजाघरों के दृश्य भी कम रोचक नहीं होते। वनों में घूमते हुए जंगली जीव, पानी में गहरे डूबी मछलियाँ और अन्यान्य जलजीव टीवी के द्वारा ही सभी को देखने के लिए सुलभ हुए हैं।

 

टीवी हमारे स्वास्थ्य के लिए भी काफी उपयोगी है यदि हम उसमें बताए गए व्यायामों, कसरतों, आसनों आदि को स्वयं करना शुरू करें। दूरदर्शन पर विभिन्न रोगों की रोकथाम, उपचार, पहचान आदि के बारे में भी कार्यक्रम दिखाए जाते हैं जो आम जनता के लिए उतने ही उपयोगी होते हैं जितने कि एक सुबुद्ध नागरिक के लिए। टीवी के द्वारा ऐसी सूचनाएँ भी तत्काल प्रदर्शित तथा प्रसारित की जा सकती हैं जो जनता के लिए उपयोगी होती हैं अथवा जिनसे जनता को सावधान रहने की जरूरत है।

 

टीवी आज के समय में ऐसी अनोखी ईजाद है जो मानव को अनेक प्रकार के लाभ दे रही है। इन सब लाभों के होते हुए भी टीवी के अवगुणों की संख्या भी कम नहीं है। कुछ विचारकों का मत है कि टीवी, अधिक देखने से लोगों की वैयक्तिक विचारशक्ति कुंठित होने लगती है। टीवी के कार्यक्रम एक घिसी-पिटी परम्परा पर आधारित होते हैं जिनमें केवल कुछ लोगों का ही योगदान होता है। इसलिए अधिक टीवी देखने से मनुष्य की स्वतंत्र चिंतन की शक्ति में अवरोध आने लगता है जो चिंता का विषय है।

 

भारत एक निर्धन देश है। बहुत से लोग तो केवल एक कमरे अथवा कोठरी या झुग्गी में रहकर ही गुजारा करते हैं। वे टीवी तो खरीद लेते हैं, किंतु उसे जितनी दूरी से देखना चाहिए, उतनी दूरी से उसे नहीं देखते। फलतः निरंतर ऐसा करने से नेत्र-ज्योति पर अंतर आने लगता है। विशेषज्ञों का मत है कि ब्लैक एँड व्हाइट टीवी की अपेक्षा रंगीन टीवी आंखों के लिए ज्यादा हानिप्रद है। मनोवैज्ञानिकों का विचार है कि मंदमति बालकों के लिए टीवी देखना ज्यादा हानिप्रद हो सकता है। हमारे देश में मनोरंजन के सस्ते साधनों का अभाव होने के कारण रेडियो के गाने और टीवी के कार्यक्रम ही सामान्य जनता के मनोरंजन का आधार है। ‘अति सर्वत्र वर्जयेत्’ कहावत को ध्यान में रखते हुए टीवी को एक सीमा के अंदर तथा निर्धारित दूरी से देखना ही उचित माना गया है। भारतीय टीवी (दूरदर्शन) पर फिल्में दिखाने का प्रचलन बहुत ज्यादा हो गया है। इन फिल्मों के चयन में पूरी सावधानी न बरतने के कारण कभी-कभी घटिया और बचकानी फिल्में भी दूरदर्शन में दिखाई जाती हैं। कला के नाम पर देर रात को दिखाई जाने वाली फिल्मों में कभी-कभी एकरूपता को दिखाने में भी सतर्कता नहीं बरती जाती जिससे दर्शकों की मानसिकता पर कुप्रभाव पड़ता है। टीवी पर झूठे, फरेब भरे विज्ञापनों को देखकर मासूम जनता अकारण अपनी नेक कमाई बेकार की वस्तुएँ लेने के लिए व्यय करती है। विज्ञापन से पूर्व ऐसी वस्तुओं की गुणवत्ता की पूरी-पूरी जाँच की जानी चाहिए तभी उसे सरकारी माध्यम से प्रदर्शित करने की अनुमति देना उचित होगा।

 

उपसंहार :

सारांश यह है कि वर्तमान समय में दूरदर्शन की उपयोगिता बहुत अधिक है। उसके अनेक लाभ हैं, किंतु उससे होने वाली हानियाँ भी कम नहीं हैं। अच्छा हो कि दूरदर्शन हानियों से सावधान रहने के विषय में भी अपने कार्यक्रम दिखाए।

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