निबंध लेखन

Middle School Level

एक नदी की आत्मकथा

एक नदी की आत्मकथा

अपनी कल-कल ध्वनि से हर प्राणी को आकर्षित करनेवाली मैं एक नदी हैं। 

 

मेरा जन्म एक पर्वतीय प्रदेश में हुआ था। हरी-भरी घाटियों में रहकर मैं बड़ी हुई। सँकरी घाटियों को पारकर मैं मैदान में उत्तर आई हूँ। इस मैदान में से बहती हुई मैं सागर से मिलने जा रही हूँ।

 

धीरे-धीरे मेरे किनारे गाँव और नगर बसते गए। उन गाँवों और नगरों की उन्नति होती गई। समय के साथ-साथ गाँवों और नगरों में परिवर्तन होते गए। मुझ पर बाँध बाँधे गए। मुझसे नहरें निकाली गई। मेरे ऊपर पुल बनाए गए। उन पर सड़कें और रेल पटरियाँ बिछा दी गई। फिर अनेक प्रकार की मोटरें और रेलगाड़ियाँ मेरे ऊपर से गुजरने लगी।

 

मुझे दुःख है कि विज्ञान की सहायता से चलनेवाले कल-कारखानों से जो गंदा पानी निकलता है, उसने मेरा जल दूषित कर दिया है। फिर भी, मुझे अपने तट के वन, हरे-भरे खेत, छोटे-बड़े बगीचे, जगह-जगह पर बने मंदिर आदि बहुत प्रिय लगते हैं। जब मनुष्य, पशु-पक्षी आदि मेरे जल का उपयोग करते है, तो मुझे बहुत संतोष होता है।

 

मेरी जल धारा हमेशा बहती रहती है। मैं हर प्राणी को सुखी बनाती हूँ। अंत में मैं सागर की गोद में विलीन हो जाती।

 

मेरे लिए बहुत आनंद को बात है कि मैं सभी प्राणियों एवं वनस्पतियों के लिए, उपयोगी बन सकी हूँ।

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