पाठ २ – बूँदें
रिमझिम रिमझिम गातीं बूँदें,
धरती पर हैं आतीं बूँदें ।
खेतों, बागों, मैदानों में,
हरियाली फैलातीं बूँदें ।
धरती से नालों, नदियों में,
सागर में मिल जातीं बूँदें ।
गरमी से तपते लोगों को,
शीतलता पहुँचातीं बूँदें ।
मेंढक, मोर, पपीहे, कोयल,
सबका मन हरषातीं बूँदें ।
पुरवाई के रथ पर चढ़कर,
इठलातीं, मुसकातीं बूँदें ।
– रोहिताश्व अस्थाना
सारांश:
रिमझिम रिमझिम का मधुर गीत गाते हुए बूँदे आसमान से धरती पर आती हैं और खेतों, बागों तथा मैदानों में हरियाली फैलाती है। धरती पर आनेवाली बूँदे बाद में नालों और नदियों से होते हुए समुद्र में मिल जाती हैं। गर्मी से परेशान लोगों को बूँदे शीतलता पहुंचाती है। मेंढक, मोर, पपीहा और कोयल के मन को बूँदे प्रसन्न करती है और हवा के रथ पर चढ़कर बूँदे इठलाती और मुसकाती हैं।
शब्दार्थ:
शीतल – ठंडा
पपीहा – चातक पक्षी
हरयाना – आनंदित / खुश होना
पुरवाई – पूरब से आने वाली हवा
इठलाना – इतराना
मुसकाना – हँसना
१. कविता में आए हुए लयात्मक शब्दों को ढूंढ़कर सुनाओ।
उत्तर: आतीं, फैलातीं, मिल जातीं, पहुँचातीं, हरषातीं, इठलातीं, मुसकार्ती ।
२. बूँदें क्या-क्या करती हैं, बताओ।
उत्तर: बूँदें जब धरती पर आती हैं तो छोटे-मोटे नालों में बहने लगती हैं। इन नालों से गुजरती हुई वे नदियों में पहुँच जाती हैं और नदी से सागर में जा मिलती हैं। ये बूँदें गरमी से परेशान लोगों को शीतलता पहुँचाती हैं। मेंढक, मोर, पपीहे, कोयल सबको खुशी देती हैं। मनुष्य, पशु-पक्षी सबको हरषाती हैं ये बूँदें। पुरवाई के रथ पर सवार होकर इठलाती और मुसकाती हुई आती है ये बूँदें ।