छात्र असंतोष

छात्र असंतोष
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प्रस्तावना :

अक्सर हमें यह पता चलता है कि अमुक स्थान पर छात्रों ने प्रदर्शन किया, धरना दिया, रास्ता जाम किया, ये सब छात्र असंतोष के रूप हैं। छात्र असंतोष का मूल कारण है- विद्यार्थियों का वर्तमान शिक्षा व्यवस्था, परिस्थिति अथवा शिक्षा प्रणाली से संतुष्ट न होना। विद्यार्थियों में यह असंतुष्टि किसी पाठ्यक्रम को लेकर हो सकती है। शिक्षण प्रक्रिया अथवा शिक्षक के अभाव को लेकर हो सकती है, परीक्षा के मापदंड को लेकर हो सकती है अथवा किसी अन्य कारण से हो सकती है।

 

छात्र असंतोष के कारण :

बहुत बार तो राजकीय उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रवेश न मिलने की स्थिति में विद्यार्थियों को विवश होकर निजी शिक्षण संस्थानों में प्रवेश लेना पड़ा है। निजी शिक्षण संस्थानों में प्रवेश के लिए उनसे अधिक राशि वसूली जाती है। सम्पन्न परिवारों के बच्चे तो अधिक शुल्क देकर निजी शिक्षण संस्थानों में मनपसंद पाठ्यक्रम में प्रवेश पाने में सफल रहते हैं, किंतु निर्धन विद्यार्थियों के सामने धन के अभाव में पढ़ाई छोड़ने या पारम्परिक सस्ते पाठ्यक्रमों में प्रवेश लेने के अतिरिक्त कोई अन्य विकल्प नहीं बचता। इस स्थिति में उनके भीतर स्वाभाविक रूप से शिक्षा के प्रति असंतोष की भावना उत्पन्न हो जाती है और वे सम्पूर्ण शिक्षा तंत्र को कोसने लगते हैं।

 

असंतोष की यह स्थिति धीरे-धीरे एक बहुत बड़े विद्यार्थी-समूह को अपनी गिरफ्त में ले लेती है। यह अवस्था बड़ी विकट होती है। वस्तुतः सूचना प्रौद्योगिकी के इस उन्नत युग में भी व्यावसायिक शिक्षा की अपेक्षित व्यवस्था भारत में अब तक नहीं हो पाई है। पारंपरिक शिक्षा प्राप्त कर उच्च उपाधि धारण करने के बावजूद अधिकतर विद्यार्थी किसी विशेष कार्य के योग्य नहीं होते। इसके कारण शिक्षित बेरोजगारी की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। भारत में हर वर्ष लगभग पांच लाख से अधिक विद्यार्थी अभियाँत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी की शिक्षा प्राप्त करते हैं। इनमें से अधिकतर योग्य अभियंता नहीं होते, इसलिए उनको उनकी डिग्री के अनुरूप नौकरी नहीं मिल पाती। इस स्थिति में उनका असंतुष्ट होना स्वाभाविक हैl

 

शिक्षा के निजीकरण के कारण उच्च शिक्षा प्रदान करने वाली शिक्षण संस्थाओं की बाढ़ तो आ गई है, किंतु इन संस्थानों में विद्यार्थियों का अत्यधिक शोषण होता है। यहाँ  शिक्षा के लिए पर्याप्त संसाधनों का भी अभाव होता है। विद्यार्थियों द्वारा विरोध किए जाने पर उन्हें संस्थान से निकाले जाने की धमकी दी जाती है। निजी शिक्षण संस्थानों को चलाने वाले व्यवसायियों की पहुंच ऊपर तक होती है, इसलिए उनकी शिकायत का कोई भी परिणाम नहीं निकलता। अतः विद्यार्थियों के पास कुंठित होकर अपनी किस्मत को कोसने के अलावा और कोई रास्ता शेष नहीं बचता।

 

राजकीय शिक्षण संस्थानों में भी शिक्षकों एवं कर्मचारियों की मनमानी का खामियाजा विद्यार्थियों को भुगतना पड़ता है। शिक्षक एवं शिक्षण संस्थान के कर्मचारी अपनी बात मनवाने के लिए हड़ताल पर चले जाते हैं। इससे शिक्षा तो बाधित होती ही है, साथ ही विद्यार्थियों का बहुमूल्य समय भी नष्ट होता है। विरोध या बहिष्कार की स्थिति में उन्हें अनुत्तीर्ण करने की धमकी दी जाती है। सरकारी उच्च संस्थानों में ऐसी स्थिति छात्र असंतोष का कारण बनती है।

 

शिक्षा जीवनभर चलने वाली एक प्रक्रिया है, इसलिए समाज एवं देश के हित के लिए इसके उद्देश्य का निर्धारण आवश्यक है, चूंकि समाज एवं देश में समय के अनुसार परिवर्तन होते रहते हैं, इसलिए शिक्षा के उद्देश्यों में भी समय के अनुसार परिवर्तन होते हैं। उदाहरण के लिए, वैदिक काल में वेद मंत्रों की शिक्षा को पर्याप्त कहा जाता था, किंतु वर्तमान समय में मनुष्य के विकास के लिए व्यावसायिक शिक्षा पर जोर दिया जाना चाहिए। यद्यपि पिछले कुछ वर्षों में देश में व्यावसायिक शिक्षा के क्षेत्र में प्रगति देखने को मिली है, किंतु यह अभी तक पर्याप्त नहीं है।

 

इस कारण अधिकतर विद्यार्थी पारम्परिक पाठ्यक्रमों के लिए बाध्य हैं। ये पाठ्यक्रम वर्तमान समय की मांग के अनुरूप नहीं हैं, ऐसे पाठ्यक्रमों से उच्च शिक्षा प्राप्त विद्यार्थियों के सामने भविष्य में रोजगार प्राप्त करने की समस्या खड़ी रहती है, इसलिए उनका ऐसी शिक्षा व्यवस्था से विश्वास उठना स्वाभाविक ही है।

 

कुछ स्वार्थी राजनीतिक दल विद्यार्थियों को अपने साथ मिलाकर अपना उल्लू सीधा करने में जुटे रहते हैं, इसलिए वे शिक्षण संस्थानों में राजनीति को बढ़ावा देते हैं। इसके कारण देश के कुछ प्रसिद्ध शिक्षण संस्थान राजनीति के अखाड़े का रूप लेते जा रहे हैं। ऐसी स्थिति में पढ़ाई बाधित तो होती ही है, साथ ही विद्यार्थियों में शिक्षा के प्रति असंतोष की भावना उत्पन्न होती है।

 

इस तरह, बेरोजगारी का डर, पारम्परिक शिक्षा का वर्तमान समय के अनुरूप न होना, व्यावसायिक शिक्षा प्रदान करने वाली स्तरीय शिक्षण संस्थाओं का अभाव, शिक्षण संस्थाओं को राजनीति का केंद्र बनाया जाना, शिक्षकों एवं कर्मचारियों का अपने कर्तव्यों से विमुख होना, निजी शिक्षण संस्थाओं की मनमानी इत्यादि भारत में छात्र असंतोष के कारण हैं।

 

छात्र असंतोष से हानियाँ :

यदि छात्रों का भला नहीं हो पाया, यदि वे बेरोजगारी का दंश झेल रहे हैं, यदि उनके साथ नाइंसाफी हो रही है, यदि उनके भविष्य से खिलवाड़ हो रहा हो, तो देश का भला कैसे हो सकता है। निःसंदेह इसके कारण देश की आर्थिक ही नहीं, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक प्रगति पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। इसलिए समय रहते इस समस्या का निदान करना आवश्यक है।

 

उपसंहार :

छात्र असंतोष को दूर करने के लिए सबसे पहले देश की शिक्षा व्यवस्था में सुधार कर इसे वर्तमान समय के अनुरूप करना होगा। इसके लिए व्यावसायिक शिक्षा प्रदान करने वाले शिक्षण संस्थानों की स्थापना पर्याप्त संख्या में करनी होगी। इसके अतिरिक्त, राजनीति को शिक्षा से दूर ही रखना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि इन संस्थाओं में शिक्षक एवं कर्मचारी अपनी मनमानी कर विद्यार्थियों का भविष्य चौपट न कर पाएं।

 

इसके अलावा ऐसी निजी शिक्षण संस्थाएं, जहाँ  विद्यार्थियों एवं अभिभावकों का अत्यधिक आर्थिक शोषण हो रहा है, वहाँ  उचित कार्यवाही करते हुए स्थिति में तुरंत सुधार किया जाना चाहिए। इन सबके अतिरिक्त, छात्रों को रचनात्मक कार्यों की ओर मोड़कर भी छात्र असंतोष को काफी हद तक कम किया जा सकता है।

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