भारतीय संस्कृति की विशेषताएँ
प्रस्तावना :
पुराणों के कथनानुसार – ‘संयम संस्कृति का मूल है। विलासिता, निर्बलता और अनुकरण के वातावरण में न संस्कृति का उद्भव होता है और न विकास का। संयम ही में नई संस्कृतियों को उत्पन्न करने की सामर्थ्य है। साहित्य, स्थापत्य और विविध धर्म विधियाँ संयम की अनुगामिनी हैं।’
भारतीय संस्कृति अपनी प्राचीनता के लिए ही नहीं बल्कि अपने जीवन-आदर्शों के लिए भी प्रसिद्ध है। इस संस्कृति में कुछ ऐसी विशेषताएँ हैं जिन्होंने इसे अजर-अमर बना दिया है। यह धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक और आध्यात्मिक पक्षों का उद्घाटन करती है। आध्यात्मिक तत्त्वों का पोषण करने वाली संस्कृति ही अजर-अमर बन सकती है। पाश्चात्य संस्कृति में भौतिकता की प्रधानता है, इसलिए वह संस्कृति शाश्वत संस्कृति की नहीं कही जा सकती। इकबाल ने ठीक ही कहा है –
यूनान, मिस्र, रोमां सब मिट गए जहाँ से,
अब तक मगर है बाकी, नामो निशां हमारा।
भारतीय संस्कृति की विशेषता:
भारतीय संस्कृति की सर्वप्रमुख विशेषता समन्वय की भावना है। अनेकता में एकता का संदेश भारतीय संस्कृति की महत्त्वपूर्ण देन है। यही कारण है कि भारत में ऊपरी भिन्नता होते हुए भी भीतरी एकता विद्यमान है। यह ऊपरी भिन्नता वातावरण एवम् परिस्थितियों की भिन्नता के कारण है। यहाँ कहीं घने जंगल हैं तो कहीं बर्फ से लदे हुए ऊंचे-ऊंचे पर्वत हैं, कहीं रेगिस्तान है तो कहीं लहलहाते हरे-भरे खेत हैं। अलग-अलग वातावरण में रहने के कारण यहाँ के निवासियों की वेश-भूषा, खान-पान, भाषा तथा रीति-रिवाजों में भी भेद पाया जाता है। इस भिन्नता के होते हुए भी यहाँ के वासी अपने आपको भारतवासी ही कहते हैं। इसका कारण यह है कि यहाँ के लोग धर्म, कर्म, लोक-परलोक तथा सभी देवी देवताओं में समान रूप से विश्वास रखते हैं। यह विश्वास सभी भारतवासियों को एक दूसरे के निकट लाता है। भारतीय संस्कृति समानता तथा अपनत्व का संदेश देती है। हमारे प्राचीन महापुरुषों, पीर-पैगम्बरों तथा भक्त कवियों ने भी समानता के पथ पर बढ़ने का संदेश दिया है। इस संस्कृति में विदेशियों को भी अपना बना लेने की क्षमता है। यही कारण है कि यहाँ जो गुरु बनकर आया वह अंत में शिष्य बनकर लौट गया। मानवतावाद का संदेश भारतीय संस्कृति की अन्य उल्लेखनीय विशेषता है। इसका मूल सिद्धांत है ‘जीयो और जीने दो’। यह सहज मानवीय स्नेह सम्बंधों के आधार पर सारे विश्व को अपने साथ बांध लेना चाहती है। दक्षता, क्षमता, सहनशीलता, यश, परोपकार, अहिंसा, उदारता आदि मानवीय गुणों की देन में भारतीय संस्कृति का ही हाथ रहा है। अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण भारत आज भी विश्व के मंच पर अपनी गरिमा बनाए हुए है।
भारतीय संस्कृति देश-भक्ति तथा नैतिकता का पाठ भी पढ़ाती है। यह आदर्श चरित्र के निर्माण पर बल देती है। यह स्वतंत्र विचार-पद्धति को महत्त्व देकर मनुष्य के स्वतंत्र विकास में सहायता देती है। यह सामाजिक जिम्मेदारियों के निर्वाह के लिए प्रेरणा देती है।
भारतीय संस्कृति चमक-दमक से दूर रहकर ‘सादा जीवन उच्च विचार’ का पाठ पढ़ाती है।
भारतीय संस्कृति वर्णव्यवस्था की योजना द्वारा समाज को चार भागों में विभक्त कर प्रत्येक व्यक्ति की सामाजिक स्थिति और अस्तित्व की घोषणा करती है। यह विभाजन व्यवस्था प्रत्येक व्यक्ति की कार्य-दिशा निश्चित कर उसे अपनी योग्यता के प्रदर्शन का अवसर प्रदान करती है। यह संस्कृति मानव जीवन के समन्वय का सार है। हमारे चिंतन के क्षेत्र में जो दर्शन है और कर्म के क्षेत्र में जो विचार है, वह सभी संस्कृतियों का स्वरूप निर्धारित करने में सहायक है। यह देश विभिन्न संस्कृतियों का संगम स्थल भी है।
उपसंहार :
आज के बढ़ते हुए भौतिकवाद ने विश्व में अशांति पैदा कर दी है। स्वार्थ की भावना चरम सीमा पर पहुंच गई है। आज लगता है कि संसार पतन के कगार पर खड़ा है। ऐसी भयानक स्थिति से उबारने वाला एकमात्र साधन भारतीय संस्कृति है क्योंकि भारतीय संस्कृति विश्व शांति का संदेश देती है।
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