बाढ़ की विभीषिका

बाढ़ की विभीषिका
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प्रस्तावना :

जलप्लावन की स्थिति इतनी भयावह होती है कि देखने वालों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं चारों ओर प्रलय का दृश्य, खेत-के-खेत बहे जा रहे हों, मरे हुए मवेशियों की लाशें डूबती-उतराती नजर आ रही हों, लोग अपनी जान बचाने के लिए सुरक्षित स्थान की तलाश में पानी में तैरते हुए नजर आ रहे हों, ये दृश्य बाढ़ की विभीषिका को दर्शाने के लिए पर्याप्त हैं। कहा भी जाता है- ‘अग्नि सिर्फ जलाती है जमीन छोड़ देती है परंतु पानी तो जमीन ही निगल लेती है। अपेक्षित वैज्ञानिक प्रगति के बावजूद प्राकृतिक आपदाओं से मानव अब तक भी पूरी तरह पाने में कितना अक्षम रहा है, इसका प्रत्यक्ष उदाहरण बाढ़ के दौरान दिखाई पड़ता है।

 

बाढ़ का तात्पर्य :

बाढ़ की विभीषिका के बारे में बात करने से पूर्व यह जान लेना आवश्यक है कि बाढ़ वास्तव में है क्या? दरअसल, जब बरसात के मौसम में नदियों के जलस्तर में वृद्धि होती है, तो इसके कारण बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। नदियों का पानी तीव्र वेग के साथ निचले इलाकों में भर जाता है। नदियों के आसपास के क्षेत्रों में भी पानी जमा हो जाता है। नदी के आस-पास के क्षेत्रों में पानी जमा होने की यह स्थिति ही बाढ़ कहलाती है। हर वर्ष जून से सितम्बर के महीने तक भारत में अत्यधिक वर्षा होती है, इसलिए इसी अवधि के दौरान देश के अधिकतर हिस्सों में बाढ़ का कहर देखने को मिलता है।

 

बाढ़ का भयावह दृश्य :

बाढ़ की विभीषिका बहुत ही भयावह होती है। बाढ़ की विभीषिका का दृश्य बहुत भयावह होता है। चारों ओर अफरा-तफरी का माहौल होता है। लोग अपनी जान बचाने का विफल प्रयास करते नजर आते हैं। चारों ओर जल-जमाव हो जाने के कारण पानी में तैरते हुए उनके लिए भागना कठिन हो जाता है। जल-प्रवाह तेज होने या नदियों के तटबंधन टूटने से आई बाढ़ में लोगों को अपनी जान बचाने का भी मौका नहीं मिलता। मिट्टी तथा खपरैल से बने घर ताश के पत्तों की तरह बाढ़ के पानी में बहते नजर आते हैं। चारों ओर चीख-पुकार की आवाजें सुनाई देती हैं। लोग जान बचाने के लिए ऊंचे स्थानों की शरण लेते नजर आते हैं। कोई ऊँचा स्थान न मिलने की स्थिति में लोगों को पेड़ों पर भी शरण लेने को विवश होना पड़ता है। खुले आसमान के नीचे बाढ़ग्रस्त इलाके में रहना मौत को दावत देने जैसा ही होता है।

 

ऐसी विपदा की स्थिति में नदी में जान बचाने के लिए तैरते सांप दुख एवं भय को और बढ़ा देते हैं। सरकार द्वारा लोगों को बचाने के लिए नावों एवं हेलीकॉप्टरों से खाद्य-सामग्री उन तक पहुँचाने का जो प्रबंध किया भी जाता है वह पर्याप्त नहीं होता। लोग इन खाद्य सामग्रियों पर जानवरों की भांति टूट पड़ते हैं। इस तरह, बाढ़ की विभीषिका मानव को पशु बनने के लिए विवश कर देती है। लोग अपनी जान बचाने के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं।

 

जहाँ एक ओर बाढ़ अपने साथ कहर लाती है, वहीं बाढ़ से एक लाभ भी है। इसके साथ आने वाली उपजाऊ मिट्टी से नदियों के आसपास का क्षेत्र उर्वर हो जाता है, किंतु यह लाभ इससे होने वाली हानियों की तुलना में नगण्य है। इससे होने वाली हानियों की क्षतिपूर्ति करना बाद में काफी कष्टदायी होता है।

 

बाढ़ से हानि :

बाढ़ से धन-जन की अपार हानि होती है। सड़कें टूट जाती हैं। रेलमार्ग अवरुद्ध हो जाता है। सड़कों एवं रेलमार्गों के अवरुद्ध होने से यातायात एवं परिवहन बाधित होता है, जिससे जन-जीवन ठप्प हो जाता है। इस तरह, एक तरफ तो लोग बाढ़ से परेशान रहते हैं, ऊपर से उन तक खाद्य सामग्री की पहुँच भी मुश्किल हो जाती है। बाढ़ के कारण लाखों एकड़ क्षेत्र की फसल बर्बाद हो जाती है। 

 

बाढ़ में मवेशियों के बह जाने से पशु संसाधन की हानि तो होती ही है, साथ-ही-साथ कृषि पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। बाढ़ में तटबंध टूटने की स्थिति में बड़ी-बड़ी बस्तियाँ अचानक उजड़ जाती हैं। इस तरह बाढ़ के कारण लोगों को अपने घरों तक से हाथ धोना पड़ता है। इसके कारण लोग विस्थापित हो जाते हैं।

 

बाढ़ के उतर जाने पर भी अनेक प्रकार की समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं। घास एवं झाड़ियों के सड़ जाने एवं मवेशियों के मरने से संक्रामक बीमारियों के फैलने का खतरा बन जाता है। लाखों लोग अपना घर-बार पहले ही गंवा चुके होते हैं। फसलें बर्बाद होने से किसानों के सामने रोजी-रोटी की समस्या उत्पन्न हो जाती है। बाढ़ के दौरान टूटी हुई सड़कों एवं रेलमार्गों को ठीक करने में काफी समय लगता है, तब तक उस क्षेत्र का यातायात एवं परिवहन ठप्प ही रहता है। इस तरह, बाढ़ का प्रकोप बाढ़ के बाद भी लोगों को प्रभावित करता है।

 

भारत में बाढ़ से प्रभावित राज्य एवं बाढ़ की समस्या से मुक्ति पाने के प्रयास :

भारत में लगभग हर राज्य किसी-न-किसी रूप में बाढ़ से प्रभावित है, किंतु बिहार राज्य बाढ़ से सर्वाधिक प्रभावित राज्य है। यहाँ हर साल बाढ़ आती है, जिससे धन-जन की अपार हानि होती है। वर्ष 1954 से चल रहे राष्ट्रीय बाढ़ नियंत्रण कार्यक्रम के बावजूद अभी तक एक प्रभावकारी बाढ़ नियंत्रण प्रणाली विकसित नहीं की जा सकी है।

 

अभी तक बाढ़ नियंत्रण के कई पारम्परिक उपाय आजमाए जा चुके हैं, जैसे – नदियों के प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए तटबंधों का निर्माण और नियंत्रित दर से पानी की निकासी के लिए जलाशयों का निर्माण। प्रायः देखा जाता है कि बाढ़ को नियंत्रित करने वाले इन जलाशयों में पनबिजली उत्पन्न करने के लिए तथा अधिक कृषि क्षेत्र को सिंचाई उपलब्ध करवाने के उद्देश्य से अधिक-से-अधिक पानी का संचय किया जाता है। इसके कारण कभी-कभी जल स्तर अत्यधिक बढ़ जाता है, तो तटबंध के टूटने की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इस तरह बाढ़ की समस्या से निपटने का उपाय ही उस समस्या का एक कारण बन जाता है।

 

बाढ़ पर नियंत्रण के उद्देश्य से नदियों के किनारे तटबंधन एवं बांध बनाए जाते हैं। कभी-कभी इन तटबंधों एवं बांध के कारण बाढ़ का प्रभाव अधिक खतरनाक हो जाता है। जब जलस्तर अधिक हो जाता है एवं नदी के प्रवाह में तीव्रता आ जाती है, तो तटबंध भी पानी को नियंत्रित नहीं रख पाते और तटबंधों के टूटने से अचानक आई बाढ़ का कहर और भी खतरनाक हो जाता है।

 

पर्यावरणविदों एवं वैज्ञानिकों के अनुसार, बाढ़ की समस्या का सबसे अच्छा समाधान होता है- नदी के पानी को नियंत्रित करने की बजाय उसे उसके सही रास्ते पर जाने दिया जाना। पानी को नियंत्रित करने का प्रयास ही अधिक खतरनाक होता है।

 

उपसंहार :

यदि पानी का स्तर सामान्य है, तब तो बाढ़ पर नियंत्रण करने के ये उपाय कारगर होते हैं, किंतु पानी के प्रवाह में तीव्रता एवं अत्यधिक जलस्तर की स्थिति में ये उपाय किसी काम के नहीं होते। नदियों को जोड़ने की प्रस्तावित योजना को कार्यरूप देने से इस समस्या का काफी हद तक समाधान हो सकेगा। यदि बाढ़ जैसी आपदा पर प्रभावी नियंत्रण हो जाए, तो धन-जन की अपार क्षति के साथ-साथ कृषि क्षेत्र में होने वाले नुकसान से भी बचाव हो सकेगा और देश समृद्ध होगा।

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