Essay on 'छात्र के कर्तव्य' in Hindi for Class 11 & Above Essay on 'छात्र के कर्तव्य' in Hindi for Class 11 & Above

छात्र के कर्तव्य

छात्र के कर्तव्य
Image : Grand Canyon University

प्रस्तावना :

मानव जीवन का सबसे सुखद समय वही होता है, जब वह एक छात्र के रूप में ज्ञानार्जन के लिए विद्यालय में प्रवेश करता है। इस समय उसके नेत्रों में नवीन-जीवन के प्रति असीम स्वप्न, हृदय में उमड़ता उल्लास और बांहों में अजस्र शक्ति की धारा बह रही होती है। वह ज्ञान की प्राप्ति के लिए उत्साहित होकर विद्यालय प्रांगण में प्रवेश करता है। छात्र शब्द का अर्थ है – छत्र की तरह शीलवान। छत्र अर्थात . छाता। जिस प्रकार छाता धूप, गर्मी, शीत, बरसात स्वयं सहकर भी दूसरों को सुख पहुँचाता है उसी प्रकार एक छात्र भी स्वयं कष्ट सहकर भी अपने समाज, राष्ट्र और विश्व को सुख पहुँचाने के लिए अपने को तैयार करता है। छात्र शब्द का एक पर्याय विद्यार्थी भी है; अर्थात विद्या की इच्छा रखने वाला। विद्या की इच्छा, क्यों? ताकि वह अपनी विद्या से अपने देश, अपने समाज और मानवता की सेवा कर सके। एक छात्र सुयोग्य बनकर अपने माता-पिता का मान बढ़ाता है। उन्हें गौरवान्वित करके उनके मन को शांति प्रदान करता है। अपने राष्ट्र के लिए अपने कर्तव्यों का निर्वाह करता है और मानवता की रक्षा के लिए दानवी वृत्तियों से संघर्ष करता है। इसलिए निःसंदेह ही छात्र जीवन मानव जीवन का श्रेष्ठतम भाग है।

 

गुरु-शिष्य सम्बंध :

गुरु शब्द का अर्थ है प्रकाश की ओर ले जाने वाला। अतः एक श्रेष्ठ छात्र वही है जो अपने गुरु के प्रति पूर्णतः निष्ठावान हो। आरुणि की भांति गुरु का आदेश उसके लिए जीवन से भी मूल्यवान हो। जिस गुरु ने ज्ञान देकर हमें संसार में श्रेष्ठतम जीवन जीने का मार्ग दिखाया है उसके लिए इस पृथ्वी पर कोई पदार्थ ऐसा नहीं है जिसे देकर उसके ऋण से मुक्त हुआ जा सके। एक छात्र को महात्मा कबीर की यह साखी सदैव याद रखनी चाहिए –

 

यह तन विष की बेवरी। गुरु अमृत की खान।

सीस दिए जो गुरु मिलें। तो भी सस्ता जान। 

 

समाज और छात्र :

छात्र जीवन में विद्यार्जन के लिए पांच नीतियों का उल्लेख किया गया है –

 

काक चेष्टा वको ध्यानम्। स्वान निद्रा तथैव च।

अल्पहारी गृही त्यागी। विद्यार्थी पंचलक्षणम्।

 

अर्थात् – कौए के समान छात्र को सदैव सजग रहना चाहिए। बगुले के समान उसका सम्पूर्ण ध्यान विद्यार्जन की ओर होना चाहिए।

 

कुत्ते के समान उसकी निद्रा अत्यंत सजग रहनी चाहिए, उसे अल्पाहारी होना चाहिए तथा ज्ञान के लिए घर का त्याग करना पड़े तो भी संकोच नहीं करना चाहिए।

 

ये नीतियाँ मात्र विद्यार्जन के लिए ही नहीं, छात्र को सामाजिक जीवन में भी श्रेष्ठता की ओर ले जाती हैं। आज समाज में फूट और वैमनस्य का साम्राज्य है। दहेज प्रथा, बाल विवाह, अंधविश्वास जैसी अनेक कुरीतियाँ हमारे समाज को अंदर से खोखला करती जा रही हैं। आज हमारी सीमाओं पर पाकिस्तानी और चीनी गिद्ध मंडरा रहे है। हमारी सीमाओं के अंदर आतंकवाद अपना विशाल मुख फैलाए हमारी सुख-शांति को लील जाने के लिए आगे बढ़ रहा है। पारस्परिक वैमनस्यता दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। ऐसे में छात्र इतने सबल, स्वस्थ और अनुशासित हों कि इन चुनौतियों का सामना कर सकें। वे शत्रुओं के अधबढ़े कदमों को तोड़ सकें। समाज को एक नयी सृष्टि दे सके। छात्र ही समाज के आशा-सुमन हैं। राष्ट्र के भावी कर्णधार हैं, विश्व के प्रेरणा प्रदीप हैं। उन्हें यह याद रखना चाहिए कि आग में जलकर ही सोना कुंदन बनता है। यदि वे स्वयं ज्ञान-साधना के अलख में तपेंगे नहीं तो खरे-कुंदन कैसे बन पाएंगे।

 

छात्रों को तैत्तिरीय उपनिषद् की यह अमरवाणी सदैव याद रखनी चाहिए – 

 

सत्यं वद्। धर्मं चर। स्वाध्याया-मा प्रमद। 

मातृदेवो भव । पितृ देवो भव। आचार्य देवो भव ।

अतिथि देवो भव । 

मान्यनवघाति कर्माणि तानि सेवितत्यानि नो हतगणि

 

अर्थात – सच बोलो। धर्म का आचरण करो। स्वाध्याय से मत चूको। तुम माता को ईश्वर समझने वाले बनो। पिता को ईश्वर समझने वाले बनो। आचार्य को ईश्वर समझने वाले बनो। अतिथि को ईश्वर समझने वाले बनो। जो-जो दोषरहित कर्म हैं उनका सेवन करो, दोषयुक्त कार्यों से दूर रहो।

 

उपसंहार :

आज विश्व के सामने अनेक समस्याएं मुंह बाए खड़ी हैं सबल राष्ट्र निर्बल राष्ट्रों को कुचल देना चाहते हैं। रंग-भेद, जाति-भेद, लिंग भेद की खाई मनुष्यता के आगे बढ़ने का मार्ग रोक रही है। धार्मिक उन्माद सुरसा की तरह मानवता को लीलता जा रहा है। अणु विस्फोट का संकट प्रत्येक क्षण मानवता पर संकट बनकर छाया है। ऐसी घड़ी में छात्र का कर्तव्य है कि वे अपनी शक्ति का उपयोग निर्माणात्मक कार्यों में करें। तोड़-फोड़ विध्वंस उनका कार्य नहीं है। छात्रों को स्वानुशासित होकर – दुनिया को नई राह दिखानी है, नई मशाल जलानी है जिसके आलोक में नये समाज का निर्माण किया जा सके।

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