भारत-बांग्लादेश संबंध
प्रस्तावना :
भारत के पूर्व में स्थित बांग्लादेश पहले पूर्वी पाकिस्तान के नाम से जाना जाता था। यह पहले पाकिस्तान का ही हिस्सा था, लेकिन पाकिस्तानी सरकार के तानाशाही रवैये के कारण तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान को दमन का शिकार होना पड़ा। उस समय बहुत सारे बांग्लादेशियों ने भारत में शरण ली। तब मजबूरन भारत को सैन्य हस्तक्षेप करना पड़ा। भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और अंतर्राष्ट्रीय जगत् के सम्मिलित प्रयासों द्वारा 6 दिसंबर, 1971 को बांग्लादेश को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता प्राप्त हुई। यद्यपि जनसंख्या के दृष्टिकोण से बांग्लादेश विश्व का दूसरा सबसे बड़ा मुस्लिम देश है, लेकिन यह आर्थिक रूप से काफी पिछड़ा हुआ है, इसलिए भारत बांग्लादेश को यथासम्भव सहयोग प्रदान करता है।
भारत बंग्लादेश के संबंधों में सुधार उल्लेखनीय है कि बांग्लादेशवासी भारत को ‘बड़े भाई’ की भूमिका में देखते हैं, फिर भी अगस्त, 1975 तक भारत-बांग्लादेश संबंध अधिक घनिष्ठ नहीं थे। बाद में बांग्लादेश में आवामी लीग के सत्ता में आने से दोनों देशों के संबंधों में गरमाहट आई। दिसम्बर, 1997 में दोनों देशों के मध्य 30 साल तक के लिए गंगा नदी के जल बंटवारे पर समझौता हुआ। इसमें दोनों देशों की ओर से बाढ़ की चेतावनी और तैयारियों के मुद्दे पर भी सहयोग करने की बात हुई। वर्तमान समय में, दोनों देशों के बीच मैत्री संबंध तो अवश्य है, लेकिन कुछ मुद्दों पर विवाद की स्थिति बनी हुई है। बांग्लादेश समय-समय पर पडुआ और न्यू मूर द्वीप पर अपना दावा करता रहता है, जोकि वर्ष 1971 से पूर्व से ही भारत के नियंत्रण में थे।
इसके अलावा, गंगा नदी के पानी की साझेदारी और बंगाल की खाड़ी के अधिकारिक क्षेत्र पर भी दोनों में विवाद रहता है। इन सबके अतिरिक्त, बांग्लादेश में उल्फा जैसे आतंकवादी संगठन भी सक्रिय हैं, जिनके माध्यम से पाकिस्तान की आई. एस.आई. संस्था भारत में आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देती है। एक अनुमान के अनुसार, भारत में 20 लाख से भी अधिक बांग्लादेशी अवैध रूप से रह रहे हैं।
भारत जब भी इस समस्या को उठाता है तो बांग्लादेश की ओर से यही उत्तर मिलता है कि भारत में एक भी बांग्लादेशी प्रवासी नहीं है। इस समस्या के हल के लिए वर्ष 2002 में भारत ने 2,500 मील से अधिक लम्बी सीमा पर बाड़ लगवाई, परंतु इससे भी कोई विशेष लाभ नहीं हुआ। कुल मिलाकर देखा जाए तो सांस्कृतिक रूप से समानता होते हुए भी दोनों देशों के बीच कुछ विवादित मुद्दे हैं, लेकिन उन्हें बातचीत के जरिये सुलझाया जा सकता है।
भारत द्वारा सहायता :
अभी हाल ही में जून, 2014 भारतीय विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज ने बांग्लादेश के साथ संबंधों को सकारात्मक दिशा देते हुए ‘मैत्री एक्सप्रेस रेल’ की आवृत्ति बढ़ाने, ढाका से गुवाहाटी और शिलांग तक बस सेवा आरंभ करने, बांग्लादेश को त्रिपुरा से 100 मेगावाट बिजली उपलब्ध कराने तथा वहाँ एक विशेष आर्थिक जोन के विकास करने की घोषणा की है। इस दौरान बांग्लादेश के विदेश मंत्री श्री अबुल हसन महमूद अली ने कहा था – ‘बांग्लादेश भारत का नम्बर एक मित्र बनना चाहता है और देश में विशेष आर्थिक क्षेत्र बनाने और ऑटोमोबाइल, ऊर्जा व उत्पादन के क्षेत्र में निवेश करने के लिए भारतीय कम्पनियों को आमंत्रित करता है।’
उपसंहार :
कभी बंगाल का ही एक भाग रहे बांग्लादेश की मौलिक संस्कृति आज भी बंगाली है। बावजूद इसके कि कुछ अतिवादी लोग धार्मिक आधार पर भारत विरोध का झंडा बुलंद करते हैं; बांग्लादेशी आम जनता भारत के प्रति एक जुड़ाव को महसूस करती है। यही भारत और बांग्लादेश के बीच के संबंधों की आधारशिला है। हमें विश्वास है कि आने वाले समय में दोनों देशों के बीच संबंध निश्चित तौर पर बेहतर ही होंगे।
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