अंतर्जातीय विवाह
प्रस्तावना :
विवाह एक सामाजिक और कुछ अर्थों में धार्मिक संस्था है। इस संस्था का उद्गम मानव समाज की प्रगति के प्रारंभिक दौर में हुआ। विभिन्न समय और कालों में बदलती परिस्थितियों के साथ चाहे इसका स्वरूप भिन्न रहा हो, परंतु इसमें कोई संदेह नहीं है कि इसका मौलिक उद्देश्य सामाजिक संरचना को मजबूत करना और पारिवारिक-व्यवस्था को मजबूती प्रदान करना है। आज भी जनजातीय, पारम्परिक और आधुनिक समाज में विवाह के स्वरूप भिन्न हैं, परंतु विवाह का आधार अपरिवर्तनीय है। अंतर्जातीय विवाह से तात्पर्य एक ऐसे विवाह से है जिसमें भिन्न जाति समूह के पुरुष और स्त्री परिवार नामक संस्था को गठित करने के लिए एक-दूसरे को अपने जीवनसाथी के रूप में स्वीकार करते हैं।
प्राचीनतम समाज में अंतर्जातीय विवाह का स्वरूप :
प्राचीनतम समाज में अंतर्जातीय विवाह को सामाजिक मान्यता प्राप्त थी। यदि यह कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि अंतर्जातीय विवाह का प्रचलन ही प्राचीनतम काल में विवाह की एक सर्वमान्य विधि गंधर्व विवाह से हुआ। सम्राट भरत जिनके संदर्भ में यह माना जाता है कि उनके नाम पर ही हमारे देश का नाम भारत पड़ा के माता-पिता दुष्यंत और शकुंतला का विवाह भी इसी प्रकार का विवाह था। ऐसे अनेक विवाहों के प्रमाण हमें प्राचीन भारतीय समाज में मिलते हैं जिनसे यह स्पष्ट होता है कि प्राचीन भारतीय समाज में अंतर्जातीय विवाह सामाजिक रूप से सर्वमान्य था।
अंतर्जातीय विवाह के कारण :
जब एक पुरुष एक नारी को अपने आत्मीय के रूप में आजीवन साथ रखना चाहता है अथवा दोनों साथ रहने का निर्णय लेते हैं तो विवाह इसका एकमात्र विकल्प होता है। यदि दोनों भिन्न समुदाय से हैं तो यह अंतर्जातीय विवाह कहा जाता है। समाज में मान्यता न मिलने तथा एक व्यवस्थित ढांचा न होने के बाद भी आज अंतर्जातीय विवाह का प्रचलन बढ़ा है और पहले की अपेक्षा अंतर्जातीय विवाह अधिक हो रहे हैं तथा इसके विरोध की गहनता भी काफी हद तक छंट रही है। शिक्षा, दूर-संचार माध्यमों की सुविधा व आवागमन की सुविधा के कारण प्राप्त सम्पर्क सुविधा ने इस क्षेत्र का अधिक प्रसार किया है तथा इस प्रकार की वैवाहिक नातेदारी को निर्मित करने में सहायता प्रदान की है।
अंतर्जातीय विवाह के लाभ :
निःसंदेह वर्तमान समय में बदलती हुई सामाजिक व्यवस्था में अंतर्जातीय विवाह के अनेक लाभ हैं जिनमें से कुछ लाभों को निम्नांकित रूप से देखा जा सकता है-
१. जातिवाद का भेदभाव दूर होना : जातिवाद भारत की अनेक कुरीतियों में एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण एवं घातक कुरीति है। अंतर्जातीय विवाह से जातिवाद का भेदभाव दूर होता है, जो देश के लिए निश्चित रूप से अत्यंत लाभदायक है। यह जीवन की कुंठाओं के घेरे से निकलकर जाति-पाति के भेदभाव से दूर विशालता की ओर ले जाने वाला वह मार्ग है जिस पर चलकर हम जातिवादी व्यवस्था से परे एक समाज का निर्माण करने में सफल हो सकते हैं।
२. जीवन साथी के चुनाव में व्यापकता : अंतर्जातीय विवाह सौहार्द एवं प्रेम का सूचक है। यह सुयोग्य जीवनसाथी के चुनाव में एक अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है, क्योंकि एक ही जाति के छोटे से दायरे से बाहर आकर जीवनसाथी के चुनाव के लिए एक व्यापक एवं बृहद समाज उपलब्ध होता है।
३. बौद्धिक उपलब्धि : कुछ बीमारियाँ आपस में रक्त संबंधियों से विवाह करने से होती हैं। अंतर्जातीय विवाह करने से अपने संबंधियों तथा गोत्र में विवाह करने से होने वाली बीमारियों से बचा जा सकता है तथा बहुत हद तक इसको कम किया जा सकता है। एक सर्वेक्षण में यह भी सामने आया है कि अंतर्जातीय विवाह से उत्पन्न बालकों का आईक्यू अधिक होता है।
४. पर्दा प्रथा की समाप्ति : पर्दा प्रथा भी हमारे समाज की एक व्यापक कुरीति है। अंतर्जातीय विवाह से आपसी मेलजोल बढ़ता है जिससे इस कुरीति को समाप्त करने में मदद मिलती है।
५. विधवा विवाह को प्रोत्साहन : आज भी हमारे भारतीय समाज में विधवा विवाह को सामाजिक स्वीकृति खुले मन से नहीं मिली है। अतः अंतर्जातीय विवाह से – दूसरी जातियों जहाँ यह स्वीकार किया जाता है से संबंध जुड़ने के कारण-विधवा विवाह अपेक्षाकृत अधिक सरल और स्वीकारणीय होता है।
६. दहेज प्रथा की समाप्ति : अंतर्जातीय विवाह दो हृदय को एक सूत्र में बांधने वाला बंधन है जहाँ केवल भावों और प्राकृतिक विचारों का पुंज होता है। यह विवाह धन के लालची और आर्थिक कुंठाओं से ग्रसित लोगों के लिए एक सबक है।
७. बाल विवाह पर पाबंदी : बाल विवाह हमारे देश का घुन है जो ग्रामीण परिवेश में अधिक पाया जाता है। इस विचारधारा से बाहर निकलने के लिए नवीनीकरण की अत्यंत आवश्यकता है। अंतर्जातीय विवाह जीवन साथी को अपने ढंग तथा अपनी पसंद से चुनने में सहायक है। निर्णय लेने की क्षमता परिपक्वता से ही आती है अतः निःसंदेह अंतर्जातीय विवाह बाल विवाह पर एक मजबूत प्रहार है।
अंतर्जातीय विवाह में आने वाली समस्याएँ :
अंतर्जातीय विवाह में सबसे बड़ी समस्या है तथाकथित श्रेष्ठता का मिथ्याभिमान; हमारी सामाजिक व्यवस्था ऐसी है कि हम निरर्थक रूप से अपने मिथ्याभिमान में भरकर अपना ही अहित करते रहे हैं। सर्वप्रथम तो प्रत्येक व्यक्ति अपनी ही जाति में विवाह करने को अपना सम्मान समझता है। यदि कोई अंतर्जातीय विवाह को स्वीकार भी करता है तो वह अपेक्षाकृत उच्चतर जाति में विवाह करना चाहता है। वह प्रगतिशील तो बनना चाहता है, परंतु अपने से निम्नतर जाति में विवाह करके नहीं। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि हमारा मिथ्याभिमान अंतर्जातीय विवाह में आने वाली सबसे बड़ी बाधा है।
उपसंहार :
आज समाज परिवर्तन की ओर है, ऐसे में यह आवश्यक है कि हम विचारशील हों और नवयुग की आहट को समझकर अपने मिथ्याभिमान का परित्याग करें और सामाजिक कुरीतियों को नष्ट करने के लिए नवीन मार्गों का अनुसंधान करें। अंतर्जातीय विवाह की तुलना वनस्पति जगत में होने वाले क्रास पोजिशन से की जा सकती है। जिसके परिणामस्वरूप उत्पन्न प्रजाति अधिक उन्नत और श्रेष्ठ होती है। अतः जैविक दृष्टि से स्वस्थ एवं अधिक संतति उत्पन्न करने में अंतर्जातीय विवाह से सहायता मिलती है, परंतु यहाँ हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि पशुओं में यह नियम नहीं है।
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