अहिंसक भारत में हिंसा का दौर
प्रस्तावना :
भारतीय जनमानस सदा से शांति और अहिंसा का पुजारी रहा है।
भगवान बुद्ध, महावीर स्वामी और महात्मा गांधी ने सारे विश्व को शांति और अहिंसा का उपदेश दिया है। अहिंसा के द्वारा ही भारत ने स्वतंत्रता प्राप्त की। भारत में अहिंसा को परम धर्म माना गया है। इतिहास साक्षी है कि भारत ने कभी भी अपनी सीमाओं को बढ़ाने के लिए हिंसा का सहारा नहीं लिया। यह अलग बात है कि अहिंसक भारत की भूमि पर अनेक आक्रमणकारियों ने हिंसा का तांडव किया। पहले मुगलों ने फिर अंग्रेजों ने हिंसा के सहारे ही भारत को पराधीन बनाया। वास्तव में हमारी समस्त संस्कृति का मूल आधार अहिंसा तत्त्व की स्थापना रहा है। जहाँ तक हमारे नैतिक सिद्धांतों का प्रश्न है, अहिंसा को ही उनमें मुख्य स्थान दिया गया है। अहिंसा का एक नाम या रूप त्याग है और हिंसा का दूसरा रूप या नाम स्वार्थ है जो भोग के रूप में हमारे सामने आता है।
भारत में हिंसा :
ऐसे अहिंसक भारत में विगत तीन-चार दशकों से हिंसा का दौर अपने भयानक क्रूर रूप में पनप रहा है। अहिंसक भारत में हिंसा की शुरूआत नक्सली आंदोलन ने की। इस हिंसक आंदोलन ने एक नई विचारधारा और राजनीति को जन्म दिया। इस आंदोलन ने गाँव के कुछ उच्च मध्यवर्गीय किसानों की हत्याकर हिंसा का प्रचलन किया। अभी यह आंदोलन पूरी तरह समाप्त भी नहीं हो पाया था कि पंजाब से एक और हिंसक आंदोलन उठ खड़ा हुआ जिसने लोगों को बुरी तरह आतंकित कर दिया। निर्दोष लोगों को बसों से उतारकर मारा जाने लगा। इस आंदोलन ने अनेक पत्रकारों, पुलिस अधिकारियों, सेना अधिकारियों, राजनीतिक नेताओं, पत्रकारों, पुलिस अधिकारियों, सेना अधिकारियों, राजनीतिक नेताओं को अपनी हिंसा का शिकार बनाया। इस आतंकवादी आंदोलन ने धर्म पर आधारित पृथक खालिस्तान की माँग की। अपनी इस माँग को पूरा करने के लिए स्थान-स्थान पर बम विस्फोटों के द्वारा निर्दोष लोगों की सामाजिक हत्या की गई। देश की भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी भी इनकी हिंसा का शिकार बनीं। इस हत्या की प्रतिक्रिया में एक व्यापक हिंसा, बदला लेने की भावना ने जन्म लिया और 1984 में उत्तर तथा देश के अनेक भागों में व्यापक हिंसा, आगजनी, लूटपाट हुई। सेना ने इस पर काबू पाया। इससे हिंदू और सिखों के रिश्तों में दरार उत्पन्न हो गई जो आज तक नहीं भरी जा सकी है।
पंजाब से उठे इस हिंसक आंदोलन ने तो जैसे देश में हिंसक आंदोलनों की बाढ़ ला दी। पंजाब की देखा-देखी जम्मू कश्मीर में जे. के. एल. एफ तथा अन्य संगठनों ने हिसंक गतिविधियाँ तेज कर दीं। निर्दोष लोगों की हत्याएँ, अपहरण होने लगे। पंजाब तथा जम्मू कश्मीर में जैसे सरकार का प्रशासन ठप्प-सा पड़ गया।
बिहार में जातिवादी हिंसा जोरों से प्रचलित है। आए दिन निम्न और उच्च वर्गों के मध्य खूनी संघर्ष होते रहते हैं। असम, त्रिपुरा और अब उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा भी हिंसक गतिविधियों के मुख्य केंद्र बन गए हैं। तमिलनाडु में लिट्टे की हिंसक गतिविधियाँ जारी हैं। मई 1991 में देश के युवा प्रधानमंत्री राजीव गांधी भी इनकी हिंसा का निशाना बन चुके हैं।
हिंसा से होने वाली अन्य समस्याएँ :
इन हिंसक आंदोलनों ने भारतीय जनता को झकझोर दिया है। लोगों को अपने काम-धंधे, घर-मकान छोड़कर सुरक्षित स्थानों की ओर पलायन जारी है। सरकार को कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए पर्याप्त धन व संसाधन जुटाने पड़ रहे हैं जिससे देश का आर्थिक सामाजिक विकास अवरुद्ध हो गया है। अर्थव्यवस्था पर अत्यधिक दबाव पड़ने के कारण वह चरमरा उठी है। सरकार इन हिंसक गतिविधियों को चलाने वालों को बातचीत के लिए आमंत्रित कर रही है, किंतु फिर भी हिंसक दौर को समाप्त करने में सफलता नहीं मिली है। देश की एकता व अखंडता पर आतंकवाद के काले बादल मंडरा रहे हैं। भारत की शांति और अहिंसक प्रतिमा खंडित होती जा रही है। विदेशों में उसकी साख को धक्का पहुँच रहा है।
उपसंहार :
अहिंसक भारत में यह हिंसक दौर राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक अस्थिरता को बढ़ा रहा है। देश की प्रगति और उच्च जीवन स्तर के लिए आवश्यक है कि हिंसा के इस दौर को पूरी शक्ति के साथ कुचल दिया जाए।
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