धनराज पिल्लै

धनराज पिल्लै
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प्रस्तावना :

हॉकी में सेंटर फारवर्ड खेलने वाले धनराज खेल में गति और स्ट्राइकिंग के शौकीन हैं। धनराज पिल्लै का नाम भारतीय खेल जगत में बड़े सम्मान और गर्व के साथ लिया जाता है। यह उस हॉकी खिलाड़ी का नाम है जिसने 1998 में बैंकाक एशियाई खेलों में दस गोल किए थे। फाइनल में भारत को जीत और 32 वर्ष बाद एशियाई हॉकी का खिताब दिलाया। 1989 में एशिया कप के अवसर पर धनराज ने अंतर्राष्ट्रीय कैरियर की शुरुआत की थी। उन्होंने पाकिस्तान के विरुद्ध दो गोल करते हुए शानदार खेल का प्रदर्शन किया। फिर इन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। धनराज पिल्लै का जीवन एक ऐसे साधारण से परिवार के लड़के का असाधारण जीवन है जिसने गरीब परिवार से निकलकर कड़ी मेहनत करके वह मुकाम हासिल किया जिस पर आज वही नहीं सारा भारत गर्व करता है।

 

जन्म एवं जीवन संघर्ष :

धनराज पिल्लै का जन्म 16 जुलाई, 1968 में खड़की (पुणे) महाराष्ट्र में हुआ। धनराज पिल्लै को पाँच बहन-भाइयों के बीच धन की कमी होते हुए भी पूरा नैतिक समर्थन मिला। उन्होंने पारिवारिक समस्या के कारण अधिक शिक्षा हासिल नहीं की। इन्होंने प्रारम्भ में अपने बड़े भाई रमेश के साथ टूटी हुई हॉकी के साथ साधारण-सी गेंद से हॉकी खेलना प्रारम्भ किया। धनराज शरीर से दुबले-पतले होते हुए भी भारतीय हॉकी टीम में तेज खिलाड़ी के रूप में उभरे। जिसे देखकर विपक्षी टीम की पंक्ति घबरा-सी जाती थी। वे सदैव अपनी टीम के लिए प्रेरणा स्रोत रहे। धनराज के परिवार का संबंध ध्यानचंद के समकालीन मरुदवनम पिल्लै से रहा। अतः धनराज की हॉकी पर मरुदवनम का प्रभाव रहना स्वाभाविक था। उन्होंने मुम्बई और अपनी कम्पनी महिंद्रा एँड महिंद्रा का राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिनिधित्व किया। शुरू-शुरू में भले ही उनके खेल में उतार-चढ़ाव आया हो लेकिन बाद में उनके खेल में अच्छा विकास हुआ।

 

खेल जीवन :

धनराज पिल्लै के लिए 1992 के बर्सिलोना ओलम्पिक और अटलांटा ओलम्पिक निराशाजनक साबित हुए। लेकिन टीम का नेतृत्व करते हुए उन्होंने मुकेश कुमार के साथ खेल का अच्छा प्रदर्शन किया। उस स्थिति में जर्मनी के विरुद्ध टेस्ट श्रृंखला में बदलाव आया।

 

1998 की टेस्ट श्रृंखला में पाकिस्तान के खिलाफ रावलपिंडी पेशावर में भारतीय टीम यह मुकाबला हार गई। लेकिन लाहौर, कराची और दिल्ली में धनराज पिल्लै ने उच्च स्तर का प्रदर्शन करते हुए भारतीय टीम में शानदार वापसी की।

 

1998 में विश्व कप के अवसर पर उनके अंगूठे में चोट लग जाने की वजह से वे पूरी तरह फिट नहीं थे। न तो क्वालालाम्पुर (मलेशिया) में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में। लोगों ने यह उम्मीद की थी फाइनल में भारत की ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ जीत होगी। लेकिन मेजबान टीम ने मौके का फायदा उठाया और भारतीय टीम हार गई। पर सन् 2000 में उसने पर्थ में भारत को चार देशों की प्रतियोगिता में जीत दिलाईं और वह युवा खिलाड़ियों समीर दाद और दीपक ठाकुर के साथ उसी तरह खेले जैसा कि उन्होंने एशियाई खेलों में मुकेश कुमार व बलजीत सिंह के साथ प्रदर्शन किया था। ऐसे ही उच्च स्तर के प्रदर्शन से विशेषज्ञों और प्रशिक्षकों ने धनराज को विश्व स्तर का खिलाड़ी माना है। उन्होंने मलेशिया, फ्रांस, जर्मनी की हॉकी टीम में भाग लेकर उच्च स्तर के खिलाड़ी होने का प्रमाण दिया है।

 

सम्मान :

धनराज पिल्लै को समय-समय पर निम्नलिखित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।

  • 1995 में उन्हें ‘अर्जुन पुरस्कार’ प्रदान किया गया।
  • 1998-99 के लिए उन्हें ‘के. के. बिरला फाउंडेशन पुरस्कार’ दिया गया।
  • 1999 में धनराज को ‘राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया।
  • वर्ष 2001 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया।

 

उपसंहार :

धनराज एक महान खिलाड़ी ही नहीं एक बेतहरीन इंसान भी थे। उनके एक और विशेषता है कि उन्हें अन्याय पसंद नहीं। इनमें भावुकता के साथ तुनक मिजाजी भी है। इसीलिए तो एशियाई खेलों की स्वर्ण पदक विजेता टीम के सात खिलाड़ियों के निकाले जाने पर धनराज ने अधिकारियों की आलोचना की और कहा कि वे अपने बच्चों को हॉकी मैदान पर नहीं देखना चाहेंगे। ऐसे ही चैम्पियन ट्राफी के दौरान 1996 में मेजबान टीम का प्रदर्शन निराशाजनक रहा। इसके फलस्वरूप दर्शकों की गलत प्रतिक्रिया से धनराज की तू-तू मैं-मैं और घूंसेबाजी भी हुई। इससे उन्हें ‘तुनक मिजाज’ और ‘गुस्सैल’ की पदवी मिली। असल में उनकी सफलताएँ और प्रतिभाएँ उनके विद्रोही स्वभाव पर खास असर नहीं डालतीं। इसके बावजूद हॉकी संघ ने उन्हें ‘साल के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी’ के सम्मान दिलाने की बात अंतर्राष्ट्रीय हॉकी संघ से की।

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