आचार्य रामचंद्र शुक्ल
प्रस्तावना :
हिंदी साहित्य की बात चले और आचार्य रामचंद्र शुक्ल की चर्चा न हो तो कोई भी यह विश्वास नहीं कर पाएगा कि हिंदी साहित्य की ही चर्चा हो रही है। इस कथन का आशय यह है कि आचार्य शुक्ल ने हिंदी की वर्तमान युग तक की यात्रा में अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान प्रदान किया है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल आधुनिक हिंदी निबंध के मूर्धन्य चिंतक, महान समीक्षक, श्रेष्ठतम कथाकार, अन्यतम भाष्यकार एवं अद्वितीय इतिहासकार माने जाते हैं। अपनी रचनाओं के माध्यम से उन्होंने मातृभाषा को सजाने-संवारने एवं उसे आधुनिक रूप देने में महत्त्वपूर्ण योगदान प्रदान किया है।
जन्म एवं शिक्षा :
आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जन्म 4 अक्टूबर, 1884 को उत्तर प्रदेश में बस्ती जिले के अगौना गाँव में हुआ था। उनकी प्रारम्भिक तथा माध्यमिक शिक्षा मिर्जापुर में उर्दू माध्यम से हुई थी। वे कुछ समय तक प्रयाग में वकालत पढ़ने के विचार से रहे लेकिन अंततः सफलता न मिल पाने के कारण वे मिर्जापुर में एक स्कूल में ड्राईंग मास्टर के पद पर रहे और बाद में काशी चले आए। बचपन से ही उनका हिंदी भाषा के प्रति लगाव था, इसलिए उन्होंने हिंदी का गहन अध्ययन जारी रखा। सन् 1908 में वे काशी विश्वविद्यालय में प्राध्यापक के पद पर नियुक्त हुए और आजीवन यहीं कार्य करते रहे।
शुक्ल जी की महत्त्वपूर्ण रचनाएँ :
आचार्य शुक्ल बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने कविता, अनुवाद तथा निबंध के क्षेत्र में अद्भुत प्रतिभा का परिचय दिया है। उनके निबंधों का पहला संग्रह ‘विचार-वीथी’ के नाम से प्रकाशित हुआ। उसके बाद उनके अनेक महत्त्वपूर्ण निबंधों का संग्रह ‘चिंतामणि’ नाम से प्रकाशित हुआ। ‘जायसी ग्रंथावली’ और ‘भ्रमण गीत सार’ उनकी प्रमुख रचनाएं हैं। ‘हिंदी साहित्य का इतिहास’ उनकी विश्वप्रसिद्ध रचना है। उन्होंने अनुवाद के अतिरिक्त आलोचना के नए आयाम प्रदान किए हैं। उन्होंने कविता क्या है, साधारणीकरण और व्यक्ति वैचित्त्यवाद, काव्य में लोकमंगल की साधनावस्था, रसमीमांसा, गोस्वामी तुलसीदास आदि प्रमुख आलोचनातमक कृतियाँ (सभी निबंधों) में उनका अद्भुत आचार्यत्व, पाण्डित्य एवं चिंतन साफ-साफ दिखाई पड़ता है।
रचना शैली एवं विशिष्टता :
आचार्य शुक्ल के निबंधों में मौलिकता, अद्भुत कल्पनावैभव एवं चिंतन की अजस्र धारा प्रवाहित होती है। भारतीय एवं पाश्चात्य काव्य चिंतकों का समीक्षात्मक विवेचन उनके निबंधों की मौलिक विशिष्टता है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने तुलसीदास के काव्य में लक्षित परम्परा और मौलिकता, काव्य और नीति, आंतरिकता और सामाजिकता में समन्वय पर विचार किया है। तुलसी आचार्य के प्रिय कवि हैं। शुक्ल की रचनात्मक शैली गम्भीर है।
रचनात्मक विशेषता :
आचार्य रामचंद्र की रचना की सबसे महत्त्वपूर्ण विशिष्टता यह है कि उन्होंने अपने निबंधों में मनोविज्ञान का चित्रण कर उसे साधारण पाठकों तक पहुंचाया। बुद्धि तथा मन का अद्भुत सामंजस्य उनके निबंधों में साफ-साफ दिखाई देता है। शुक्ल जी पहले अपने निबंधों को मूलरूप से प्रतिपाद्य विषय का उल्लेख करते हैं। उसके बाद विषय के अपेक्षानुसार दृष्टांत आदि की सहायता से उस विषय का विश्लेषण प्रस्तुत करते हैं और अंत में अपना सम्पूर्ण सारांश प्रस्तुत करते हैं। अत्यंत गूढ़ एवं रहस्यपूर्ण विचार परम्परा उनके निबंधों की बहुत महत्त्वपूर्ण विशेषता है। रचना के मध्य में हास्य-व्यंग्य का प्रयोग रचना की गूढ़ गम्भीरता को कम करता है। अंग्रेजी तथा हिंदी शब्दों के साथ-साथ मुहावरों और लोकोक्तियों का अत्यंत सुंदर प्रयोग इनकी भाषा में चमत्कारिक रूप से दिखाई पड़ता है। तत्सम बहुल शब्दों का प्रयोग, विचारों की गहन मौलिकता, व्यंग्य शैली, गम्भीर चिंतन, सूक्ष्म विश्लेषण तथा दर्शन की प्रौढ़ता इनके निबंधों की अन्यतम विशेषता है।
‘उत्साह’ आचार्य का विचारात्मक निबंध है। उनकी पहली विशेषता यह है कि वे निबंध को आलेख नहीं अपितु सूत्र के रूप में प्रस्तुत करते हैं। ‘उत्साह’ में भी उन्होंने इसी विषय का पालन किया है। वे सर्वप्रथम उत्साह के स्वरूप का निरूपण करते हैं वे उत्साह को परिभाषित करते हुए कहते हैं- साहसपूर्ण आनंद की उमंग का नाम उत्साह है। अन्य मनोभावों के भेद को स्पष्ट करते हुए कहते हैं- उत्साह; साहस और धीरता से अलग है। इन्हें उत्साह के अंतर्गत तभी लिया जा सकता है जब उनमें ‘आनंद’ का भाव हो। यहाँ आगे उत्साह को और स्पष्ट करते हुए कहते हैं – आनंद उत्साह का सबसे प्रमुख एवं आवश्यक गुण है। बिना इस गुण के ‘उत्साह’ की संज्ञा में मौलिकता सम्भव नहीं है। उत्साह का अच्छा या बुरा होना उसकी प्रवृत्ति के शुभ या अशुभ परिणाम पर निर्भर है। इसलिए यह आवश्यक है कि ‘उत्साह’ को ‘आनंद’ से संयुक्त करके ही देखा जाए। वे इस तथ्य को आगे भी स्पष्ट करते हैं- ‘केवल क्षणिक प्रशंसा के लिए बिना पूरी तरह मूल्यांकन लिए हुए कोई भी कर्म करना अच्छा नहीं माना जाता। उत्साह में सर्वत्र परिणाम अथवा लक्ष्य निर्धारित रहना लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायक सिद्ध होता है। अतः केवल वाहवाही लूटने के लिए प्रथाओं को तोड़ने वाले व्यक्ति अप्रशंसनीय होते हैं। इस निबंध की भाषा प्रौढ़, परिमार्जित, चुस्त तथा अर्थगर्भित है। इस निबंध में सूत्रात्मक शैली का प्रयोग है। इस निबंध का उपसंहार अत्यंत सुंदर है। निबंधकार का निहित शालीन और हृदय संवादी, हास्य-व्यंग्य का पक्ष पाठक को बहुत उपयोगी लगता है।
मृत्यु :
हिंदी साहित्य को अपने महान देन से आप्लावित कर देने वाले आचार्य शुक्ल 2 फरवरी, 1941 में मात्र 52 वर्ष की आयु में संसार को छोड़कर चले गए।
उपसंहार :
आचार्य शुक्ल हिंदी साहित्य के क्षेत्र में स्वयं एक युग हैं। उन्होंने हिंदी साहित्य को न सिर्फ सजाया-संवारा बल्कि उसे वैश्विक आधार भी दिया। उन्होंने हिंदी साहित्य में रचनात्मकता के श्रेष्ठतम मापदंडों को प्रतिपादित किया जिससे आगामी समय में हिंदी साहित्य को एक नई दिशा प्राप्त हुई। वे उस युग में थे जिस युग में अंग्रेजी भारत में विस्तार पा रही थी और अनेक विद्वान अंग्रेजी को गुलामी अपनी बौद्धिकता समझ रहे थे। उस युग में हिंदी के प्रति उनका असीम संघर्ष हिंदी साहित्य में अमर रहेगा।
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