भारत-अफगानिस्तान संबंध
प्रस्तावना :
ऐतिहासिक रूप से भारत और अफगानिस्तान के बीच मजबूत और मैत्रीपूर्ण संबंध रहे हैं। महाभारत काल में कौरवों की माता गांधारी आधुनिक अफगानिस्तान की राजकुमारी थीं। पिछले कुछ दशकों से अफगानिस्तान में तालिबान का आतंक रहा है। तालिबानी आतंकवादी हमारे दो राजनयिकों की हत्या कर चुके हैं। वर्ष 2013 में आतंकवादियों ने अफगानिस्तान में रह रही भारतीय लेखिका सुष्मिता बनर्जी को भी अपना शिकार बनाया था। भारत एकमात्र दक्षिण एशियाई देश है, जिसने तालिबान के उन्मूलन के लिए किए गए सोवियत रूस के सैन्य अभियान का समर्थन किया था। इस समय भारत, अफगानिस्तान के विकास के लिए मानवतावादी दृष्टिकोण पर उसे आर्थिक और सैन्य सहायता उपलब्ध करा रहा है।
भारत-अफगान बढ़ते संबंध :
अफगानिस्तान भारत को अपना ‘भाई-राष्ट्र’ मानता है। इस समय भारत अफगानिस्तान में सबसे बड़ा क्षेत्रीय निवेशक है और उसके पुनर्निर्माण के लिए सबसे अधिक प्रतिबद्ध है। बहुत सारे भारतीय कामगार और भारतीय सेना का कुछ भाग अफगानिस्तान में बड़े पैमाने पर सड़क मार्ग, रेलमार्ग, अस्पताल, स्कूल आदि के निर्माण कार्यों में संलग्न है। अफगानिस्तान में भारत के शांति प्रयासों को संयुक्त राष्ट्र संघ भी सराहनीय मानता है। वर्तमान समय में अमेरिकी सेना आईएसएफ अफगानिस्तान में शांति कायम रखने में महत्त्वपूर्ण योगदान दे रही है, पर अमेरिका अब अपनी सेना की इस टुकड़ी को अपने देश लौटाना चाहता है। हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी का कहना है कि अमेरिका को वहाँ से अपनी सेना को धीरे-धीरे चरणबद्ध ढंग से हटाना चाहिए, ताकि वहाँ लोकतंत्र की जड़ें मजबूत हो सकें। श्री मोदी ने सितम्बर, 2014 में श्री अहमद जई के अफगानिस्तान के राष्ट्रपति निर्वाचित होने पर पूरा सहयोग करने का वादा किया है।
उपसंहार :
भारत-अफगानिस्तान संबंध का महत्व दक्षिण एशिया में शांति के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। वैसे भी इन दोनों ही देशों की सांस्कृतिक विरासत बहुत हद तक एक रही हैं। हमारी यही विरासत हमारे संबंधों का आधार है।
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